tag:blogger.com,1999:blog-88919636483695394302024-03-08T13:13:11.527-08:00Be With Nature & Healthy......Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.comBlogger537125tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-57451372131086486432020-03-11T04:54:00.003-07:002020-03-11T04:54:55.621-07:00 भारतीय संस्कृति <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
भारत भूमि पर अनेक महान आत्माओं ने जन्म लिया l स्वयं ईश्वर मनुष्य रूप में यहाँ अवतरित हुए l हमारी संस्कृति ने दुनिया को बहुत कुछ सिखाना चाहा , लेकिन इसे पिछड़ा हुआ देश समझकर किसी ने कुछ सीखा नहीं l इसलिए अब स्वयं प्रकृति ने दुनिया को सिखाने का जिम्मा लिया है जैसे --- किसी से मिलो तो कुछ दूरी बनाकर रहो , न गले मिलो , न हाथ मिलाओ , केवल नमस्ते करो l किसी का झूठा पानी न पिओ , न ही झूठा खाना खाओ l<br />
पर - पुरुष , पर - नारी के साथ एक आसन पर मत बैठो l संयमित जीवन जिओ l<br />
मृत्यु से डर कर भागो मत l सन्मार्ग पर चलो , सत्कर्म की पूंजी इकट्ठी करो l<br />
मौत के अनेक बहाने होते हैं और जीवन रक्षा के अनेक सहारे होते हैं l हमारे द्वारा किये जाने वाले सत्कर्म अकाल मृत्यु से हमारी रक्षा करते हैं l<br /></div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-13793456751953604162019-06-07T07:00:00.001-07:002019-06-07T07:00:44.510-07:00 समाज जागरूक हो <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अपराध छोटा हो या बड़ा उस पर नियंत्रण व अपराधी को सजा जरुरी है l लेकिन जब अपराधी संगठित हो कर एक मजबूत श्रंखला बना लेते हैं तो सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि सजा कौन दे ? हर व्यक्ति अपने स्वार्थ , कामना , वासना और विभिन्न कमजोरियों के आगे विवश होता है , अपनी - अपनी दुकान चलती रहे इस कारण हर अपराधी दूसरे को संरक्षण देता है l<br />
सब समस्याओं का एकमात्र हल है --- संवेदना l कहने को आधुनिक युग है , लेकिन चेतना के स्तर पर क्या है ? स्वयं का आंकलन प्रत्येक व्यक्ति करे l अपनी कमजोरियों को समझें और उसे दूर करें , तभी समाज में शांति संभव है l <br />
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Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-75421551825532715072019-06-03T03:41:00.000-07:002019-06-03T03:41:14.308-07:00 विचारों का परिष्कार जरुरी है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
विभिन्न धर्मों , जातियों और समाज में युगों से महिलाओं पर अत्याचार किये गए l अब महिला सशक्तिकरण के नाम पर देश - दुनिया में बहुत काम हो रहे हैं लेकिन जब तक पुरुष वर्ग की मानसिकता नहीं बदलती तब तक इन विभिन्न प्रयासों से कोई सच्चा लाभ नहीं है l देखने में तो यह स्पष्ट है कि महिलाएं उच्च व महत्वपूर्ण पदों पर हैं लेकिन सशक्त वे तभी कहलाएंगी जब वे अपने विवेक और अपने स्वयं के ज्ञान व समझ से निर्णय लेंगी l दुर्भाग्य यह है कि जो महिलाएं पुरुषों के स्वार्थ , भ्रष्टाचार आदि गलत कार्यों में सहयोग न दें उन्हें उपेक्षित व अपमानित किया जाता है l जो अपने विवेक से कार्य करे , पुरुष प्रधानता को, सामंती व्यवस्था को चुनौती दे उन्हें वृहद स्तर पर अपमानित करने व ' चिढ़ाने ' जैसा तुच्छ कार्य किया जाता है l यह सशक्तिकरण नहीं है l समस्या विकट तब और हो जाती है जब महिलाएं ही अपनी किन्ही कमजोरियों के कारण किसी महिला को उत्पीड़ित करने के लिए , उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचने के लिए पुरुषों का साथ देने लगती हैं l सामाजिक स्थिति चाहे वह महिलाओं की हो या दलितों की , उसमे सुधार तभी संभव है जब लोगों के ह्रदय में संवेदना होगी , मानवता होगी , उनके विचार परिष्कृत होंगे l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-13592472108485678792019-03-30T06:23:00.000-07:002019-03-30T06:23:02.223-07:00 विचार श्रेष्ठ और सकारात्मक हों <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कहते हैं --विचार कभी नष्ट नहीं होते , एक बंद कमरे में , एक गुफा में बैठ कर भी आप विचार करेंगे तो वे संसार में फैल जायेंगे और अपना प्रभाव दिखायेंगे l मजदूरों की दीन- हीन दशा को सुधारने के लिए , शोषण से मुक्ति के लिए कार्ल मार्क्स ने क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किये , इससे पूंजीपति भयभीत हो गए , उन पर तरह - तरह से प्रतिबन्ध लगाये गए , देश - निकला भी दिया गया l लेकिन उनके विचार सारे संसार में फैल गए और उनका प्रभाव समाज में , संसार में देखा जा सकता है l<br />
आज समाज में जो अत्याचार और अन्याय बढ़ रहा है , वीरता समाप्त हुई है कायरता बढ़ी है l किसी भी अपराध के पीछे वास्तविक अपराधी कौन है ? यह जानना भी कठिन हो गया है l ऐसे समय में यदि हमारी कल्पनाएँ , हमारे विचार श्रेष्ठ और सकारात्मक हों l विचार के साथ आचरण भी श्रेष्ठ हो तो सुधार संभव है l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-62394633254091265622019-03-29T04:38:00.000-07:002019-03-29T04:38:54.475-07:00 धन और पद के लालच से मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जब व्यक्ति का लोभ व लालच मर्यादा की सीमा रेखा पार कर जाता है तब ऐसा व्यक्ति कायर व संवेदनहीन हो जाता है और अपने साथ ऐसे कायर व संवेदनहीन लोगों की भीड़ इकट्ठी कर लेता है और इनके पास सिर्फ एक ही काम होता है कि हर उचित - अनुचित तरीके से योग्य व्यक्ति को आगे मत आने दो , अन्यथा उनकी अयोग्यता का पर्दाफाश हो जायेगा l गलत तरीके से जो साजो - सामान , वैभव इकट्ठा किया है , उन्हें उसका भय सताता है l इस कारण ऐसे कायर व्यक्ति अपनी योग्यता नहीं बढ़ाते , अपनी सारी शक्ति योग्य व कुशल व्यक्ति को पीछे धकेलने में लगा देते हैं l<br />
अँधेरा कितना भी घना हो , आखिर सूर्योदय तो होता ही है l<br />
गुलामी के दिनों में अंग्रेजों ने भारतीयों को बहुत दीन- हीन व कमजोर समझा , बहुत अत्याचार किये l उन विपरीत परिस्थितियों में भी अनेक महान व्यक्ति हुए जिनके प्रयासों से देश को आजादी मिली l बुद्धिमानी इसी में है कि दूसरों को धक्का देकर आगे बढ़ने के बजाय अपनी योग्यता बढ़ाओ l <br />
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Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-32029444815391216892019-03-21T10:19:00.000-07:002019-03-21T10:19:07.889-07:00 अनजाने भय के कारण व्यक्ति सत्य से दूर हो जाता है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मनुष्य अपनी दुर्गति के लिए स्वयं जिम्मेदार है l आज कर्मकांड तो बहुत हैं लेकिन लोगों को ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं है l यही कारण है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने से थोड़े भी ताकतवर को अपना भाग्य विधाता मान कर उसकी गुलामी शुरू कर देता है l बेजान चीजों में लोग संसार के आश्चर्य देखने जाते हैं लेकिन संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य ---- वे जीते - जागते प्राणी हैं , जो हर तरह से संपन्न हैं , समाज में जिनकी अलग पहचान है , अनेकों को प्रभावित भी करते हैं , ईश्वर ने उन्हें सब कुछ दिया है लेकिन अपनी कमजोरियों के कारण वे मानसिक गुलाम हैं l <br />
एक मजदूर जो दिन भर मजदूरी करता है , मेहनत से कमाता है और स्वाभिमान से जीवन जीता है लेकिन संपन्न और समर्थ व्यक्ति किसी न किसी के हाथ की कठपुतली बन कर रहता है l आज सबसे बड़ी जरुरत है कि प्रत्येक व्यक्ति सद्बुद्धि की प्रार्थना करे क्योंकि ' यूज एंड थ्रो ' केवल बेजान चीजों पर लागू नहीं होता l<br />
सद्बुद्धि होगी , तभी विवेक होगा l विवेकशील व्यक्ति ही स्वाभिमानी होगा l निरंतर सद्बुद्धि की प्रार्थना करने से युगों से जो गुलामी की आदत बनी हुई है , वह धीरे - धीरे जाएगी l और तभी एक स्वस्थ समाज का निर्माण होगा l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-78559171212532137212019-03-20T09:39:00.000-07:002019-03-20T09:39:13.108-07:00 स्वविवेक जरुरी है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
व्यक्ति कितना भी पढ़ - लिख जाये , उच्च पद पर पहुँच जाये , लेकिन यदि वह स्वविवेक से काम नहीं लेता तो उसकी शिक्षा व्यर्थ है l अधिकांश लोग कान के कच्चे होते हैं , बिना देखे , बिना सोचे - समझे दूसरों की बात का विश्वास कर लेते हैं l अधिकांश लोग धन का लालच , अपनी असीमित कामना , वासना के कारण अपना जीवन कठपुतली बन कर ही गुजार देते हैं l समाज में जाति, धर्म आदि को लेकर झगड़े, दंगे मनुष्य की इसी कमजोरी के कारण होते हैं l <br />
अधिकांश संस्थाओं में अधिकारियों से मन - मुटाव , विभागीय झगड़े इसी कारण उत्पन्न होते हैं l एक पक्ष , दूसरे पक्ष से उन गलतियों की वजह से चिढ़ा हुआ है , जो दूसरे पक्ष ने कभी की ही नहीं l स्वविवेक न होने के कारण ही आज मनुष्य ' बिकाऊ ' है l गरीबी , भुखमरी , दिवालिया आदि कारणों से कोई व्यक्ति अपना घर - परिवार बेच दे , स्वयं को भी बेच दे , तो यह उसकी मज़बूरी है लेकिन हर तरह से संपन्न लोग जब अपना स्वाभिमान गिरवी रखकर , किसी के हाथ की कठपुतली बन जाते हैं , मानसिक गुलाम बन जाते हैं और ऐसा कर के बहुत खुश भी होते हैं ---- तो यह उनकी दुर्बुद्धि है l<br />
आज की सबसे बड़ी जरुरत है कि बच्चों को शिक्षा के साथ स्वाभिमान से जीना सिखाया जाये l भौतिक प्रगति ही विकास का मानदंड नहीं है l परिवार और देश का उत्थान उसके सदस्यों के श्रेष्ठ चरित्र से होता है l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-33301742644501507642019-01-31T03:36:00.001-08:002019-01-31T03:36:22.524-08:00 सत्य में हजार हाथियों का बल होता है , सत्य कभी पराजित नहीं होता <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
इस संसार में सदा से ही अच्छाई और बुराई में संघर्ष चलता रहता है l बुराई के पास स्वयं को जीवित रखने का केवल एक ही तरीका है कि सच्चाई की राह पर चलने वालों को हर संभव प्रयास कर के आत्महीनता की स्थिति में पटक दे , जिससे वे तरक्की न कर पायें और बुराई का साम्राज्य कायम हो जाये l इसलिए सत्य की राह पर चलने वालों को जागरूक रहना चाहिए , किसी भी परिस्थिति में अपना आत्मविश्वास डिगने न दे l आत्मविश्वास ही ईश्वर विश्वास है l अंधकार कितना भी क्यों न हो , सुबह अवश्य होती है l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-6082377840005517852019-01-30T08:20:00.000-08:002019-01-30T08:20:05.865-08:00नकारात्मक विचारों के लोगों से स्वयं को दूर रखें <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
इस संसार में भांति - भांति के लोग हैं l मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह समाज में मिलजुलकर रहना चाहता है l समाज में अनेक लोग ऐसे होते हैं जिनका काम हमेशा दूसरों में कमियां निकालना होता है l ऐसे लोग अच्छाई में भी बुराई खोजते हैं जैसे कितना भी सुन्दर पार्क होगा , मक्खी वहां गंदगी को ढूंढ कर उसी पर बैठेगी l ऐसे नकारात्मक लोगों से हमेशा दूर रहना चाहिए क्योंकि ऐसे लोगों के साथ रहकर यदि हर बात में कमियां खोजने की आदत पड़ जाये तो व्यक्ति जीवन में कभी खुश नहीं रह सकता , हमेशा तनाव में रहेगा l<br />
यदि हम हमेशा गुणों की चर्चा करेंगे , बुराई में भी अच्छाई को ढूंढेंगे तो वातावरण सकारात्मक होगा l स्वस्थ और तनावरहित जीवन के लिए सकारात्मकता जरुरी है l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-46688476736843592122019-01-13T08:28:00.000-08:002019-01-13T08:28:13.183-08:00 संसार में अशांति का एकमात्र कारण है ---- सद्बुद्धि की कमी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
लोग धन संपन्न हों , ऊँचे पद पर हों , बाहरी तौर पर बहुत सुखी - संपन्न दिखाई देते हैं लेकिन ऐसे लोग सामान्य लोगों से ज्यादा तनाव में रहते हैं l जब व्यक्ति तरक्की की राह पर होता है , सुख - वैभव बढ़ता जाता है तब वह अपने सुखों में इतना मग्न हो जाता है कि अपनी तरक्की के अनुपात में या थोड़े भी सत्कर्म नहीं करता l कहते हैं विवेक , सद्बुद्धि ईश्वर की कृपा से मिलती है और ईश्वर की कृपा सत्कर्म करने से , सन्मार्ग पर चलने से मिलती है विवेक होने पर ही व्यक्ति अपने जीवन में सही निर्णय ले पाता है l जीवन में एक कदम भी गलत हो तो मंजिल तक पहुंचना कठिन होता है l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-46882410603864548622019-01-10T08:54:00.001-08:002019-01-10T08:54:59.480-08:00 सुख - शान्ति से जीने के लिए ईश्वर विश्वास जरुरी है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
केवल कर्मकांड करना ईश्वर विश्वास नहीं है l जो ईश्वर में विश्वास करते हैं वे सदाचारी होते हैं , सेवा , परोपकार के कार्य करते हैं , कर्तव्य पालन ईमानदारी से करते हैं l इस संसार को सुन्दर बनाने के लिए अपनी सामर्थ्य भर प्रयास करते हैं ताकि ईश्वर की कृपा मिल सके l ऐसे लोग कभी भयभीत नहीं होते , उन्हें ईश्वर की सत्ता में विश्वास होता है कि जो होगा अच्छा होगा , उसी में हमारी भलाई होगी l <br />
आज की सबसे बड़ी समस्या यह है कि व्यक्ति सदाचारी जीवन नहीं जीता l अपनी कामना , वासना ,लालच , ईर्ष्या - द्वेष के कारण वह जीवन में अनेक ऐसे काम करता है जिनके लिए उसकी आत्मा गवाही नहीं देती , आत्मा को कष्ट होता है इससे तनाव उत्पन्न होता है , मन बोझिल बना रहता है l अपने विकारों को दूर कर के ही शांति से रहा जा सकता है l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-17062904080526088752018-12-20T10:14:00.000-08:002018-12-20T10:14:50.683-08:00 आत्मविश्वासी ही सुख - शांति से जी सकता है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
भौतिक द्रष्टिकोण से मनुष्य चाहे कितनी भी तरक्की कर ले , वह तब तक अधूरी है जब तक मन के विकारों पर ---- ईर्ष्या - द्वेष , कामना , वासना पर उसका नियंत्रण नहीं है l जब ये दुष्प्रवृत्तियां उस पर हावी हो जाती हैं तो उसकी हालत पशु , राक्षस या अर्द्ध विक्षिप्त जैसी हो जाती है l ये बुराइयाँ आदि काल से हैं और इन्ही के कारण बड़े - बड़े युद्ध हुए l<br />
लोगों को बदलना , समझाना बड़ा मुश्किल है , उचित यही है कि हम स्वयं के बदलें l सर्वप्रथम आत्मविश्वासी बने , किसी के द्वारा की जा रही अपनी निंदा , प्रशंसा , मान - अपमान के प्रति तटस्थ रहे l जो ऐसा कर रहा है , वह उसकी प्रवृति है , वह अपनी आदत से लाचार है लेकिन यदि हम आत्मविश्वासी हैं तो उसका हर दांव निष्फल हो जायेगा l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-58665910549399650762018-11-26T04:14:00.001-08:002018-11-26T04:14:59.546-08:00 सुख - शांति के लिए समस्या पर नहीं , उसके समाधान पर विचार करना चाहिए <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जीवन में जब भी परेशानियाँ आती हैं तो हमें उसके समाधान पर गहराई से विचार करना चाहिए l समस्या पर परिवार , मित्रों व रिश्तेदारों से समस्या की बार - बार चर्चा करने से वह समस्या और बढ़ जाती है l धैर्य और शांति से विचार करने से समाधान अवश्य मिल जाता है l<br />
सामाजिक समस्याएं तो कुछ लोगों के अहंकार और स्वार्थ की वजह से उत्पन्न होती है l लोगों में स्वार्थ और यश कमाने की लालसा इतनी तीव्र होती है कि वे समस्याओं को हल होने ही नहीं देते l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-78296739479391278672018-11-24T09:12:00.000-08:002018-11-24T09:12:09.570-08:00 बदलते समय के अनुसार रोजगार के मायने भी बदल गए <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कभी जब व्यक्ति को दस बजे से शाम पांच बजे तक काम मिल जाये तो माना जाता था कि उसे रोजगार मिल गया l अब वक्त बदल गया , अब व्यक्ति बोलना , सुनना , हँसना , चिल्लाना , नारे लगाना , बैठना , खड़े होना हर बात के पैसे कमाने लगा है l पेट भरने के लिए यह बुरा नहीं है l उर्जा का सदुपयोग होना जरुरी है l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-62706151154401052832018-11-22T04:00:00.000-08:002018-11-22T04:00:08.051-08:00 प्राथमिकता का चयन जरुरी है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
व्यक्तिगत जीवन हो या अन्य कोई भी क्षेत्र हो तनाव रहित जीवन जीना चाहते हैं तो प्राथमिकता का चयन करना जरुरी है l आज के समय में अनेक लोग अपनी जिम्मेदारियों से भागने के लिए पूजा -पाठ कर्मकांड को एक माध्यम बना लेते हैं l इससे न तो भगवान प्रसन्न होते हैं और न ही संसार में सफलता मिलती है l जीवन में संतुलन जरुरी है l परिवार में, समाज में अपनी जिम्मेदारियों को निभाने और ईमानदारी से कर्तव्यपालन करने के साथ कुछ क्षण भी ईश्वर का नाम लिया तो वह सार्थक है l ईश्वर का निवास तो हमारे ह्रदय में है , उन्हें जाग्रत करना जरुरी है l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-28924399980538712152018-10-20T03:22:00.001-07:002018-10-20T03:22:37.594-07:00 दुष्प्रवृतियों को त्यागने से ही सुख - शांति संभव है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि मनुष्य सुख - शांति तो चाहता है , लेकिन उसके लिए स्वयं को बदलने को तैयार नहीं है l समाज का बहुत बड़ा भाग आज नशे का शिकार है l भारत एक गर्म जलवायु का देश है l शराब , मांसाहार उन देशों के निवासियों के लिए उचित है जहाँ ठण्ड बहुत पड़ती है l भारत जैसे गर्म जलवायु में रहने वाले लोगों के लिए शराब और मांसाहार जहर का काम करता है , इसके सेवन से बुद्धि भ्रमित हो जाती है , मनुष्य विवेकशून्य हो जाता है , सोचने - समझने की शक्ति नहीं रहती , वक्त पर सही निर्णय नहीं ले सकते l शराब के अधिक सेवन से व्यक्ति चाहे साधारण हो या बड़ा अधिकारी हो , बेहोशी की हालत में रहता है , और कोई भी काम जिम्मेदारी से नहीं करता है l <br />
शराब के साथ फिर गुटका , तम्बाकू , सिगरेट , और समाज में विभिन्न तरीके से परोसी जाने वाली अश्लीलता ---- इन सबकी वजह से ही समाज में अपराध , हत्याएं , दुष्कर्म और प्राकृतिक प्रकोप बढ़े हैं l जरुरी है कि मनुष्य अपना हठ छोड़कर सन्मार्ग पर चले l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-54316144226420352822018-10-18T09:43:00.001-07:002018-10-18T09:43:18.558-07:00स्वस्थ समाज का निर्माण जरुरी है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अभी तक जो विकास हुआ है वह भौतिक है l मनुष्य के व्यक्तित्व के दो पक्ष हैं -- आंतरिक और बाह्य l यह विकास बाह्य है l आंतरिक द्रष्टि से मनुष्य अभी भी असभ्य है , पशु - तुल्य है , उसके भीतर का राक्षस अभी मरा नहीं है l ऐसा इसलिए है क्योंकि जीवन को सुख - सुविधा संपन्न बनाने के तो बहुत प्रयास हुए , लेकिन आत्मिक विकास के कोई प्रयास नहीं हुए l इसलिए धर्म , जाति के नाम पर बहुत अत्याचार हुए , अमीरी - गरीबी का भेदभाव अपने चरम पर है , युगों से महिलाओं पर अत्याचार हुए l अत्याचार , अन्याय इसलिए भी बढ़ता गया क्योंकि समर्थ पक्ष ने समाज के प्रमुख लोगों और धर्म के ठेकेदारों को अपने पक्ष में कर इस बात को लोगों के दिलोदिमाग में भरा कि जो पीड़ित हैं उनका भाग्य ही ख़राब है और उनका जन्म अत्याचार सहने के लिए ही हुआ है l<br />
अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध आवाज न उठाने से अत्याचारियों के हौसले बुलंद होते गए और उन्होंने दूसरों को सताना , अपनी हुकूमत चलाना , अपने से तुच्छ समझना , उत्पीड़ित करना अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझ लिया l धीरे - धीरे यह उनकी आदत बन गई और खानदानी बीमारी की तरह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में आती रही l<br />
पीड़ित पक्ष को अपनी भाग्यवादी सोच को बदलना होगा कि--- यह दुर्भाग्य नहीं , कमजोरी है l <br />
अपने ज्ञान , जागरूकता , संगठन और आत्मबल के सहारे ही अत्याचारी का मुकाबला किया जा सकता है l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-22292392711716680622018-10-17T08:50:00.001-07:002018-10-17T08:50:27.733-07:00 संसार में सुख - शान्ति के लिए ह्रदय की पवित्रता अनिवार्य है l <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज संसार में अशान्ति का सबसे बड़ा कारण है --- मनुष्य के मानसिक विकार -- काम , क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार आदि l यह सब विकार मनुष्य के ह्रदय को अपवित्र कर देते हैं और इसी अपवित्रता के कारण विभिन्न अपराध , दंगे - फसाद होते हैं l शारीरिक शुद्धता का कोई मतलब नहीं होता क्योंकि सबके शरीर में चाहे वह पुरुष हो या नारी मल-मूत्र , खून और न जाने क्या - क्या भरा है जो चिकित्सा के उपकरण की सहायता से देखा जा सकता है l लेकिन मन के विकारों को किसी उपकरण की सहायता से देखा नहीं जा सकता , यह तो व्यक्ति की क्रिया और उसके परिणामों से समझ में आता है l इन विकारों की वजह से मनुष्य की बुद्धि भ्रमित हो जाती है और वह अनैतिक , अमर्यादित कार्य कर के संसार में अशांति उत्पन्न करता है l इसलिए हमारा सारा प्रयास मन को पवित्र बनाने पर होना चाहिए l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-34211546940790908672018-10-16T08:09:00.001-07:002018-10-16T08:09:18.211-07:00 दोगलापन समाज के लिए अभिशाप है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कहते हैं -- अच्छाई में गजब का आकर्षण होता है , इसलिए पापी से पापी भी अपने परिवार में , समाज में स्वयं को अच्छा दिखाना चाहता है l उसके व्यक्तित्व के अँधेरे पक्ष पर , उसके अवगुणों पर परदा पड़ा रहे , इसके लिए ऐसे लोगों को कितनों के आगे नाक रगड़नी पड़ती है , कितने ही लोगों को मुंह बंद रखने के लिए धन देना पड़ता है l फिर इस धन को कमाने के लिए बेईमानी , भ्रष्टाचार करना पड़ता है l किसी गड़बड़ी में फँस न जाएँ , यह तनाव दिमाग में रहता है l इस तनाव को दूर करने के लिए नशा करते हैं l धीरे - धीरे जीवन पतन के गर्त में गिरता जाता है l <br />
बाह्य रूप से देखने पर ऐसे लोगों का सुख - वैभव का जीवन दिखाई देता है लेकिन वास्तविकता में कितनी ' बेचारगी ' है l <br />
मनुष्य अपनी कमजोरियों के कारण ही अपनी दुर्गति कराता है l बेहतर यही है कि जैसे वास्तव में हैं , वैसे ही दिखाई दें l कहते हैं -- मनुष्य के व्यक्तित्व में इतने छिद्र होते हैं कि एक दिन सच्चाई बाहर आ ही जाती है l अपनी कमजोरियों को , अपनी गलती को स्वीकार करना ही सबसे बड़ी वीरता है , ऐसा कर के ही व्यक्ति तनावरहित जीवन जी सकता है l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-13458882023148587202018-10-14T06:27:00.000-07:002018-10-14T06:27:35.589-07:00 अपराधी का सबसे बड़ा दंड है ---- उसका बहिष्कार करो <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
यह समाज पुरुष और नारी से मिलकर बना है l मनुष्य की दुष्प्रवृत्तियों के कारण ही अपराध होते हैं l महिलाओं का चरित्र हनन और छोटे - छोटे बच्चे - बच्चियों के साथ जो जघन्य अपराध होते हैं उनके सबूत, गवाह आदि नहीं मिल पाते , अधिकांश अपराधी बच जाते हैं , समाज में रौब से घूमते हैं , निरंकुश हो कर और अपराध करते हैं l जो सच है , उसे परिवार व समाज जानता है इसलिए अपना दिल मजबूत कर अपराधी का परिवार , समाज व कार्यस्थल में बहिष्कार अवश्य करें l न्याय की प्रक्रिया होती है , प्रकृति से भी दंड ' काल ' निर्धारित करता है l कम से कम अपराधी का बहिष्कार कर के , उससे दूरी बनाकर समाज को जागरूक किया जा सकता है l इससे अनेक लोग अपराधी के चंगुल में आने से बच जायेंगे और अपराध पर नियंत्रण अवश्य होगा l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-50402285366071255952018-10-13T10:32:00.002-07:002018-10-13T10:32:46.455-07:00 जागरूक समाज में ही अपराध पर नियंत्रण संभव है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज के समय में सही व्यक्ति की पहचान मुश्किल हो गई है l देखने में लगता है कि व्यक्ति बहुत शिक्षित है , सभ्य है , उच्च पद पर है , सभ्रांत नागरिक है लेकिन उसके पीछे कितनी कालिक है , यह जानना हर व्यक्ति की समझ से बाहर है l अब लोगों की रूचि अपराधी का बहिष्कार करने , उसके विरुद्ध खड़े होने की नहीं हैं l उसके माध्यम से अपने स्वार्थ पूरे करने में है l अनेक लोग अपराधी को संरक्षण देते हैं और अनेक उसके संरक्षण में पलते हैं l शक्ति और बुद्धि का दुरूपयोग समाज में अनेक अपराधों को जन्म देता है l अपनी कमियां उजागर न हों इसलिए लोग चुप रहते हैं l जब समाज जागरूक होगा , तत्कालीन लाभ न देखकर दूरदर्शिता से निर्णय लेगा तभी सुख - शांति संभव होगी l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-41044660598412299192018-10-12T05:36:00.000-07:002018-10-12T05:36:51.036-07:00 संवेदनहीनता समाज में अनेक सामाजिक बुराइयों को जन्म देती है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
युगों की गुलामी के बाद भी मनुष्य ने प्रेम से रहना नहीं सीखा l स्वार्थ और लालच ने मनुष्य को संवेदनहीन बना दिया है l पुरुष के अहंकार पर यदि लगाम न लगे तो उसकी क्रूरता , निर्दयता बढ़ती जाती है l हर धर्म ने अपने ही समाज की आधी जनसँख्या --- नारी पर अत्याचार किये हैं l बस ! उनका तरीका भिन्न - भिन्न है l सती-प्रथा , बाल - विधवा , दहेज- हत्या , कन्या भ्रूण हत्या , पारिवारिक हिंसा --- यह सब पारिवारिक संवेदनहीनता को बताते हैं l ऐसे व्यक्ति जो अपने परिवार के प्रति संवेदनहीन हैं , वे समाज के हर घटक के प्रति -- मनुष्य , पशु - पक्षी , प्रकृति सम्पूर्ण पर्यावरण --- सबके प्रति संवेदनहीन होते हैं क्योंकि उनके ऊपर उनका स्वार्थ और अहंकार हावी होता है l आज समाज में ऐसे ही लोगों की भरमार है इसीलिए अबोध बच्चे - बच्चियां सुरक्षित नहीं हैं l कार्य स्थल उत्पीड़न के केंद्र बन गए हैं l विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई से और अधिक पर्यावरण प्रदूषण को आमंत्रित किया जा रहा है l<br />
अनेक लोग , अनेक संगठन एक स्वस्थ समाज के निर्माण में प्रयत्नशील हैं लेकिन मनुष्य की एक बहुत बड़ी कमजोरी -- यश की लालसा --- उन्हें एकसूत्र में बंधने नहीं देती l इसके अतिरिक्त कहीं न कही अपने संगठन की चिंता , अपने जीवन की सुरक्षा आदि अनेक कारणों से लोग अपराधियों को जानते हुए भी , उनके अत्याचारों को समझते हुए भी चुप रहते हैं l इससे अपराधियों को और प्रोत्साहन मिलता है l <br />
जब समाज में केवल एक धर्म होगा ---- इन्सानियत और एक जाति होगी ---- ' मनुष्य '---- तभी स्वस्थ समाज का निर्माण संभव होगा l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-15553021684155581892018-10-11T09:53:00.000-07:002018-10-11T09:53:12.000-07:00 दंड न मिलने के कारण अपराध को प्रोत्साहन मिलता है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अपराध चाहे छोटा हो या बड़ा , जब अपराधी को उसके लिए दंड नहीं मिलता तो दूसरों को भी प्रोत्साहन मिलता है l भ्रष्टाचार , बेईमानी आदि में तुरत लाभ ज्यादा है , इसका भविष्य में क्या परिणाम होगा , इस बारे में लोग नहीं सोचते l तुरत लाभ का आकर्षण इतना अधिक है कि कोई व्यक्ति , कोई संस्था इससे अछूती नहीं बचती l जो लोग जघन्य अपराध कर के बच जाते , वे और इस क्षेत्र के विशेषज्ञ बन जाते हैं l जब कोई समाज इसी तरह लम्बे समय तक अपराधियों को छोड़ देता है तो एक समय ऐसा आता है जब हमारे चारों और ऐसे ही व्यक्ति होते हैं जो किसी न किसी अपराध में संलग्न होते हैं l अपराध उनकी आदत बन जाता है l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-76284972334548038392018-10-08T07:46:00.000-07:002018-10-08T07:46:42.607-07:00 बुद्धि और शक्ति के दुरूपयोग से समाज में अराजकता बढ़ती है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
नशा , शराब , गुटका , तम्बाकू आदि के कारण व्यक्ति का चारित्रिक पतन होता है , लेकिन अपराध और संस्कृति को पतन की और ले जाने वाली ह्रदय विदारक घटनाएँ तभी बढ़ती हैं बुद्धि और शक्ति से संपन्न व्यक्ति इन घटनाओं को छोटी और साधारण कहकर नजरंदाज कर देते हैं l इससे अपराधियों के हौसले बढ़ते हैं l अपराध इसलिए भी बढ़ते हैं क्योंकि ऐसे दुर्बुद्धि ग्रस्त लोग समाज में अपना रुतबा और भय कायम करने के लिए अपराधियों की मदद लेते हैं l कभी विदेशी आततायियों से बेटियों को बचाने के लिए परदा - प्रथा शुरू हुई थी , अब देशी आततायियों से बेटी बचाना कठिन समस्या है l एक साधारण , अति सामान्य व्यक्ति यदि कोई अपराध करता है तो उसका प्रभाव उस पर और अधिक - से - अधिक उसके परिवार पर पड़ता है l लेकिन जब बुद्धि , धन और शक्ति से संपन्न व्यक्ति अपराध करते हैं , अपराधियों को संरक्षण देते हैं तो उसका दुष्प्रभाव सम्पूर्ण समाज और राष्ट्र पर पड़ता l छोटी - छोटी बच्चियों की चीखों और आहों से प्रकृति को भी कष्ट होता है और उसका परिणाम सामूहिक दंड के रूप में सम्पूर्ण समाज को भोगना पड़ता है l<br />
संवेदनहीन समाज का सबसे दुःखद पहलू यह है कि इसमें कायरता अति की बढ़ जाती है , लोगों का दोहरा चरित्र होता है , असली अपराधी को पहचानना कठिन होता है l </div>
Omkarhttp://www.blogger.com/profile/18371649977680168955noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8891963648369539430.post-23411658250582461702018-10-06T08:11:00.001-07:002018-10-06T08:11:50.679-07:00 दुर्बुद्धि के कारण मनुष्य की दुर्गति होती है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
इस सम्बन्ध में एक कथा है ----- राजा नहुष को पुण्य कार्यों के फलस्वरूप स्वर्ग जाने का अवसर मिला और इंद्र पद के अधिकारी हो गए l इतना उच्च पद पाकर वे मदांध हो गए और सोचने लगे कि इंद्र के अंत:पुर पर भी उनका अधिकार होना चाहिए और इन्द्राणी समेत उनकी सब सखियों को उनकी सेवा में रहना चाहिए l यह सूचना इन्द्राणी तक पहुंची तो वे बहुत विचलित हो गईं और वे इस समस्या से बचने का उपाय सोचने लगीं l <br />
इन्द्राणी ने कूटनीतिक चाल चली l उन्होंने नहुष को कहला भेजा कि वे सप्त ऋषियों को पालकी में जोतकर उस पर बैठकर अंत:पुर आयें तभी उनका स्वागत होगा l <br />
मदांध को भला - बुरा नहीं सूझता , उन्होंने तत्काल यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और सप्त ऋषियों को पालकी में जोतकर अंत:पुर चले l मार्ग की दूरी में लगने वाला विलम्ब उनसे सहन नहीं हो रहा था l ऋषि कमजोर थे , नहुष पालकी में बैठे थे l इतनी भारी पालकी को उठाकर वे धीरे - धीरे चल रहे थे l ऋषियों को दौड़ने का आदेश देते हुए वे अपनी भाषा में सर्पि सर्पि कहने लगे l ऋषियों से यह अपमान सहा नहीं गया , उन्हें क्रोध भी आ गया l उनने पालकी को धरती पर पटक दिया और शाप दिया कि सर्पि सर्पि कहने वाले को सर्प की योनि मिले l नहुष पालकी से गिरकर धरती पर आ गए और सर्प की योनि में बुरे दिन बिताने लगे l </div>
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