युगों की गुलामी के बाद भी मनुष्य ने प्रेम से रहना नहीं सीखा l स्वार्थ और लालच ने मनुष्य को संवेदनहीन बना दिया है l पुरुष के अहंकार पर यदि लगाम न लगे तो उसकी क्रूरता , निर्दयता बढ़ती जाती है l हर धर्म ने अपने ही समाज की आधी जनसँख्या --- नारी पर अत्याचार किये हैं l बस ! उनका तरीका भिन्न - भिन्न है l सती-प्रथा , बाल - विधवा , दहेज- हत्या , कन्या भ्रूण हत्या , पारिवारिक हिंसा --- यह सब पारिवारिक संवेदनहीनता को बताते हैं l ऐसे व्यक्ति जो अपने परिवार के प्रति संवेदनहीन हैं , वे समाज के हर घटक के प्रति -- मनुष्य , पशु - पक्षी , प्रकृति सम्पूर्ण पर्यावरण --- सबके प्रति संवेदनहीन होते हैं क्योंकि उनके ऊपर उनका स्वार्थ और अहंकार हावी होता है l आज समाज में ऐसे ही लोगों की भरमार है इसीलिए अबोध बच्चे - बच्चियां सुरक्षित नहीं हैं l कार्य स्थल उत्पीड़न के केंद्र बन गए हैं l विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई से और अधिक पर्यावरण प्रदूषण को आमंत्रित किया जा रहा है l
अनेक लोग , अनेक संगठन एक स्वस्थ समाज के निर्माण में प्रयत्नशील हैं लेकिन मनुष्य की एक बहुत बड़ी कमजोरी -- यश की लालसा --- उन्हें एकसूत्र में बंधने नहीं देती l इसके अतिरिक्त कहीं न कही अपने संगठन की चिंता , अपने जीवन की सुरक्षा आदि अनेक कारणों से लोग अपराधियों को जानते हुए भी , उनके अत्याचारों को समझते हुए भी चुप रहते हैं l इससे अपराधियों को और प्रोत्साहन मिलता है l
जब समाज में केवल एक धर्म होगा ---- इन्सानियत और एक जाति होगी ---- ' मनुष्य '---- तभी स्वस्थ समाज का निर्माण संभव होगा l
अनेक लोग , अनेक संगठन एक स्वस्थ समाज के निर्माण में प्रयत्नशील हैं लेकिन मनुष्य की एक बहुत बड़ी कमजोरी -- यश की लालसा --- उन्हें एकसूत्र में बंधने नहीं देती l इसके अतिरिक्त कहीं न कही अपने संगठन की चिंता , अपने जीवन की सुरक्षा आदि अनेक कारणों से लोग अपराधियों को जानते हुए भी , उनके अत्याचारों को समझते हुए भी चुप रहते हैं l इससे अपराधियों को और प्रोत्साहन मिलता है l
जब समाज में केवल एक धर्म होगा ---- इन्सानियत और एक जाति होगी ---- ' मनुष्य '---- तभी स्वस्थ समाज का निर्माण संभव होगा l
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