गलतियों की शुरुआत पारिवारिक जीवन से होती है, जिससे उत्पन्न हुई अशांति धीरे-धीरे व्यापक रूप ले लेती है । परिवार में दो ही वर्ग हैं---- पुरुष और नारी । पुरूष ने शुरु से स्वयं को श्रेष्ठ समझा, नारी के प्रति सोच गलत रही, उसे कमजोर समझकर उसका अपमान व उपेक्षा की ।
आज स्थिति ये है कि नारी को इस उपेक्षा व अपमान की आदत बन चुकी है, वो इसी को अपनी ढाल बनाकर आगे बढ़ रही है | अब समस्या नारी के सम्मान की नहीं, पुरुषों के सम्मान की है ।
किसी को उपेक्षित व अपमानित करना बहुत सरल है लेकिन स्वयं उपेक्षा सहन करना, स्वयं का सम्मान न हो, इस स्थिति को सहन करना पुरुष के लिए बहुत कठिन है |
किसी भी नारी के ह्रदय में पुरुष के लिए सम्मान उसकी वीरता, उसके पुरुषार्थ उसकी सह्रदयता के कारण ही उत्पन्न होता है किन्तु नारी के प्रति कठोर व्यवहार, नारी जाति की उपेक्षा, अपमान, शोषण, कन्या-भ्रूण-हत्या आदि अनेक ऐसे कारण हैं जिनमे पुरुष ने स्वयं को कायर साबित कर अपना सम्मान खो दिया है ।
आज हम इस वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं,, सूचना और प्रसार के साधनों ने इतनी तरक्की कर ली है कि प्रत्येक परिवार की पढ़ी-लिखी, शिक्षित नारी अपने परिवार के पुरुष सदस्यों----- पति, भाई, पिता के बारे में सब कुछ जानती है । ऐसी स्थिति में पुरुष वर्ग की दिशा गलत होने पर उन्हें परिवार में वो सम्मान नहीं मिलता । पारिवारिक जीवन में जो आंतरिक प्रसन्नता मिलनी चाहिए, जो उनके आत्मविश्वास को बढ़ाती है, वह नहीं मिलती । इसी कारण यह वर्ग कुंठित और अशांत है सुख और शांतिपूर्ण जीवन की शुरुआत हमें स्वयं से करनी है, नारी और पुरुष एक दूसरे को सम्मान देकर, परस्पर सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार कर के ही सुख-शांति से जीवन जी सकते हैं ।
आज स्थिति ये है कि नारी को इस उपेक्षा व अपमान की आदत बन चुकी है, वो इसी को अपनी ढाल बनाकर आगे बढ़ रही है | अब समस्या नारी के सम्मान की नहीं, पुरुषों के सम्मान की है ।
किसी को उपेक्षित व अपमानित करना बहुत सरल है लेकिन स्वयं उपेक्षा सहन करना, स्वयं का सम्मान न हो, इस स्थिति को सहन करना पुरुष के लिए बहुत कठिन है |
किसी भी नारी के ह्रदय में पुरुष के लिए सम्मान उसकी वीरता, उसके पुरुषार्थ उसकी सह्रदयता के कारण ही उत्पन्न होता है किन्तु नारी के प्रति कठोर व्यवहार, नारी जाति की उपेक्षा, अपमान, शोषण, कन्या-भ्रूण-हत्या आदि अनेक ऐसे कारण हैं जिनमे पुरुष ने स्वयं को कायर साबित कर अपना सम्मान खो दिया है ।
आज हम इस वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं,, सूचना और प्रसार के साधनों ने इतनी तरक्की कर ली है कि प्रत्येक परिवार की पढ़ी-लिखी, शिक्षित नारी अपने परिवार के पुरुष सदस्यों----- पति, भाई, पिता के बारे में सब कुछ जानती है । ऐसी स्थिति में पुरुष वर्ग की दिशा गलत होने पर उन्हें परिवार में वो सम्मान नहीं मिलता । पारिवारिक जीवन में जो आंतरिक प्रसन्नता मिलनी चाहिए, जो उनके आत्मविश्वास को बढ़ाती है, वह नहीं मिलती । इसी कारण यह वर्ग कुंठित और अशांत है सुख और शांतिपूर्ण जीवन की शुरुआत हमें स्वयं से करनी है, नारी और पुरुष एक दूसरे को सम्मान देकर, परस्पर सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार कर के ही सुख-शांति से जीवन जी सकते हैं ।
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