जब अंधकार सघन हो , समाज पर दुष्टता हावी हो तब कोई अकेला उसका मुकाबला नहीं कर सकता l अच्छाई को संगठित होना जरुरी है l जब शराबी , चोर - उचक्के , जुआरी अपना मजबूत संगठन बना लेते हैं तो सद्गुण संपन्न व्यक्ति भी मजबूती से संगठित हो सकते हैं l अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध खड़े होने का साहस कोई एक व्यक्ति भी करे तो धीरे - धीरे अनेक लोग उसके साथ जुड़ते जाते हैं l लेकिन जब समाज पर दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है तो धार्मिक , सामाजिक , राजनीतिक सभी क्षेत्रों में लोग अपनी - अपनी दुकान बचाने में लगे रहते हैं l अपने व्यक्तित्व को मारकर , अपने स्वाभिमान को मिटाकर दूसरों के इशारों पर चलते हैं l यह स्थिति बहुत कष्टप्रद है , इससे तनाव पैदा होता है और उससे जुडी अनेक बीमारियाँ l समय रहते जागरूकता जरुरी है l
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