जब कभी समाज पर दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है तब लोग कर्महीनता को ही कर्मयोग समझने लगते हैं और अपने को कर्मयोगी कहने में संकोच नहीं करते l जैसे एक भ्रष्टाचारी है , वह झूठ बोलकर , दूसरों का हक छीनकर, हेराफेरी कर के , जिस व्यवसाय से उन्हें समाज में सम्मान है , उसी व्यवसाय में घपला कर के धन कमाना -- जिस थाली में खा रहे हैं उसी में छेद करना --- कर्मयोग नहीं है l
कर्मयोग में उद्देश्य की पवित्रता होनी चाहिए l जब देश गुलाम था तब अनेक महान नेता अपने ओजस्वी भाषण से जनता के ह्रदय में आग पैदा कर देते थे कि वे आजादी के लिए मर मिटने को तैयार हो जाते थे l उनका पवित्र उद्देश्य था , संकल्प था कि देश को पराधीनता से मुक्त कराना है , स्वतंत्र होना है --- तो यह कर्मयोग था l
लेकिन यदि लोग पैसा लेकर ताली बजाते हैं , निठल्ले बैठे कुछ पैसा या सुविधा लेकर भाषण सुनते हैं , अपने ' आकाओं ' के कहने पर नारेबाजी और दंगे - फसाद करते हैं तो यह कर्मयोग नहीं है l समाज में ऐसे लोगों की अधिकता होने से ही जघन्य अपराध , लूटपाट और असुरक्षा बढ़ती है l जरुरी है लोग सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रहे l
कर्मयोग में उद्देश्य की पवित्रता होनी चाहिए l जब देश गुलाम था तब अनेक महान नेता अपने ओजस्वी भाषण से जनता के ह्रदय में आग पैदा कर देते थे कि वे आजादी के लिए मर मिटने को तैयार हो जाते थे l उनका पवित्र उद्देश्य था , संकल्प था कि देश को पराधीनता से मुक्त कराना है , स्वतंत्र होना है --- तो यह कर्मयोग था l
लेकिन यदि लोग पैसा लेकर ताली बजाते हैं , निठल्ले बैठे कुछ पैसा या सुविधा लेकर भाषण सुनते हैं , अपने ' आकाओं ' के कहने पर नारेबाजी और दंगे - फसाद करते हैं तो यह कर्मयोग नहीं है l समाज में ऐसे लोगों की अधिकता होने से ही जघन्य अपराध , लूटपाट और असुरक्षा बढ़ती है l जरुरी है लोग सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रहे l