सुख और दुःख वास्तव में हमारी मन: स्थिति है । फिर भी जब जीवन में कष्ट और पीड़ा का समय हो तो इसे हम अपना प्रारब्ध मानकर स्वीकार करें । यह सत्य है कि जाने - अनजाने में हमसे जो भूलें हुईं उसी के परिणाम स्वरुप जीवन में कष्ट आते हैं । हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि वे हमें कष्ट सहन करने की और सकारात्मक ढंग से उसका सामना करने की शक्ति प्रदान करें ।
जब हम कष्टों को खुशी से स्वीकार करते हैं , उस समय को रो - कर , खीज कर नहीं गंवाते , नियमित सत्कर्म करते हैं और फालतू समय को सत - साहित्य पढ़ने और सकारात्मक कार्य करने में व्यतीत करते हैं तो प्रकृति भी हम पर दयालु हो जाती है , फिर वे कष्ट , हमें कष्ट नहीं देते । उस स्थिति में भी हमें अनोखी शान्ति व आनंद प्राप्त होता है । उन कष्टों की सार्थकता हमें समझ आती है |
जब हम कष्टों को खुशी से स्वीकार करते हैं , उस समय को रो - कर , खीज कर नहीं गंवाते , नियमित सत्कर्म करते हैं और फालतू समय को सत - साहित्य पढ़ने और सकारात्मक कार्य करने में व्यतीत करते हैं तो प्रकृति भी हम पर दयालु हो जाती है , फिर वे कष्ट , हमें कष्ट नहीं देते । उस स्थिति में भी हमें अनोखी शान्ति व आनंद प्राप्त होता है । उन कष्टों की सार्थकता हमें समझ आती है |