Thursday 20 December 2018

आत्मविश्वासी ही सुख - शांति से जी सकता है

    भौतिक  द्रष्टिकोण  से  मनुष्य  चाहे  कितनी  भी  तरक्की  कर  ले  ,   वह  तब  तक  अधूरी  है  जब  तक  मन  के  विकारों  पर ---- ईर्ष्या - द्वेष ,  कामना , वासना  पर  उसका  नियंत्रण  नहीं  है  l  जब  ये  दुष्प्रवृत्तियां   उस  पर  हावी  हो  जाती  हैं   तो  उसकी  हालत  पशु , राक्षस  या  अर्द्ध विक्षिप्त  जैसी  हो  जाती  है   l   ये  बुराइयाँ  आदि  काल  से  हैं  और  इन्ही  के  कारण    बड़े - बड़े  युद्ध  हुए   l
  लोगों  को  बदलना ,  समझाना  बड़ा  मुश्किल  है  ,  उचित  यही  है  कि  हम  स्वयं  के  बदलें  l  सर्वप्रथम  आत्मविश्वासी  बने  ,  किसी  के  द्वारा  की  जा  रही  अपनी  निंदा ,  प्रशंसा  ,  मान - अपमान  के  प्रति  तटस्थ  रहे  l  जो  ऐसा  कर  रहा  है  ,  वह  उसकी  प्रवृति  है ,  वह  अपनी  आदत  से  लाचार  है   लेकिन  यदि  हम  आत्मविश्वासी  हैं   तो  उसका  हर  दांव  निष्फल  हो  जायेगा   l  

Monday 26 November 2018

सुख - शांति के लिए समस्या पर नहीं , उसके समाधान पर विचार करना चाहिए

 जीवन  में   जब  भी  परेशानियाँ  आती  हैं   तो  हमें   उसके  समाधान  पर  गहराई  से  विचार  करना  चाहिए  l  समस्या  पर  परिवार   , मित्रों  व  रिश्तेदारों  से  समस्या  की  बार - बार  चर्चा  करने  से   वह  समस्या और  बढ़  जाती  है  l   धैर्य और  शांति  से  विचार  करने  से समाधान  अवश्य  मिल  जाता  है  l
     सामाजिक  समस्याएं  तो  कुछ  लोगों  के  अहंकार  और  स्वार्थ  की  वजह  से  उत्पन्न  होती  है  l  लोगों  में  स्वार्थ  और  यश कमाने  की  लालसा  इतनी  तीव्र  होती  है   कि   वे  समस्याओं  को  हल  होने  ही  नहीं  देते   l 

Saturday 24 November 2018

बदलते समय के अनुसार रोजगार के मायने भी बदल गए

  कभी    जब  व्यक्ति  को  दस  बजे  से  शाम  पांच  बजे  तक    काम  मिल  जाये  तो   माना  जाता  था  कि  उसे  रोजगार  मिल  गया  l  अब  वक्त  बदल  गया  ,  अब  व्यक्ति  बोलना ,  सुनना ,  हँसना  ,  चिल्लाना ,  नारे  लगाना ,  बैठना , खड़े  होना  हर  बात  के  पैसे  कमाने  लगा  है  l  पेट  भरने  के  लिए    यह   बुरा  नहीं  है   l  उर्जा  का सदुपयोग  होना  जरुरी  है  l  

Thursday 22 November 2018

प्राथमिकता का चयन जरुरी है

  व्यक्तिगत  जीवन  हो  या   अन्य   कोई  भी  क्षेत्र  हो   तनाव रहित  जीवन  जीना  चाहते  हैं  तो  प्राथमिकता  का  चयन  करना  जरुरी  है  l  आज के  समय  में  अनेक  लोग  अपनी  जिम्मेदारियों  से  भागने  के लिए  पूजा -पाठ  कर्मकांड  को  एक  माध्यम  बना   लेते   हैं  l    इससे  न  तो  भगवान  प्रसन्न  होते  हैं  और  न  ही  संसार  में  सफलता  मिलती  है   l  जीवन  में  संतुलन  जरुरी  है   l  परिवार  में,  समाज  में    अपनी  जिम्मेदारियों  को   निभाने  और  ईमानदारी  से  कर्तव्यपालन  करने  के   साथ   कुछ  क्षण  भी  ईश्वर  का  नाम  लिया  तो  वह  सार्थक  है   l  ईश्वर  का निवास  तो   हमारे  ह्रदय  में  है  ,  उन्हें  जाग्रत  करना  जरुरी  है  l  

Saturday 20 October 2018

दुष्प्रवृतियों को त्यागने से ही सुख - शांति संभव है

  आज  की  सबसे  बड़ी  विडम्बना  यह  है  कि  मनुष्य  सुख - शांति  तो  चाहता  है  ,  लेकिन  उसके  लिए  स्वयं  को  बदलने  को  तैयार  नहीं  है  l  समाज  का  बहुत  बड़ा भाग  आज   नशे  का  शिकार  है  l     भारत  एक  गर्म  जलवायु  का  देश  है  l   शराब ,  मांसाहार   उन  देशों  के  निवासियों  के  लिए   उचित है  जहाँ  ठण्ड  बहुत  पड़ती  है  l  भारत  जैसे  गर्म  जलवायु   में  रहने  वाले  लोगों  के  लिए   शराब  और  मांसाहार  जहर  का  काम  करता  है  ,  इसके  सेवन  से  बुद्धि  भ्रमित  हो  जाती  है  ,  मनुष्य  विवेकशून्य  हो  जाता  है  ,  सोचने - समझने  की  शक्ति  नहीं  रहती  ,  वक्त  पर  सही  निर्णय  नहीं  ले  सकते  l   शराब  के  अधिक  सेवन  से   व्यक्ति  चाहे  साधारण  हो  या  बड़ा  अधिकारी  हो  ,  बेहोशी  की  हालत  में  रहता  है  ,  और  कोई  भी  काम  जिम्मेदारी  से  नहीं  करता  है  l 
 शराब   के  साथ  फिर  गुटका , तम्बाकू ,  सिगरेट ,  और  समाज  में   विभिन्न  तरीके  से  परोसी  जाने  वाली  अश्लीलता  ---- इन  सबकी   वजह  से  ही   समाज  में  अपराध ,  हत्याएं ,  दुष्कर्म   और  प्राकृतिक  प्रकोप  बढ़े  हैं   l  जरुरी  है  कि  मनुष्य  अपना  हठ  छोड़कर  सन्मार्ग  पर  चले   l  

Thursday 18 October 2018

स्वस्थ समाज का निर्माण जरुरी है

 अभी  तक  जो  विकास  हुआ  है  वह  भौतिक  है   l  मनुष्य  के  व्यक्तित्व  के  दो  पक्ष  हैं -- आंतरिक  और  बाह्य  l  यह  विकास  बाह्य  है  l  आंतरिक  द्रष्टि  से  मनुष्य  अभी  भी   असभ्य  है  ,  पशु - तुल्य  है  ,  उसके  भीतर  का  राक्षस  अभी  मरा  नहीं  है  l    ऐसा  इसलिए  है  क्योंकि  जीवन  को  सुख - सुविधा संपन्न  बनाने  के  तो  बहुत  प्रयास  हुए  ,  लेकिन  आत्मिक  विकास  के  कोई  प्रयास  नहीं  हुए  l   इसलिए  धर्म ,  जाति  के  नाम  पर  बहुत  अत्याचार  हुए ,  अमीरी - गरीबी  का  भेदभाव  अपने  चरम  पर  है ,  युगों  से  महिलाओं  पर  अत्याचार  हुए  l  अत्याचार , अन्याय  इसलिए  भी  बढ़ता  गया   क्योंकि  समर्थ  पक्ष  ने  समाज  के  प्रमुख  लोगों  और  धर्म  के  ठेकेदारों  को  अपने  पक्ष  में  कर  इस  बात  को  लोगों  के  दिलोदिमाग  में  भरा  कि  जो  पीड़ित  हैं  उनका  भाग्य  ही  ख़राब  है  और  उनका  जन्म  अत्याचार  सहने  के  लिए  ही  हुआ  है  l
  अन्याय  और  अत्याचार  के  विरुद्ध  आवाज  न  उठाने  से  अत्याचारियों  के  हौसले  बुलंद  होते  गए   और  उन्होंने  दूसरों  को  सताना ,  अपनी  हुकूमत  चलाना ,  अपने  से  तुच्छ  समझना ,  उत्पीड़ित  करना  अपना  जन्म  सिद्ध  अधिकार  समझ  लिया  l  धीरे - धीरे  यह  उनकी  आदत  बन  गई   और  खानदानी  बीमारी  की  तरह  एक  पीढ़ी  से  दूसरी  पीढ़ी  में  आती  रही   l
  पीड़ित  पक्ष  को  अपनी  भाग्यवादी  सोच  को  बदलना  होगा  कि---  यह  दुर्भाग्य  नहीं , कमजोरी  है  l 
अपने  ज्ञान ,  जागरूकता ,  संगठन  और  आत्मबल  के  सहारे  ही   अत्याचारी  का  मुकाबला  किया  जा  सकता  है   l   

Wednesday 17 October 2018

संसार में सुख - शान्ति के लिए ह्रदय की पवित्रता अनिवार्य है l

आज  संसार  में  अशान्ति  का  सबसे  बड़ा  कारण  है  --- मनुष्य  के  मानसिक  विकार -- काम , क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार  आदि  l  यह  सब  विकार  मनुष्य  के  ह्रदय  को  अपवित्र  कर  देते  हैं   और  इसी  अपवित्रता  के  कारण  विभिन्न  अपराध , दंगे - फसाद होते  हैं   l  शारीरिक  शुद्धता  का  कोई  मतलब  नहीं  होता  क्योंकि  सबके  शरीर  में  चाहे  वह  पुरुष  हो  या  नारी  मल-मूत्र ,  खून  और  न  जाने  क्या - क्या  भरा  है  जो   चिकित्सा  के  उपकरण  की  सहायता  से  देखा  जा  सकता  है  l  लेकिन  मन  के  विकारों  को  किसी  उपकरण  की  सहायता  से  देखा  नहीं  जा  सकता  ,  यह  तो  व्यक्ति  की  क्रिया  और  उसके  परिणामों  से समझ  में  आता  है   l  इन  विकारों  की  वजह  से  मनुष्य  की  बुद्धि  भ्रमित  हो  जाती  है   और  वह   अनैतिक ,  अमर्यादित  कार्य  कर  के  संसार  में  अशांति  उत्पन्न  करता  है  l  इसलिए  हमारा  सारा  प्रयास  मन  को  पवित्र  बनाने  पर  होना  चाहिए   l  

Tuesday 16 October 2018

दोगलापन समाज के लिए अभिशाप है

 कहते  हैं  -- अच्छाई  में  गजब  का  आकर्षण  होता  है  ,  इसलिए  पापी  से  पापी  भी  अपने  परिवार  में ,  समाज  में  स्वयं  को  अच्छा  दिखाना  चाहता    है  l  उसके  व्यक्तित्व  के  अँधेरे  पक्ष  पर ,  उसके  अवगुणों  पर  परदा  पड़ा  रहे  ,  इसके  लिए    ऐसे  लोगों  को   कितनों  के  आगे  नाक  रगड़नी  पड़ती  है ,  कितने  ही  लोगों  को   मुंह  बंद  रखने  के  लिए  धन  देना  पड़ता  है   l  फिर  इस  धन  को  कमाने  के  लिए  बेईमानी ,  भ्रष्टाचार  करना  पड़ता  है  l   किसी  गड़बड़ी  में  फँस  न  जाएँ ,  यह  तनाव  दिमाग  में  रहता  है   l  इस  तनाव  को  दूर करने  के  लिए  नशा  करते  हैं   l  धीरे - धीरे  जीवन  पतन  के  गर्त  में  गिरता  जाता  है  l 
   बाह्य  रूप  से  देखने  पर  ऐसे  लोगों  का  सुख - वैभव  का  जीवन  दिखाई  देता  है   लेकिन  वास्तविकता  में   कितनी  ' बेचारगी '  है  l 
  मनुष्य  अपनी  कमजोरियों  के  कारण  ही  अपनी  दुर्गति   कराता  है  l  बेहतर  यही  है    कि  जैसे   वास्तव  में  हैं ,  वैसे  ही  दिखाई  दें   l  कहते  हैं -- मनुष्य  के  व्यक्तित्व  में  इतने  छिद्र  होते  हैं   कि  एक  दिन  सच्चाई  बाहर  आ  ही  जाती  है  l  अपनी  कमजोरियों  को  ,  अपनी  गलती  को  स्वीकार  करना   ही  सबसे  बड़ी  वीरता  है   ,  ऐसा  कर    के  ही  व्यक्ति  तनावरहित  जीवन  जी  सकता  है   l  

Sunday 14 October 2018

अपराधी का सबसे बड़ा दंड है ---- उसका बहिष्कार करो

  यह  समाज  पुरुष  और  नारी  से  मिलकर  बना है   l  मनुष्य  की   दुष्प्रवृत्तियों  के  कारण  ही  अपराध  होते  हैं   l  महिलाओं  का  चरित्र  हनन  और  छोटे - छोटे  बच्चे - बच्चियों  के  साथ  जो  जघन्य  अपराध  होते  हैं   उनके  सबूत,  गवाह  आदि   नहीं  मिल   पाते  ,  अधिकांश  अपराधी  बच  जाते  हैं  ,  समाज  में  रौब  से  घूमते  हैं ,  निरंकुश  हो  कर  और  अपराध करते  हैं  l   जो  सच  है , उसे  परिवार  व  समाज  जानता  है   इसलिए   अपना  दिल  मजबूत  कर  अपराधी का  परिवार ,  समाज  व  कार्यस्थल में  बहिष्कार  अवश्य  करें  l     न्याय  की  प्रक्रिया   होती  है ,  प्रकृति  से  भी  दंड  ' काल ' निर्धारित  करता  है  l  कम  से कम   अपराधी  का  बहिष्कार  कर  के ,  उससे  दूरी  बनाकर     समाज  को  जागरूक  किया  जा  सकता  है   l  इससे  अनेक  लोग  अपराधी  के  चंगुल  में  आने  से बच  जायेंगे   और  अपराध  पर  नियंत्रण  अवश्य  होगा   l  

Saturday 13 October 2018

जागरूक समाज में ही अपराध पर नियंत्रण संभव है

  आज  के  समय  में   सही  व्यक्ति  की  पहचान  मुश्किल  हो  गई  है  l  देखने  में  लगता  है  कि  व्यक्ति  बहुत  शिक्षित  है ,   सभ्य   है ,    उच्च  पद  पर  है ,  सभ्रांत  नागरिक  है   लेकिन  उसके  पीछे  कितनी  कालिक  है  ,  यह  जानना  हर  व्यक्ति  की  समझ  से  बाहर  है  l    अब  लोगों  की  रूचि   अपराधी  का  बहिष्कार  करने  , उसके  विरुद्ध  खड़े  होने  की  नहीं   हैं   l  उसके  माध्यम  से  अपने  स्वार्थ   पूरे   करने  में   है  l  अनेक  लोग  अपराधी  को  संरक्षण  देते  हैं   और  अनेक  उसके  संरक्षण  में  पलते  हैं   l  शक्ति  और  बुद्धि  का  दुरूपयोग   समाज  में   अनेक   अपराधों    को  जन्म  देता  है   l   अपनी   कमियां  उजागर  न  हों  इसलिए  लोग    चुप  रहते  हैं    l  जब  समाज  जागरूक  होगा  ,  तत्कालीन  लाभ  न  देखकर   दूरदर्शिता  से   निर्णय  लेगा   तभी  सुख - शांति  संभव  होगी   l 

Friday 12 October 2018

संवेदनहीनता समाज में अनेक सामाजिक बुराइयों को जन्म देती है

 युगों  की  गुलामी  के  बाद  भी  मनुष्य  ने  प्रेम  से  रहना  नहीं  सीखा  l  स्वार्थ  और  लालच  ने  मनुष्य  को  संवेदनहीन  बना  दिया  है  l  पुरुष  के  अहंकार  पर  यदि लगाम  न  लगे  तो  उसकी  क्रूरता , निर्दयता  बढ़ती  जाती  है  l  हर  धर्म    ने  अपने  ही  समाज  की  आधी  जनसँख्या --- नारी  पर  अत्याचार  किये  हैं   l  बस !  उनका  तरीका   भिन्न - भिन्न  है  l    सती-प्रथा ,  बाल - विधवा ,  दहेज- हत्या , कन्या भ्रूण हत्या ,  पारिवारिक  हिंसा --- यह  सब   पारिवारिक  संवेदनहीनता  को  बताते   हैं  l  ऐसे  व्यक्ति  जो  अपने  परिवार  के  प्रति  संवेदनहीन  हैं  ,  वे  समाज  के  हर  घटक  के  प्रति  -- मनुष्य , पशु - पक्षी ,  प्रकृति  सम्पूर्ण  पर्यावरण --- सबके  प्रति  संवेदनहीन  होते  हैं    क्योंकि  उनके  ऊपर  उनका  स्वार्थ  और  अहंकार  हावी  होता  है   l   आज   समाज    में  ऐसे  ही  लोगों  की  भरमार  है   इसीलिए  अबोध  बच्चे - बच्चियां  सुरक्षित  नहीं  हैं  l   कार्य स्थल  उत्पीड़न  के  केंद्र  बन  गए  हैं   l   विकास  के  नाम  पर   पेड़ों  की  कटाई  से  और  अधिक  पर्यावरण   प्रदूषण  को  आमंत्रित  किया  जा  रहा  है  l
  अनेक  लोग ,  अनेक  संगठन   एक  स्वस्थ  समाज  के  निर्माण  में  प्रयत्नशील  हैं   लेकिन  मनुष्य  की  एक  बहुत  बड़ी  कमजोरी -- यश  की  लालसा --- उन्हें   एकसूत्र  में   बंधने  नहीं  देती   l    इसके  अतिरिक्त  कहीं  न  कही   अपने  संगठन  की  चिंता ,  अपने  जीवन  की  सुरक्षा   आदि  अनेक  कारणों  से  लोग  अपराधियों  को  जानते  हुए  भी ,  उनके  अत्याचारों  को  समझते  हुए  भी  चुप  रहते  हैं   l  इससे  अपराधियों  को  और  प्रोत्साहन  मिलता  है    l 
  जब  समाज  में  केवल  एक  धर्म  होगा ---- इन्सानियत   और  एक   जाति  होगी  ---- ' मनुष्य '---- तभी    स्वस्थ  समाज  का  निर्माण  संभव  होगा   l   

Thursday 11 October 2018

दंड न मिलने के कारण अपराध को प्रोत्साहन मिलता है

 अपराध  चाहे  छोटा  हो  या  बड़ा  ,  जब  अपराधी  को  उसके  लिए  दंड  नहीं  मिलता  तो  दूसरों  को  भी  प्रोत्साहन  मिलता  है  l  भ्रष्टाचार ,  बेईमानी  आदि  में  तुरत  लाभ  ज्यादा  है  ,  इसका  भविष्य  में  क्या  परिणाम  होगा  ,  इस  बारे  में  लोग  नहीं  सोचते  l  तुरत  लाभ  का  आकर्षण  इतना  अधिक  है  कि  कोई  व्यक्ति ,  कोई  संस्था  इससे  अछूती  नहीं  बचती  l  जो  लोग  जघन्य अपराध  कर  के  बच  जाते    , वे  और  इस  क्षेत्र  के  विशेषज्ञ  बन  जाते  हैं  l  जब  कोई  समाज  इसी  तरह   लम्बे  समय  तक  अपराधियों  को   छोड़  देता  है  तो   एक   समय     ऐसा  आता  है   जब   हमारे  चारों और  ऐसे  ही  व्यक्ति  होते  हैं  जो  किसी  न  किसी  अपराध  में  संलग्न  होते  हैं   l  अपराध  उनकी  आदत  बन  जाता  है  l  

Monday 8 October 2018

बुद्धि और शक्ति के दुरूपयोग से समाज में अराजकता बढ़ती है

  नशा ,  शराब , गुटका , तम्बाकू  आदि    के  कारण  व्यक्ति  का  चारित्रिक  पतन  होता  है  ,  लेकिन  अपराध  और  संस्कृति  को  पतन  की  और  ले  जाने  वाली   ह्रदय विदारक  घटनाएँ  तभी  बढ़ती  हैं  बुद्धि  और  शक्ति  से  संपन्न  व्यक्ति   इन  घटनाओं  को   छोटी  और  साधारण  कहकर  नजरंदाज  कर  देते  हैं   l  इससे अपराधियों  के  हौसले  बढ़ते  हैं   l  अपराध  इसलिए  भी  बढ़ते  हैं  क्योंकि   ऐसे  दुर्बुद्धि ग्रस्त  लोग  समाज  में  अपना  रुतबा  और  भय   कायम  करने  के  लिए  अपराधियों  की  मदद  लेते  हैं  l  कभी  विदेशी  आततायियों  से  बेटियों को  बचाने  के  लिए   परदा - प्रथा  शुरू  हुई  थी  ,  अब  देशी  आततायियों  से  बेटी बचाना  कठिन  समस्या  है   l   एक  साधारण ,  अति  सामान्य  व्यक्ति  यदि  कोई  अपराध  करता  है  तो  उसका  प्रभाव  उस  पर और  अधिक - से - अधिक   उसके  परिवार  पर  पड़ता  है  l   लेकिन   जब  बुद्धि  ,  धन  और  शक्ति  से  संपन्न  व्यक्ति  अपराध  करते  हैं ,  अपराधियों  को  संरक्षण  देते  हैं   तो  उसका  दुष्प्रभाव  सम्पूर्ण  समाज  और  राष्ट्र  पर  पड़ता  l  छोटी - छोटी  बच्चियों  की  चीखों  और  आहों  से  प्रकृति  को  भी  कष्ट  होता  है  और  उसका  परिणाम  सामूहिक  दंड  के  रूप  में  सम्पूर्ण  समाज  को  भोगना  पड़ता है  l
  संवेदनहीन   समाज  का  सबसे  दुःखद  पहलू   यह  है  कि  इसमें  कायरता   अति  की  बढ़  जाती  है  ,  लोगों  का  दोहरा  चरित्र  होता  है  ,  असली  अपराधी  को  पहचानना  कठिन  होता  है  l  

Saturday 6 October 2018

दुर्बुद्धि के कारण मनुष्य की दुर्गति होती है

 इस  सम्बन्ध  में   एक  कथा  है -----  राजा  नहुष   को  पुण्य  कार्यों  के  फलस्वरूप  स्वर्ग  जाने  का  अवसर  मिला   और  इंद्र  पद  के  अधिकारी  हो  गए  l   इतना  उच्च  पद  पाकर  वे  मदांध  हो  गए   और  सोचने  लगे  कि  इंद्र  के  अंत:पुर  पर  भी  उनका  अधिकार  होना  चाहिए   और  इन्द्राणी  समेत  उनकी  सब  सखियों  को   उनकी  सेवा  में  रहना  चाहिए  l  यह   सूचना    इन्द्राणी  तक  पहुंची  तो  वे  बहुत  विचलित  हो   गईं  और  वे  इस  समस्या  से  बचने  का  उपाय  सोचने  लगीं  l 
  इन्द्राणी  ने   कूटनीतिक   चाल  चली  l  उन्होंने  नहुष  को  कहला  भेजा  कि   वे  सप्त ऋषियों  को  पालकी  में  जोतकर  उस  पर  बैठकर   अंत:पुर  आयें  तभी  उनका  स्वागत  होगा   l 
मदांध  को  भला - बुरा  नहीं  सूझता  ,  उन्होंने   तत्काल  यह  प्रस्ताव  स्वीकार  कर  लिया   और  सप्त ऋषियों  को  पालकी  में  जोतकर   अंत:पुर  चले   l   मार्ग  की  दूरी  में  लगने  वाला  विलम्ब  उनसे  सहन  नहीं  हो  रहा  था   l  ऋषि  कमजोर  थे  ,  नहुष  पालकी  में  बैठे  थे  l  इतनी  भारी  पालकी  को  उठाकर  वे  धीरे - धीरे  चल  रहे  थे  l    ऋषियों  को  दौड़ने  का  आदेश  देते  हुए   वे  अपनी  भाषा  में  सर्पि  सर्पि  कहने  लगे   l  ऋषियों  से  यह  अपमान   सहा  नहीं  गया  ,  उन्हें  क्रोध  भी  आ  गया   l  उनने  पालकी  को  धरती  पर  पटक  दिया   और  शाप  दिया   कि  सर्पि  सर्पि  कहने  वाले  को  सर्प  की  योनि  मिले   l  नहुष  पालकी  से  गिरकर  धरती  पर  आ  गए  और  सर्प  की  योनि  में  बुरे  दिन  बिताने  लगे  l  

Friday 5 October 2018

संसार में अशांति का कारण मनुष्य का नैतिक पतन है

 कहते  हैं  हम  सबके  मन  के  तार  ईश्वर  से  जुड़े  हैं  ,  इसलिए   व्यक्ति   की  भावनाएं  कैसी  हैं  , उसके  अंत:करण  में   कैसे  विचार - भावनाएं  हैं  यह  सब  ईश्वर  जानते  हैं  l  इस  सम्बन्ध  में  एक  कथा  है  ---- नारदजी  एक  बार  धरती  पर  भ्रमण  को  आये   l  उन्होंने  देखा  धरती  पर  धार्मिक  उत्सव , कर्मकांड  बहुत  हो  रहे  हैं  ,  सब  लोग  अपने - अपने  तरीके  से  भक्ति  में  मग्न  हैं  ,  लेकिन  अशांति  बहुत  है ,  मनुष्य , पशु - पक्षी ,  पर्यावरण  --- कहीं  कोई  रौनक  नहीं  है ,  अपराध , दुष्कर्म ,  लूटपाट ,  आत्महत्या  आदि  नकारात्मकता  बढ़  गई  है  l    नारदजी  का  मन  नहीं  लगा  और  उन्होंने  भगवान  से  यह  सब  व्यथा  कही   और    मानव  के  कल्याण  का  उपाय पूछा   l   भगवान  ने  कहा -- सच  जानने  के  लिए    तुम  उस  समय  धरती  पर  जाओ  , जब   पृथ्वीवासी  अपने - अपने  भगवान  को  सुला  देते  हैं   l   ईश्वर  के  नाम  का , उनके  स्थान  का  उपयोग   जिस  तरह  करते  हैं   वह  अब  प्रकृति  से  सहन  नहीं  हो  रहा  है   l 
  भगवान  ने  कहा  -- जब  ये  धार्मिक  स्थल  शिक्षा  के  और  लोक कल्याण  के  केंद्र  बनेंगे ,  उनके  माध्यम  से  सद्प्रवृतियों  और  सद्विचारों  का  प्रचार - प्रसार  होगा   तभी  संसार  में  सुख - शांति  होगी  l
  मनुष्यों  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  देखकर  नारदजी  का  मन  व्यथित  हो  गया  l 

Monday 1 October 2018

अति का अंत होता है

  इस  संसार  में  जब  भी  अत्याचार  अपने  चरम  पर  पहुंचा  है ,  उसका  अंत  हुआ  है   l  संसार  तो  केवल  वही  देख  पाता  है  ,  जो  इन  आँखों  से  दीखता  है  ,  जिनका  सबूत  होता  है  l  जो  अत्याचारी  है  और  अहंकारी  है   वह  अपनी  ओछी  हरकतों  को  इस  तरह  अंजाम  देता  है   जिन्हें  या  तो  सहन  करने  वाला  जानता  है  या  फिर  ईश्वर  जानते  हैं  l  जब  अत्याचार  और  अन्याय  की  अति  हो  जाती है    तब  उसका  अंत  अवश्य  होता  है ,  उसके  लिए  माध्यम  चाहे  कोई  भी  हो  l
   रावण  के  पास  सोने  की  लंका  थी  ,  वेद  व  शास्त्रों  का  ज्ञाता  था  ,  शिव भक्त  था  ,    एक  लाख  पूत  और  सवा लाख  नाती --- भरा - पूरा  परिवार  था  लेकिन  उसे  अपनी  शक्ति  का अहंकार  था  l  ऋषि - मुनियों  ने  उसका  क्या  बिगाड़ा  था   जो  उसने  उनके  यज्ञ, हवन  आदि  पवित्र  कार्यों  को  अपवित्र  किया   उसके   अत्याचारों  की  जब  अति  हो  गई   तब  भगवान  राम  ने  रीछ,  वानरों  की  सेना  लेकर  उसका  अंत  किया  l     इसी  तरह  कंस  ने  अति के  अत्याचार  किये   l  जब  उसे  यह  पता चला  कि  कृष्ण  का  जन्म  हो  चुका   है  ,  तो  उसने  कितने  ही   बालकों  का  वध  करा  दिया  l  मासूम  और  निर्दोष  पर  अत्याचार  प्रकृति  कभी  बर्दाश्त  नहीं  करती  l   कंस ,  दुर्योधन  आदि  सभी  अत्याचारियों का  अंत  हुआ  l 
  जो  गरीब  है ,  निर्धन  है ,  जिसे  दो  वक्त  की  रोटी  की  चिंता  है ,  अपनी  बेटी  की  कुशलता  और  उसके  विवाह  की  चिंता  है  ,  वह  क्या  किसी  पर  अत्याचार  करेगा  l  अत्याचार , अन्याय  और  शोषण  वही  करते  हैं   जो  हर  तरह  से  समर्थ  हैं  ,  दूसरों  को  सताना ,  उनका  शोषण  करना  और  ऐसा  कर  के  आनंदित  होना  उनकी  आदत  होती  है   l  युगों  से  यही  हो  रहा  है  ,  अत्याचारी  का अंत  होता  है ,  फिर  नए  अत्याचारी  पैदा  हो  जाते  हैं   l  यह  उसका  बढ़ - चढ़ा  अहंकार  है   जो  अंत  होते  हुए  भी  अपने  पापों  को  स्वीकार नहीं  करता  ,  आने  वाली  पीढ़ियों  को  सिखाता नहीं  कि  देखो !  इतने  पाप  कर्म  किये  उसका  यह  नतीजा  निकला   l  इसका  परिणाम  यही  होता  है  आने  वाली  पीढ़ियाँ  कम  उम्र  से  ही  अपराध  में  लग  जाती  हैं    l  एक  स्वस्थ  समाज  का  निर्माण  तभी   हो  सकता  है   जब  व्यक्ति   पाप - पुण्य  का  अंतर  समझे ,  अपनी  गलती  को  स्वीकार  कर   स्वयं  को  सुधारने  का प्रयास  करे  l  

Wednesday 26 September 2018

तनाव रहित जीवन जीने के लिए जरुरी है कि हम ऋषियों और आचार्य द्वारा समझाई गई चेतावनी को समझें

 भगवान  ने  गीता  में  कहा है --- काल  बड़ा  बलवान  होता  है  l ----- इसलिए  वक्त  से  हमेशा  डरकर  रहना  चाहिए ,  वक्त  का मिजाज  कब  बदल  जाये  कोई  नहीं  जानता  l
  सभी धर्मग्रंथों  में  इस  बात  को  कहा  गया  है  कि  कभी  अहंकार न  करे   l  अहंकारी  अपने  अहंकार  को  पोषित  करने  के  लिए   , स्वयं  को  श्रेष्ठ  सिद्ध  करने  के  लिए  दूसरों  का  शोषण  करता  है ,  अत्याचार  और  अन्याय  करता  है  l   शोषण  विनाश  का  प्रतीक  है  ,  इसका  परिणाम  अत्यंत  विनाशकारी  होता  है  l 
   समय   के  छोटे - छोटे  बिन्दुओं  से  मिलकर   यह  जीवन  बना  है   l  इस  अनमोल  जीवन  में   सत्कर्म  की  पूंजी  एकत्र  करें   l   लोगों   पर  अत्याचार  कर  के ,  उन्हें  सता  कर  उनकी  आहें  एकत्र  न  करें  l
  जियो  और  जीने  दो '  का  सिद्धांत  अपनाकर  ही  संसार  में  सुख शांति  स्थापित  हो  सकती  है  l 

Monday 24 September 2018

समाज में अपराध क्यों बढ़ रहे हैं ?

      अपराध  इसलिए  तेजी  से  बढ़ते  हैं  क्योंकि  यह  समाज  ही  अपराधियों  की  फसल  तैयार  करता  है  l 
   कई  बार  ऐसा  होता  है   कि  कोई  व्यक्ति  जिसने  जघन्य   अपराध   किया  है  , वह   सबूत    न  मिलने  से  बच    जाता  है   l   समाज  उसकी  सच्चाई  जानता  है  फिर  भी  उससे  निकटता  रखते  हैं ,  उसे  सम्मान  देते  हैं  l  इससे  उसकी  अपराध  करने  की  प्रवृति  को  और  बल  मिलता  है  l 
   कभी  परिस्थितियां  ऐसी  उत्पन्न  हो  जाती  हैं   कि  अपराधी  आत्मसमर्पण  कर  देता  है  ,  जैसे  डाकुओं  ने  किया  था   तो   उन्हें   समाज  में  मिलकर  जीने  का  अवसर  मिल  जाता  है   l    संभव  है  कि  समर्पण  के  बाद  वे  कोई  अपराध  न  करें   लेकिन  संस्कार  नहीं  मिटते  l  यह  अपराधी  प्रवृति   उनके  बच्चों  में भाई - बंधू  में  आ  जाती  है   l  जब  अनेक  महान , सज्जन  लोगों  की  संतानें  पथ भ्रष्ट  हो  जाती  हैं  , तो  अपराधी  जिसने  चाहे  अपराध  करना  छोड़  दिया  हो ,  उसकी  संताने कैसे  संत - सज्जन  होंगी  ?   ये  ही  लोग  अपने  संस्कारों  के  अनुरूप  अपराध  करते  हैं   और  समाज  में  अशांति - अव्यवस्था  फैलाते  हैं   l
    समाज  को  जागरूक  होना  होगा  कि  वह  अपने   निजी  स्वार्थ  को  छोड़कर  अपराधियों  से   दूरी   बनाये  l  जिनसे  मित्रता  करते  हैं ,  उनके  परिवार  की   ,  उसके  पिता  व  दादा  की  जानकारी  हासिल  करें  कि  कोई  किसी  जघन्य  अपराध  में  तो  सम्मिलित  नहीं  रहा  l   दुष्ट  संस्कार  कब  हावी  हो  जाएँ ,  अपराध  को  अंजाम  दें  कहा  नहीं  जा  सकता  l  

Saturday 15 September 2018

जब धर्म , शिक्षा और चिकित्सा व्यवसाय बन जाये तो उस राष्ट्र की संस्कृति का पतन होने लगता है

  पतन  की  राह  बड़ी  सरल  है  I  जब  कामना , वासना  और  लालच  मन  पर हावी  हो  जाता  है   तब  व्यक्ति  को    धर्म ,  शिक्षा  और  चिकित्सा    जैसे  क्षेत्रों  की  पवित्रता  और  सेवा  भाव  से  कोई  मतलब  नहीं  रहता ,  इन  दुष्प्रवृत्तियों  में  अँधा  हुआ  व्यक्ति   अपने  साथ   सम्पूर्ण  समाज  को  ,  आने  वाली  पीढ़ियों  को  पतन  के  गर्त  में  धकेलता    है  I  कभी   महान  समाज  सुधारकों  ने  अनाथों ,  अपंगों , मजबूर  और  बेसहारा   बच्चे ,  बच्चियों  , महिलाओं  की  सुरक्षा   के  लिए  अनेक  कार्य  किये  ,  इतिहास में  उन्हें  स्थान  मिला  I  आज  की  स्थिति  देखकर  उनकी  आत्मा  को  कितना  कष्ट  होता  होगा  ,  सफेद पोश  के  पीछे  कितनी  कालिख  है  I
  केवल  समस्या  पर  चर्चा  करने  से  समस्या नहीं  सुलझती   I    पवित्र  और  सेवा  के    क्षेत्रों  को  व्यवसाय  बनाने  वालों  को  अब  सुधरना  होगा ,  बहुत  धन  कमा  लिया ,  अपनी  ओर  उम्मीद  लेकर  आने  वालों  का  हर  तरह  से  बहुत  शोषण  कर  लिया ,  संरक्षक  की  आड़  में  उत्पीड़न  किया  I  ईश्वर के  न्याय  से  डरो  I
  अभी  भी  वक्त  है  ,  इन  क्षेत्रों  के  पुरोधा    संकल्प  ले  लें  कि  कलंक  का  टीका  लगाकर  नहीं  जाना  है  ,  अपनी  कमजोरियों  पर  नियंत्रण  रख   स्वस्थ  समाज  का  निर्माण  करना  है  I  अच्छाई  की ओर  एक  कदम  बढ़ाना  जरुरी  है   I

Thursday 6 September 2018

' जियो और जीने दो ' के सिद्धांत को जब लोग स्वीकार करेंगे , तभी समाज में शांति होगी

 आज  समाज  में  ऐसे  लोगों  की  अधिकता  है   जो  दूसरों  को  आगे  नहीं  बढ़ने  देना  चाहते   l  ऐसे  लोग  अपनी  योग्यता  बढ़ाने  का  प्रयास  नहीं  करते  ,  और  अपनी  सारी   ऊर्जा  दूसरों  को  नीचा  दिखाने,  उन  पर  अपनी  हुकूमत   चलाने  में  खर्च  कर  देते  हैं  l   ये  एक  विशेष  प्रकार  की  मानसिकता  के  लोग  हैं  ,  इन्हें  किसी  जाति  के  दायरे  में  नहीं  बाँधा  जा  सकता  क्योंकि   ऐसे  व्यक्ति   किसी  के  सगे  नहीं  होते  l  ईर्ष्या - द्वेष  इतना  होता  है  कि  अपने  ही  लोगों  का  हक  छीनने,  उनकी  तरक्की  के  रास्ते  में  बाधा  डालने  के  लिए   वे  गैर  का  सहारा  लेते  हैं   l  जब  समाज  में  नैतिक  गिरावट  होती  है  ,  कायरता बढ़  जाती  है  तब  अच्छे - बुरे की  पहचान  कठिन  हो  जाती  है  l  वास्तव  में  अपराधी  कौन  है ,  निर्दोष  कौन  है ,जानना  कठिन  है  l  विचारों  में  परिवर्तन  हो  , संवेदना  विकसित  हो ,  इसी  की आवश्यकता  है  l 

Tuesday 4 September 2018

वातावरण की नकारात्मकता व्यक्ति का सुख - चैन छीन लेती है

 वातावरण  की नकारात्मकता   व्यक्ति  को  शारीरिक  और  मानसिक  दोनों  तरह  से  अस्वस्थ  कर  देती  है   l  इसके  लिए  सम्पूर्ण  समाज  जिम्मेदार  है  l  विज्ञान  ने  यह  स्वीकार  कर  लिया  है  कि  हम  जो  कुछ  बोलते  हैं ,  हमारी  आवाज   वातावरण  में  रहती  है ,  नष्ट  नहीं  होती  l   तब  मनुष्य  अपने  स्वाद ,  अपनी  खुशी  और  अपनी    विकृत  मानसिकता  के   कारण  निरीह  पशुओं ,  प्राणियों  और  अबोध  बालिकाओं  पर  जो  अत्याचार  करता  है  ,  उनकी  चीखें ,  आहें ,  उनके  आंसू   इसी  वातावरण  में  रहते  हैं   l   मनुष्य  जो  प्रकृति  को  देता  है   उसी  का  परिणाम  उसे   लाइलाज  बीमारियाँ ,  मानसिक  अशांति ,  प्राकृतिक  प्रकोप  आदि  सामूहिक  दंड  के  रूप में  मिलता  है  l 
  अब  समय  आ  गया  है   --- यह  सारे  संसार  के  प्रबुद्ध  और  विवेकशील  लोगों  को  मिलकर  तय  करना  है  कि   --- संसार  को  कैसा  होना  चाहिए ---  युद्ध , अशांति , बीमारी ,  हत्या  और  अपराधों  का              या   सुख - चैन  और  मानसिक  शांति  का  संसार  हो   l 

Thursday 9 August 2018

समाज में व्याप्त विषमताएं अशांति उत्पन्न करती हैं

 समाज  में  जात - पांत ,  ऊँच - नीच   और   अमीर - गरीब    के  बीच  गहरी  खाई  होने  से   अशांति  उत्पन्न  होती  है  l  कितने  भी  नियम  क्यों  न  बन  जाएँ  ,  जब  तक  व्यक्ति  की  मानसिकता  में  परिवर्तन  नहीं  होगा  ,  स्थिति  में  सुधार  संभव  नहीं  है   l  इतनी  तरह  की  विषमता  होने  के  अतिरिक्त   अब  समाज  में  एक  नई  तरह  की  विषमता  उत्पन्न  हो  गई  है  ,  उसका  आधार  है  ---- स्वार्थ   l    जो  समर्थ  हैं ,  शक्ति  संपन्न   हैं   वह  अपनी  शक्ति  और  धन  को  और  बढ़ाना  चाहता  है  ,  जिन  लोगों  से  उसके  इस  स्वार्थ  की  पूर्ति  होती  है   उनका  एक  वर्ग  बन  जाता  है   l  इन  लोगों  का  एक  ही  उद्देश्य  है -- अपने  स्वार्थ  व  अहंकार  की  पूर्ति  करना   l  जो  इनके  इस  उद्देश्य  की  पूर्ति  न  करे  वह    दूसरे  वर्ग  का  होगा   l  आज  के  समय  में  इन्ही  दोनों  वर्गों  की  खींचातानी  चलती  है   l  

Wednesday 8 August 2018

WISDOM ----- चिंता हमारे दुःखों को कम नहीं करती , बल्कि वर्तमान की खुशियों से हमें दूर कर देती है

 '  चिंता  हमारे  जीवन  को  घुन  की  तरह  खाती  है  इस  कारण  मनुष्य  कभी  किसी  लक्ष्य  तक  नहीं  पहुँच  पाता  l ' 
   लगभग  92  प्रतिशत  व्यक्तियों  की   चिंताएं  उन  कारणों  को  लेकर  होती  हैं  जिन्हें   बदल  पाना  हमारे  हाथ  में  नहीं  है  l   व्यक्ति  के  जीवन में    कुछ  चिंता   ही  ऐसी  होती  हैं  जिनके  पीछे  सार्थक  कारण  होता  है   ,     उनकी  चिंता  में  अपनी  ऊर्जा  बरबाद  न  कर  के  ,  उनके  सम्बन्ध  में  चिंतन  करना  चाहिए  l   उचित  समय  पर  विवेक  से   निर्णय  लेकर   उनका  समाधान  हो  सकता  है  और  सार्थक  परिणाम  प्राप्त  किया  जा  सकता  है  l   ईश्वर  की  प्रार्थना  और  सत्कर्मों  से  कठिन  समय  में  जीवन  को  सही  दिशा  मिलती  है  l  

Monday 6 August 2018

समाज के नैतिक पतन का मूल कारण है ---- भ्रष्टाचार --- अनैतिक तरीके से कमाया गया धन

  अनैतिक  तरीके  से ,  भ्रष्टाचार  से  धन  बड़ी  तेजी  से  आता  है  ,  एक  साधारण  व्यक्ति  देखते - देखते   बहुत  ही  कम  समय  में  करोड़पति  बन  जाता  है  l  धन  कमाने  की  यह  गलत  राह  व्यक्ति  चुनता  ही  इसलिए  है  कि  इस  असीमित  धन  से  वह  अपनी  दमित  कामनाओं - वासनाओं  की  पूर्ति  कर  सके  l   इससे  समाज  का  नैतिक  पतन  तो  होता  ही  है ,  इससे  पूरा  पर्यावरण  प्रदूषित  होता  है  l   बड़े  शहरों  में  तो  इतनी  कारें ,  वाहन  आदि  हैं  कि  खुला  साफ  आसमान  दिखना  मुश्किल  हो  गया  है  l   इनमे  असंख्य  वाहन  ऐसे  होंगे   जिनका  उपयोग  अनैतिक  और  अवैध  कार्यों  के  लिए  होता  है   l   आज  का व्यक्ति  दोगला  है  ,  एक  शहर  में  परिवार  के  साथ  रहता  है  कि  वह   समाज  का  संभ्रांत  नागरिक  है  ,  बहुत  पैसा  है ,  महँगी  कारें  हैं   तो  दूसरे  शहरों   में  जाकर  अपनी  दुष्प्रवृतियों  को  अंजाम  देते  हैं   ताकि  उनकी  असलियत  लोगों  को  पता  न  चले  l 
 हर  तरह  के  अपराध ,  अनैतिक  और  अवैध  कार्य  इसी  समाज  में  सबके  बीच  होते  हैं    लेकिन  अपनी  कमजोरियों  के  कारण  सब  उन्हें  अनदेखा  करते  हैं  l  पाप  और  अपराध    भी  वैश्विक  स्तर  पर  होने  लगे 
स्थिति  तभी  सुधरेगी    जब  कठोर  दंड  होगा   और  उसके  भय  से  लोग  स्वयं  सुधरना  चाहेंगे  l     

Saturday 4 August 2018

पापी और अनाचारी का साथ देने वाला भी उतना ही पापी होता है

   समाज  में   अपराध  इसलिए  बढ़ते  हैं  क्योंकि  समाज  में  ही  अनेक  समर्थ  और  शक्तिसंपन्न  लोग  उन्हें  संरक्षण  देते  हैं   l  इसके  पीछे  उनकी  सोच  यह  होती  है  कि  उस  अपराधी  के  माध्यम  से  वे  भी  अपनी  कामनाओं  और  वासनाओं  की  पूर्ति  करेंगे   और  समाज  में  शराफत  का  चोला  पहन  कर  रहेंगे  l  ऐसे  लोगों  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  होता  है  ,  वे  सोचते  है  कि अपराधी  को  , पापी  को  संरक्षण  देने  से  वे  और  उनका  परिवार  उसकी  अपराधिक  गतिविधियों  से  बचा  रहेगा  l  वास्तव  में  ऐसा  होता  नहीं  है  l  जो  अपराधी  है ,  छोटी - छोटी  बच्चियों  व  बच्चों  के  साथ  जघन्य  अपराध  करते  हैं  ,  वे  मानसिक  रूप  से  विकृत  होते  हैं   l  वे  केवल  कमजोर   पर  ही  अत्याचार  नहीं  करते ,  वे  मौके  का  फायदा  उठाते  हैं  l  उनके  लिए  अपने - पराये ,  रिश्ते - नाते  का  कोई  अर्थ  नहीं  होता  l  जिन  स्थानों  पर ,  जिन  परिवारों  में  उनका  सरलता  से  आना - जाना  होता  है  ,  उनकी  मानसिक  विकृति  वहां  भी  अपराधों  को  अंजाम  देती  है   l  सच  यही  है  कि  अत्याचारी , अनाचारी  का  साथ  देने  वाले ,  उसे  संरक्षण  देने  वाले   अपने  हाथ  से  अपना  दुर्भाग्य  लिखते  हैं  ,  अपने  परिवार ,  अपने  प्रियजनों  को    पतन  की  गहरी  खाई  में  धकेलने  की  व्यवस्था  अपने  हाथ  से  करते  हैं  l  यह  कटु - सत्य  जितनी  जल्दी  समझ  में  आ  जाये   तो  समाज  में , परिवार  में    सुख - शांति   होगी   l   

Thursday 2 August 2018

नैतिक पतन के दूरगामी परिणाम असहनीय होते हैं

  नारी  पर  अत्याचार  तो  सदियों  से   इस  धरती  पर  हो  रहा  है   l  इसके  लिए  कोई  देश ,  कोई  धर्म  ,  कोई  जाति  दोषी  नहीं  है  ,  यह  तो  पुरुष  वर्ग  की मानसिकता  है  ,  उसके  भीतर  का  राक्षस  है  ,  जिसके  कारण  इस  वैज्ञानिक  युग  में  रहते  हुए  भी   वह  मानसिक  स्तर  पर    आदिमकाल  में  है   l    पानी   बड़ी  तेजी  से   नीचे  गिरता  है ,  चारित्रिक  पतन  पूरे  समाज  को  अपनी  गिरफ्त  में  ले  लेता  है  l  एक  ओर  राक्षसी  प्रवृति  के  कारण  छोटी - छोटी  बच्चियां  सुरक्षित  नहीं   हैं ,  कुछ  लोग  पकड़े  जाते  हैं , और  कितने  ही  लोग  मुखौटा  लगाकर  समाज  में   शान  से  रहते  हैं ,  लेकिन  उनके  अनैतिक  और  अमानवीय कार्य   पूरे   समाज  पर  नकारात्मक  प्रभाव  डालते  हैं  l   दूसरी  और  विज्ञापन , प्रचार  और   फिल्मों  के  माध्यम  से   अश्लीलता  अपनी  चरम  सीमा  पर  है  ,  इसका  प्रभाव  मन  पर  इतना  गहरा  पड़ता  है  कि  समाज  से   मर्यादित  जीवन  की  उम्मीद  रखना  कठिन  है  l   यही  स्थिति  कठिन  है   l  हम  चाहे  कितने  ही  आधुनिक  हो  जाएँ    अपनी  संस्कृति  से  अलग  नहीं  हो  सकते ,  अपने  पारिवारिक  रिश्तों  में  पवित्रता  देखना  चाहते  हैं    लेकिन  बाढ़  तो  सबको   बहा  ले जाती  है  l  नैतिक  पतन  का  यही  परिणाम  है ---- नारी  ने  तो  अत्याचार   सहन  किया ,  लेकिन  अपने  ही  रिश्तों  को ,  अपनों  को  इस  बाढ़  में  बहते  हुए  देखना   पुरुष  की  सबसे  बड़ी  हार  है ,  उसके  अहंकार  पर  चोट  है   l  किस - किस  को   मृत्यु  के  मुँह  में   डालोगे ,  घुट - घुट  कर  जीना  पड़ेगा   l 
  अपनी  'पुरुष प्रधानता '  और  अपने  अहंकार  को   गहरे  घाव  में  बदलने  और  रिसने  से  बचाना  है   तो  इस आदिम  युग  से  बाहर  निकलकर    इनसान  बनना  होगा  l  छोटी - छोटी बच्चियां  आत्मरक्षा  के  उपाय  नहीं  सीख  सकतीं  

Sunday 29 July 2018

मनोबल की कमी से अत्याचार और अन्याय बढ़ता है

    यदि  कुछ  लोगों  के  विचार  व  द्रष्टिकोण  में  परिवर्तन  हो  जाये  , वे  अनीति  , अत्याचार  से  घ्रणा  करें  , उसे  मानवता  के   लिए  कलंक  माने   तो  भी  उससे  समस्या  का  हल  नहीं  होता  l  समाज  में  सुख - शांति   और  अमानवीय  तथा  जघन्य  अपराधों  की  रोकथाम  तभी  होगी   जब  सम्पूर्ण  जन - समूह ,  सारी  प्रकृति  अत्याचार  और  अनीति  को  त्याज्य  समझे   और   अत्याचारी , अन्यायी  का  सहयोगी बनने  की  अपेक्षा    कष्ट  और   अकेलापन  सहने  को  तैयार  रहे  l 
  अत्याचारी  हमेशा  बड़े  समूह  में  मजबूती  से  बंधे  होते  हैं  ,  इसलिए  जब  कोई  उनका  विरोध  करता  है ,  उनके  साथ  सहयोग  नहीं  करता  है   तब  वे  ओछे  हथकंडे  अपनाकर  उस  पर  हर  तरीके  से  आक्रमण  कर  उसके  मनोबल  को    गिराना    चाहते  हैं   l  कमजोर  मनोबल  के  व्यक्ति   भय  के   कारण,  लोभ - लालच  के  कारण  या  स्वयं  अपनी  कमजोरियों  के  कारण अत्याचारी  का  विरोध  नहीं  करते    बल्कि  उनको  छिपे  तौर  से  सहयोग  करते  हैं   इससे  अत्याचारियों  के  हौसले  और  बुलंद  हो  जाते  हैं   l 
 अच्छे  व  संवेदनशील  लोगों  को  भी  मजबूती  से  संगठित  होना  पड़ेगा   l    भले  ही  हम   अन्य  व्यक्तियों  की  भावनाओं  को  स्वीकार  करने  को  तैयार  न  हों  ,  तो  भी  हमें   अन्य   व्यक्तियों    के  द्रष्टिकोण  को  समझने  और   तथ्यों  को  दूसरे  व्यक्ति   के  द्रष्टिकोण  से   देखने     के  श्रम  से  बचना  नहीं  चाहिए   l   इस  धरती  पर  जीने  का  और  पनपने  का  हक  सबको  है   l  एक - दूसरे  के  सहयोग  और  सहायता  से  ही  संसार  में  सुख - शांति  संभव  है   l   

Saturday 28 July 2018

स्वयं को ऊँचा उठाने का प्रयास करें

  कोई  भी  देश  व  समाज  तभी  तरक्की  करता  है   जब  उसमे  रहने  वाले  लोग  स्वयं  को  आर्थिक  और    भावनात्मक  दोनों    क्षेत्र  में  ऊँचा  उठाने  का ,  श्रेष्ठ  बनने  का  प्रयास  करें   l  आज  के  समय  में  ऐसे  लोगों  की  अधिकता  है   जो  अपनी  अधिकांश  ऊर्जा  इस  बात  में  खर्च  करते  हैं  कि  सामने  वाला  व्यक्ति  आगे  न  बढ़  पाए ,  उसकी   तरक्की  में  बाधा  डालने  के  लिए  वे  हर  उचित - अनुचित  तरीके  इस्तेमाल  करते  है   l  इससे  खींचतान  की  स्थिति  बनी  रहती  है   और  समाज  भी  उनकी  प्रतिभा  और  योग्यता  के  लाभ  से  वंचित  रह  जाता  है   l  सुख - शांति  के  साथ   विकास  तभी  होगा  जब  लोग  ' जियो  और  जीने  दो '  के  सिद्धांत  पर  चलेंगे   l  

Tuesday 24 July 2018

सकारात्मक शिक्षा और रोजगार से ही अपराधों पर रोकथाम संभव है

   सही  शिक्षा  न  होने  से  विवेक  नहीं   जागता   और  बेरोजगारी   परिवार  के  पोषण  और  भूख  की  समस्या  उत्पन्न  करती  है   l  दुष्ट  शक्तियां  तो   हमेशा  इसी  फिराक  में  रहती  हैं  कि  किसकी  कमजोरी  का  फायदा  उठाया  जाये  और  अपना  संगठन  बढ़ाया  जाये   l    विवेकहीन  व्यक्ति    भेड़चाल  चलता  है  ,  उसे  यह  ज्ञान  भी  नहीं  होता  कि  उसे  हांकने  वाला  कौन  है   l  बस  ! पैसा मिल  जाये ,  हर  तरह  के  कार्य  करने  की  छूट  मिल  जाये  तो   वह  मानसिक  गुलाम  हो  जाता  है  ,  इशारे  पर  काम  करता  है   l    

Sunday 22 July 2018

दोषारोपण न करें

  किसी  भी  स्थिति  में  सुधार  इसलिए  नहीं  हो  पाता    क्योंकि  व्यक्ति  अपनी  गलती  को  स्वीकारने  और  उसे  सुधारने  के  बजाय  उसके  लिए  दूसरों  को  दोषी  ठहराता  है  l  इसका  परिणाम  यह  होता  है    कि  जिसने  गलती  की  है  वह  कभी  सुधरता    नहीं  है  क्योंकि  उसने  इसके  लिए   दूसरे    को  जिम्मेदार  ठहरा  दिया   l  यह  स्थिति  राजनीति  हो  या  समाज   सभी  जगह  देखने  को  मिलती  है  l   इस  कारण ठहराव  आ  जाता  है   l  जब  गलतियाँ  स्वीकार  नहीं  करना ,  सुधरना  नहीं   तो  व्यक्तित्व  का  विकास  तो  रुक  ही  जाता  है   l   आज  ऐसे  ही  लोगों  की  अधिकता  है  ,  इसका  सारे  समाज  पर  नकारात्मक  प्रभाव  पड़ता  है  l   शुरू  से  ही  विदेशी  सरकार  और  विदेशी  जातियों  को  दोष  देते  रहे  ,  कभी  अपने  गिरेबान  में  झांककर  नहीं  देखा ---- धर्म  के  नाम  पर ,  जाति  के  नाम    पर  युगों  से कितना  अत्याचार  किया   और    महिलाओं  व  बच्चियों  पर  जो  अमानवीय  अत्याचार  किया  जाता  है  ,  उसकी  खबर  तो  पूरी  दुनिया  को  है  l
  एक   समाज  वर्तमान  में    जैसा  व्यवहार  करता  है  ,  वही  उसका  इतिहास  बन  जाता  है   l  यदि   उत्पीड़न  और  अत्याचार  ज्यादा  है   तो  ऐसे  कलंकित  करने  वाले  शब्द  इस   युग  की  पहचान  बन  जायेंगे   l 
  अब  भी  वक्त  है    अपनी  गलतियों  को  सुधारकर  एक  नए  समाज  का  निर्माण  करें   l  

Friday 20 July 2018

नकारात्मक सोच व्यक्ति और समाज को आगे बढ़ने नहीं देती

जिनकी  सोच  नकारात्मक  होती  है   वे  हर  अच्छाई  में  बुराई  ढूंढते  हैं   l  जब  समाज  में  ऐसे  लोगों  की  अधिकता  हो  जाती  है   तो  वे   बुराई  को  ही  स्थापित  करते  हैं  l  ऐसे  लोगों  का  यथा संभव  प्रयास  यही  होता  है  कि  अच्छाई  को  उपेक्षित  किया  जाये ,  उसे  आगे  न  बढ़ने  दिया  जाये   l   इस   तरह  वे  लोग   बुराई  को  ही  प्रतिष्ठित  करना  चाहते  हैं  l  ऐसी  स्थिति  में  विकास  रुक  जाता  है  l 

Thursday 19 July 2018

आज की सबसे बड़ी जरुरत है --- जिनके पास ज्ञान और शक्ति है उनकी चेतना को जगाया जाये

  बहुत  लम्बे  समय  से   यह  देखा  जा  रहा  है  कि  लोग   समाज  को   सुधारने  के  लिए   सामान्य  जनता  को  जगाने  का  प्रयास  करते  हैं  ,  जो   समर्थ  हैं  और  अपने  ज्ञान  और  शक्ति  का  दुरूपयोग  कर  रहे  हैं  ,  उनकी  सुप्त  चेतना  को  जगाने  का  प्रयास  नहीं  किया   जाता   l    समर्थ  लोगों  को  इस  बात  का  एहसास  होना  चाहिए  कि  समाज  को  गलत  दिशा  देकर ,  लोगों  की  मज़बूरी  का ,  उनकी  सरलता  का  फायदा  उठाकर    वे  अपना  जो  स्वार्थ सिद्ध  करते  हैं   उसे  प्रकृति  क्षमा  नहीं  करती  l  उसका  परिणाम  उनके  जीवन  में  भीषण  तनाव ,  बीमारी ,  असहनीय  दुःख    आदि  घटनाओं  के  रूप  में  सामने  आता  है  l 
      जैसे    हम  देखते  हैं  कि  युगों  से  धर्म  के  ठेकेदार   सामान्य  जनता  को  गृह , नक्षत्र , दशा   आदि  का  भय  दिखाकर   लूटते  हैं  l  उनका  यह  कार्य  सही  है  या  गलत  इसका  निर्णय  प्रकृति  के  ,  ईश्वर  के  हाथ  में  है   l  सामान्य - जन  जिसके  सामने  परिवार  का  पोषण , गरीबी , बेरोजगारी  की    समस्या  है  जो  ध्यान ,  मन्त्र जप  आदि  साधना  नहीं  कर  सकता  , वह  भक्ति भाव  से   इस  प्रकार  के  कर्मकांड  कर  के  ईश्वर  को  प्रसन्न  करने  का  प्रयत्न  करता  है  l  उसके  ह्रदय  में  श्रद्धा भाव  होता  है ,  वह  इस  बात  को   नहीं  सोचता   कि  ग्रह  दशाओं  में  सुधार  का  झांसा  देकर  उसे   लूटा   जा   रहा  है   l
   समाज  में  एक  वर्ग  ऐसा  है  जो  संपन्न  है   उनके  लिए  कथा - आयोजन , जागरण ,  विभिन्न  धार्मिक  कर्मकांड   ईश्वर  को  याद  करने  के  माध्यम  से   समाज  में  व्यवहार  बनाना  और  अपने  वैभव  का  प्रदर्शन  है   l 
  समाज  का  एक  वर्ग  ऐसा  भी  है    जो   कथा  आदि  बड़े  स्तर  के   धार्मिक  कार्यक्रमों  से  खुश  होते  हैं  l  उन्हें  इस  बात  से  मतलब  नहीं  होता   कि  कथा - प्रवचन  में  क्या  कहा  गया  l  उनकी  ख़ुशी  इसमें  है  कि  उनके  ठेले  से  कितने  गुब्बारे  बिक  गए , किसी  की दुकान  की  कितनी  मिठाई ,  फूल माला  , पूजा  के  चित्र  आदि   बिके ,  झूले  वाले  को  कितनी  आमदनी  हो  गई  l  इस  वर्ग  की  ख़ुशी  इसमें  है  कि   इन  उत्सवों  में  उनके  परिवार  के  लिए  कितने  दिन  का  भोजन - पानी  का  प्रबंध  हो  गया   l 
समाज  का  एक  वर्ग  ऐसा  भी  है  जो  कहने  को  पढ़ा - लिखा  है  किन्तु  उसके  पास  सार्थक ,  सकारात्मक  शिक्षा  नहीं  है ,  बेरोजगार  है  l  ऐसे  में  वे  लोग  भक्तों  को  दूर - दराज  के  क्षेत्रों  से  जुटाना , उन्हें   दान - पुण्य  करने  को  प्रेरित  करना ,  आदि  कार्यों  में  कुछ  आमदनी  हो  जाती  है  l 
  मनुष्य  एक  सामाजिक  प्राणी  है  l  सामाजिक  , धार्मिक  कार्य  सम्पूर्ण  समाज  को  बहुत  गहरे  प्रभावित  करते  हैं   l  

Wednesday 18 July 2018

जब अधिकांश व्यक्ति अपने आप को नेता समझने लगते हैं तो अशांति और अव्यवस्था उत्पन्न होने लगती है

 एक  वाक्य  है --- ' कलियुग  में  शक्ति  संगठन  में  होती  है  '   इस  वाक्य  को  अपना  आदर्श  बनाकर  पुरे  देश  में  तरह - तरह  के  छोटे - बड़े  संगठन  बन  गए  l  इस  वाक्य  के  पीछे  जो  मूल  आधार  था   उसे  भुला  दिया    कि--  संगठन  का  आधार  नैतिकता  हो ,  जिसका  उद्देश्य  और  लक्ष्य  महान  हो l  जैसे  देश  को  आजाद  कराने  महान  लक्ष्य  लेकर  लोग  संगठित  हुए  ,  कष्ट   सहे ,  त्याग  किया   तब  इस  महान  लक्ष्य  में  सफलता  मिली  l   लेकिन  आज  स्वार्थ  और  लालच   और  अहंकार  जैसी  दुष्प्रवृत्तियों    का  पोषण  करने  के  लिए   संगठनों  की  भरमार  है   l  ऐसे  संगठन  ही  समाज  में   अव्यवस्था  फैलाते  हैं  

Saturday 14 July 2018

अत्याचारी और अन्यायी का कोई धर्म नहीं होता

 महिलाओं  पर  अत्याचार  के  सम्बन्ध  में   सभी  पुरुषों  की  मानसिकता एक  सी  होती  है  ,  चाहे  वे  किसी  भी  धर्म  के  हों ,  किसी  भी   जाति  अथवा  समाज  के  हों  l    अपने  अहंकार की  पूर्ति  और  अपने  को  नारी  से  श्रेष्ठ    दिखाने  की  भावना  ,  अपनी  हुकूमत  चलाने  की  आदत  ऐसे  अनेक  कारण  हैं    जिससे  वे  नारी  को  उत्पीड़ित  करते  हैं   l  
  घरेलू  हिंसा  एक  अलग  समस्या  है  l    शिक्षा  का  प्रचार - प्रसार  बढ़  रहा  है  ,  हम  आधुनिक  युग  में  जी  रहे  हैं   लेकिन  पुरुषों  की  मानसिकता  नहीं  बदली  ,  इस  कारण  सामाजिक  उत्पीड़न  भी   बहुत  है   l  पुरुषों  में     नारी  के  प्रति  मित्रता  का  भाव  नहीं  रहता  ,   उसकी  कमजोरी  का   फायदा  उठाने  का  भाव  प्रबल  होता  है   l  घर  और  बाहर  दोहरी  जिम्मेदारी  की  वजह  से   महिलाएं  इतनी  सजग  नहीं  हो  पातीं  इस  कारण  संस्थाओं  में ,  समाज  में   उत्पीड़न  सहना  पड़ता  है   l  
   महिलाएं  भी  आपसी  ईर्ष्या - द्वेष  ,  महत्वाकांक्षा  की  वजह  से ,  दूसरे  को  धक्का  मार  कर  स्वयं  आगे  बढ़ने  की   इच्छा   आदि  कारणों  से      विभिन्न  षड्यंत्रों  में  पुरुषों  का  साथ  देती  हैं  l  
   इन  सबसे  परिवार  और  समाज  में   तनाव  पैदा  होते  हैं   l  

Thursday 12 July 2018

प्रतिभा के दुरूपयोग से ही सारी समस्याएं उत्पन्न होती हैं

  जिनके  पास  धन  है  वे  अपने  भोग विलास  और  ऐश्वर्य  प्रदर्शन  में  उलझे  हैं   l   जिनके  पास  विद्दा बल  है   उनकी    ऐंठ  व  अहंकार  चरम  सीमा  पर  है  ,  वे  लोग  अपनी  बुद्धि  का  प्रयोग  चालाकी ,  चतुराई  और  धूर्तता  के  कारनामे  करने  में  कर  रहे  हैं   l  ऐसा  कर  के  व्यक्ति  स्वयं  अपने  जीवन  में  अशांति , कष्ट  और  तनाव  के  बीज  बो  रहा  है    l  

Wednesday 11 July 2018

बच्चे देश का भविष्य हैं

 ' बच्चे  देश  का  भविष्य  '  हैं --- जो  भी  देश  इस  सत्य  को  समझते  हैं  वे  अपने  देश  के  बच्चों  की  हिफाजत  करते  हैं   l    यदि  उनके  देश  के  बच्चे  किसी  मुसीबत  में  फंस  जाये ,  उनके  ऊपर  मृत्यु  का  खतरा  मंडरा रहा  हो   तो  वे  उन्हें  बचाने  के  लिए   कोई  कमेटी  बिठाकर  उसकी  रिपोर्ट  आने  का इंतजार  नहीं  करते  l  अपनी  सम्पूर्ण  शक्ति  लगाकर  उन्हें  बचाने  का  प्रयास  करते  हैं  l  यथा संभव  विदेशों  से  भी  मदद  लेते  हैं   ताकि  उनके  देश  का  भविष्य  सुरक्षित  हो  l  अनेक  देश  ऐसे  भी  हैं  जो  अपने  देश  की  गर्भवती  महिलाओं  की  भी   सामाजिक  रूप  से  बहुत  हिफाजत  करते  हैं  ,  वे  इस  बात  को  समझते  हैं  कि  उसके  गर्भ  में  उनके  देश  का  भविष्य  है  l   यह  सब  तभी  संभव होता  है  जब  लोगों  के  ह्रदय  में  संवेदना  हो ,  अपने  देश  से  सच्चा  प्रेम  हो    l 
  अनेक  देश  ऐसे  भी  हैं  ,  जहाँ  लोगों  के  ह्रदय  में  संवेदना  सूख  गई  है  l  स्वार्थ ,  लालच ,  पैसा  ही  उनके  लिए   सब  कुछ  है  l   अपने   घ्रणित  स्वार्थ  की  पूर्ति  के  लिए   वे  मासूम  बच्चे - बच्चियों  पर  ही  अपनी  ताकत  आजमाते  हैं  l 
  अब  विकास  को  केवल  भौतिक  द्रष्टि  से  नहीं  आध्यात्मिक  द्रष्टि  से  भी  परिभाषित  करने  की  जरुरत  है   k

Tuesday 10 July 2018

ईश्वर विश्वास से ही शांति संभव है

  यह  विचार  कि  ईश्वर  है   ,  उसकी  नजर  हमारे  हर  कार्य    पर  है  ,  यहाँ  तक  कि  जो   हम  सोच  रहे  हैं ,  जो  हमारे  मन  में  चल  रहा  है  वह  भी  ईश्वर  से  छुपा  नहीं  है  ---- यह  विश्वास  व्यक्ति  को  गलत  कार्य  करने  से  रोकता  है   l  ऐसे  व्यक्ति  अपना  कर्तव्य पालन  पूरी  निष्ठा  और  समर्पण  भाव  से  करते  हैं   l  एक  श्रेष्ठ  उद्देश्य  को  लेकर  जिस  भी  कार्य  में  हाथ  लगाते  हैं  ,  उसमे  सफल  होते  हैं   l  ऐसे  विश्वास  के  लिए  कर्मकांड  जरुरी  नहीं  है  ,  हमारी  भावनाएं  पवित्र  होनी  चाहिए  l 

Monday 9 July 2018

कठोर दंड से ही अपराध पर नियंत्रण संभव है

  जब  कभी  समाज  में  स्थिति  इतनी  विकट  हो   जाती  है  कि  व्यक्ति  अपने  को  राक्षस  कहने - कहलाने  में  गर्व  अनुभव  करने  लगे   तब  उसका  अंत  करना  ही  उचित  होता  है   l  ----  महर्षि  पुलस्त्य  का  पौत्र  और  परमज्ञानी , तेजस्वी  महर्षि  विश्रवा  का  पुत्र  रावण  अपने  को  ऋषि पुत्र   कहने  के  बजाय
    ' राक्षसराज '  कहता  था   l  वेद  और  शास्त्रों  का   ज्ञाता ,  महान  विद्वान्  होते  हुए  भी   मर्यादा  भुला  बैठा   l  छल  से  उसने  सीताजी  का  अपहरण  किया  l  तब  भगवन  राम  ने   न  केवल  रावण  का  वध  किया ,  बल्कि  पापी  और  अत्याचारी  का  साथ  देने  वाले  उसके  सभी   बन्धु - बांधवों  का  वध  कर  दिया   ताकि  समाज  को  कलंकित  करने  वाली  ऐसी  घटनाएँ  दुबारा  न  हों  l
  इसी  तरह  महाभारत  में  प्रसंग  है --- जब  पांडव  अज्ञातवास  में  राजा  विराट  के  महल  में  वेश  बदल कर  कार्य  करते  थे   l  महारानी  द्रोपदी    सैरंध्री   बनकर   रानी  की  सेवा  करती  थीं  l  तब  रानी  के  भाई
 ' कीचक '   की  कुद्रष्टि  द्रोपदी  पर  थी   l  जब  बात  असहनीय  हो  गई  तो  एक  दिन  अवसर  पाकर   सैरंध्री  ( महारानी  द्रोपदी )  ने   भीम  से  उसकी  शिकायत  की  l  भीम  को  बहुत  क्रोध  आया ,  उस  दिन  वे  अज्ञातवास  में  थे  इसलिए  सामने  चुनौती  देकर  युद्ध  नहीं  कर  सकते  थे  ,  उन्होंने  योजना  बनाई,  उसके  अनुसार  सैरंध्री  ने   कीचक  से  कहा --- ठीक  है  तुम  रात  को  अँधेरे  में  आना , शर्त  यह  है  कि  रोशनी  बिलकुल  न  हो  l  कीचक  तो   कामांध  था ,  चल  दिया l   वहां   सेज  पर  द्रोपदी  की  बजाय  भीम  बैठ  गए   l   कीचक  बहुत  बलवान  था  l  भीम  और  कीचक  में   मल्ल युद्ध  हुआ  l   भीम  ने  कीचक  को  मौत  के  घाट  उतार  दिया  l
दु:शासन  ने  चीर हरण  किया ,  दुर्योधन  ने  उस  वक्त  अपशब्द  बोले ,   तो  महाभारत  हुआ   समूचे  कौरव  वंश  का  अंत  हो  गया   l   इतिहास  ऐसे  उदाहरण  से  भरा  पड़ा  है  कि  जिसने  भी  नारी  के  सम्मान  को  चुनौती  दी ,  उसे  अपमानित  किया  ,  उसका  अंत   किया  गया   l 
  इसी  तरह  संस्कृति  की  रक्षा  संभव  हो  सकी  है   l    आज  के  समय  में  जब  अपराधी   समाज  में  मिलकर  रौब  से  रहते  हैं   तब  विचारशीलों   को   जागरूक  होने  की   अनिवार्यता  है  l  

Sunday 8 July 2018

नैतिक मूल्यों में गिरावट के कारण ही ऐसे अपराध होते हैं जिससे राष्ट्र की छवि खराब होती है

   नैतिक  शिक्षा  की  पुस्तक  पाठ्यक्रम  में  सम्मिलित  कर  देने  से    नैतिकता  का  ज्ञान  नहीं  होता   l   मानवीय  मूल्यों  के  आभाव  में   ज्ञान  का , धन  का ,  संचार  के  साधनों का   ,  समूची  वैज्ञानिक  प्रगति  का  ही  दुरूपयोग  होता  है   l   यह  सत्य  है  कि    अहंकारी  और  गलत  राह  पर  चलने  वाला   दूसरों  को  तो  कष्ट   पहुंचाता  है   लेकिन  स्वयं  भी  समूल  नष्ट  हो  जाता  है   l 
  समस्या  विकट  इसलिए  है  क्योंकि  बच्चों  को  शिक्षा  देने  वाले ,  उन्हें  अच्छे  संस्कार   देने  वाले  बहुत  कम  हैं   l    भ्रष्टाचार ,  बेईमानी , स्वार्थ ,  झूठ ,  नशा,  आदि   गैर कानूनी  कार्य  करने  वालों  का  बोलबाला  है  l   जब  तक  जन  चेतना  नहीं  जागेगी ,  लोग  दूसरे  के   कष्ट  को  महसूस  नहीं  करेंगे ,  संवेदना  नहीं  जागेगी  तब  तक    सुधार    संभव  नहीं  है   l  

Thursday 5 July 2018

व्यक्ति बदली हुई परिस्थिति से समझौता करना नहीं चाहता

  स्वतंत्रता  के  पहले   राजा - रजवाड़े  थे ,  जमींदार , जागीरदार ,  सामंत  आदि  थे  जो  अपने - अपने  क्षेत्र  में  अपना  दबदबा  रखते  थे   l  इसी  तरह  जाति  को  देखें  तो   एक  विशेष  वर्ग  ने  अपने  को  श्रेष्ठ  घोषित  कर  अन्य  वर्गों  को  बहुत   तिरस्कृत  व  अपमानित  किया  l 
  अब  परिस्थितियां  बदल   गईं  लेकिन  इन  लोगों  की  सोच  नहीं  बदली   इस  कारण   खुद  कुंठित  रहते  हैं  और   अपने  अहंकार  को  पोषण  न   मिलने  के  कारण  दूसरों  को  परेशान    करते  हैं  l  इससे  समाज  में   अशांति ,  तनाव  की  स्थिति  पैदा  होती  है  l  ऐसे  लोग  दूसरे  की  तरक्की ,  किसी  को  आगे  बढ़ता  हुआ  नहीं  देख  सकते  ,  लोगों  को  अपनी  कठपुतली  बना  कर  रखना  चाहते  हैं   l  ऐसे  अशांत  मन  के  लोग  अपनी  नकारात्मकता  से  सब    ओर    अशांति  पैदा  करते  हैं   l 
  शांति  तब  होगी   जब  लोगों  के  ह्रदय  में  संवेदना  होगी ,  जियो  और  जीने  दो  के  सिद्धांत  पर  सब  चलेंगे   l  

Tuesday 3 July 2018

अपराध तभी बढ़ते हैं , जब अपराधियों को संरक्षण मिलता है

  यदि  समाज  में  सुख  शांति  और  बच्चों  की  सुरक्षा  चाहिए   तो  अनैतिक  और  अवैध  धन्धों  को  जड़  से  समाप्त  करना  होगा   l  ऐसे  अनैतिक  कार्य  व्यक्ति  अकेला  नहीं  करता   l  इनके  कर्ता- धर्ता  इन  कामों  के  लिए  अनेक  गुंडे  पालते  हैं   जो  इसी  समाज  में  रहते  हैं   और  कभी  अपने  ' आका ' के  लिए  और  कभी  अपने  लिए  जघन्य  अपराधों  को  अंजाम  देते  हैं   l  ऐसे  लोग  अपने  स्वार्थ  के  लिए  एक  दूसरे  से  एक  श्रंखला  में  बंधे  होते  हैं  इसलिए  सजा  से  बच    जाते  हैं   l 
  हर  परिवार  को  जागना  होगा  क्योंकि  जो  भी  अपराधी  हैं  वे  किसी  न  किसी  परिवार  के  सदस्य  हैं  l  जब  कभी  समाज  में  दंगे - फसाद  होते  हैं  तो  कैसे  टिड्डी  दल  की  भांति  दंगाई  आते  हैं ,  उनके  हाथों  में  हथियार  भी  होते  हैं   l  यह  सब  समझने  की  बातें  हैं  कि  कहीं  कोई  जादू  की  छड़ी  नहीं  थी  कि  तुरंत  हथियार  समेत  सब  आ  गए  ,  समाज  में  ही  अनेक  लोग  इन  कामों  में  ,  व्यवस्था  में  लगे  होंगे  l 
  केवल   दोष  देने  से  समस्या  नहीं  सुलझती ,  एक  बड़े  परिवर्तन  की  आवश्यकता  है   l  

Monday 2 July 2018

जब तक जनता जागरूक नहीं होगी , किसी भी समस्या का समाधान संभव नहीं है

 अपराध  करना  और  अपराध , अत्याचार  , अन्याय  को  देखकर  भी  अनदेखा  करना ,  अपनी  आँखें  मूंद  लेना  भी  अपराध  है  l  तरह - तरह  के  सब  अपराध  समाज  में  ही  होते  हैं ,  और  अपराधी  प्रवृतियों  को  समाज  में  ही  छुपाते  हैं  जैसे  जो  नशे  का  कारोबार  करते  हैं , वे  ऐसी  सामग्री  समाज  में  ही  छुपाते  हैं , जो   मांस  का  अवैध  कारोबार  करते  हैं , वे  जानवरों  को  समाज  में  ही  चुराते और  छुपाते  हैं  ,  इसी  तरह  जो  बच्चे - बच्चियों  के  प्रति  जघन्य  अपराध  करते  हैं , रैक्ट्स  आदि  चलते  हैं ,  वह  सब  समाज  में  ही  है l  इसलिए  इनसे   निपटने  के  लिए    समाज  को  अपने  छोटे - छोटे  स्वार्थ  छोड़कर  जागरूक  और  संगठित  होना  पड़ेगा  l 
  कहते  हैं  ईश्वर  निराकार  है ,  वे  स्वयं  कैसे  काम  करेंगे  ?  यदि  हम  किसी  श्रेष्ठ  उद्देश्य  के  लिए  एक  कदम  आगे  बढ़ाएंगे  तो  वे  दैवी  शक्तियां  हमारे  प्रयत्नों  में  सहयोग  के  रूप  में  साकार  हो  जाएँगी  जैसे  अत्याचार  के  अंत  के  लिए  जब  अर्जुन  ने  कदम  बढाया  तो  भगवान  उनके  सारथी  बने , उनके  रथ  की  ध्वजा  पर  हनुमानजी  बैठे  l  हमें  एक  कदम  तो  आगे  बढ़ाना  ही  होगा  तभी  सहयोग  मिलेगा   l  

Sunday 1 July 2018

संवेदनहीन समाज में समस्याएं बढ़ती जाती हैं

  आज  के  समय  में     मुसीबत ,  कठिनाइयाँ  और  दुःख  में  डूबे  इनसान  के  प्रति  संवेदना  प्रकट  करना  भी  जीवन  रूपी नाटक  का  एक  हिस्सा  बन  गया  है   l  सच्ची  सहानुभूति  और   नि:स्वार्थ  सहयोग  करने  वाले    व्यक्ति  बहुत  कम  या  न  के  बराबर  हैं   l  यदि  किसी  के  ऊपर  मुसीबत  का  पहाड़  टूट  पड़ा   और  समस्या  को  सार्वजनिक  करने  से   किसी  की  गरिमा  को , सम्मान  को  ठेस  पहुँचती  है   तो  सहानुभूति  के  नाम  पर  मुंह  बंद  रखने  की  धमकी  देने  ज्यादा  लोग  आ  जाते  हैं   l
  आज  का  संसार  गणित  से  चलता  l   कुछ   लोग  आपस  में  बहुत  प्रेम  से  बात  करते  हैं ,  एक  दूसरे  का  सहयोग  कर  रहे  हैं   तो  इसका  अर्थ   यह  नहीं  कि  वे  एक  दूसरे  के  प्रति  सच्चे  और  बफादार  हैं  ,  उनका  परस्पर  स्वार्थ  सिद्ध  हो  रहा  है ,  इसलिए  वे  एक  हैं  l
 आज  का  समय  बहुत  विवेक  और  समझदारी  से  चलने  का  है  l  यदि हमारे  जीवन  का  पथ  सही  है   तो  अपनी  समस्याओं  से  कैसे  निपटें  ?  यह  ज्ञान  हमें  अपने   ही  भीतर  से , अपने  अंतर  से  प्राप्त  हो  जाता  है  l  

Saturday 30 June 2018

दंड का भय न होने से अराजकता बढ़ती है

    कोई  भी  समाज  जिसमे  लोगों  को  दंड  का  भय  नहीं  होता  ,  कुछ  विशेष  लोगों  की  खुशामद  कर  के  मनमानी  करने  की  छूट  होती  है  ,  ऐसा  समाज धीरे - धीरे  अराजकता  की  स्थिति  में  पहुँच  जाता  है  ,  शिकायत   किससे    करें   ?  कोई  सुनने  वाला  नहीं  होता  l   जहाँ  अधिकांश  लोग  स्वार्थ  में   डूबे,   अपने  सुख - वैभव , पद - प्रतिष्ठा  को  बचाने  में  लगे  हों  ,  वह  समाज   आदिम - युग  में  पहुँच  जाता  है  l 
   भौतिक  साधनों  में  वृद्धि  ,  विकास  का  मापदंड  नहीं  है   l 
  अब  समाज  भी  जागना  नहीं  चाहता  है   l   हर  व्यक्ति  अपने  चेहरे  पर  एक  नकाब  डाले  है   l   शराब , नशा ,  मांसाहार ,  अश्लीलता  आदि  मन  को  बहकाने  वाले  अनेक  कारणों  से   ' डबल फेस '  में  से  एक  चेहरा  मौका  मिलने  पर  कब  राक्षस  हो  जाये  ,  कोई  नहीं   जानता  l 
  एक  जागरूक  समाज  वह   होता  है   जो  समस्या  की  जड़  में  पहुंचकर  उसके  समाधान  की  बात  करे  l  

Tuesday 26 June 2018

जब भी समाज में कायरता बढ़ती है नारी पर अत्याचार बढ़ता है

  जो  पुरुष  वीर  होते  हैं  वे  कभी  नारी  पर  अत्याचार  नहीं  करते  ,  इतिहास  ऐसे  वीर  पुरुषों  के  उदाहरण  से  भरा  पड़ा  है  l  ऐसे  पुरुष  नारी  को  संरक्षण  देते  हैं  और  नि:स्वार्थ  भाव  से  मुसीबत  में  उसकी  रक्षा  करते  हैं   l  अब  इस  धरती  पर  कायरता  बढ़  गई  है    l
  हमने  विदेशों  से  फैशन ,  आधुनिकता  तो  सीख  ली ,  लेकिन  जो  वहां  का  सबसे  बड़ा गुण  है -- परिश्रम ,  किसी  भी  काम  को  छोटा  न  समझना ,  यह  नहीं  सीखा  l  गर्म  जलवायु  होने  के  कारण  यहाँ  लोगों  में  आलस  बहुत  है  , फिर    इस  गर्म  जलवायु  में   मांस - मदिरा  और  हर  तरह  के  नशे  के  सेवन   ने   लोगों  के  मन  व  बुद्धि  को  बेलगाम  कर  दिया   l
  पुरुष  प्रधान  समाज  होने  के  कारण     समाज  के  लोग  ही  नारी  के  प्रति  अपराध  करने  वाले  को  बचाते  हैं  ताकि  उनकी  गलतियों  पर  भी  परदा  पड़ा  रहे  ,  कौन  किसे  सजा  दे     ? 
  पहले  के  डाकुओं  के  भी  सिद्धांत  होते  थे  ,  कई  ऐसे  डाकू  हुए  जो  कभी  किसी  की  डोली  नहीं  लूटते  थे ,  किसी  भी  नारी  पर  हाथ  नहीं  उठाते  थे  l  लेकिन  अब  ऐसा  नहीं  है   l  नारी  को ,  छोटी  बच्चियों  को  सताने  में   पुरुष  कितना  नीचे  गिर  जायेगा    इस  की  कल्पना  नहीं  की  जा  सकती  l 
    बेटियों  की  सुरक्षा  और   सम्मान    तो  बहुत   दूर  की  बात  है ,  चैन  से  जीने  भी  नहीं  देते   l  चाहे  परिवार  हो ,  समाज  हो  या  कार्य स्थल  हो   ऐसे  अहंकारियों  के   हिसाब  से  चलो ,  अपने  आत्मसम्मान  को   छोड़कर  उनके  इशारे  पर  चलो ,  तब  तो  ठीक  है  अन्यथा  चैन  से  जीने  भी  न  देंगे  l
  अब  जरुरत  है  कि  ऐसी  पाठशालाएं  खुलें  जो  हर  उम्र  के  पुरुष  और  नारी  को  नैतिकता   की  शिक्षा  दे  l   चाहे  छोटा  पद  हो  या  कोई  बड़े  से  बड़ा  पद  हो ,  शिक्षा , स्वास्थ्य , प्रशासन  हो  या  सेना , पुलिस  आदि  सभी  क्षेत्रों  में  जो  भी  नियुक्ति  हो   उसे  अपने  पद  की  ट्रेनिंग  के  साथ  नैतिकता  और  संवेदना    का  अनिवार्य   प्रशिक्षण  दिया  जाये   जिसमे  विभाग  का  हर  व्यक्ति  सम्मिलित  हो   l  इतने  बड़े  स्तर  पर   जब  लोगों  को   यह  अध्यात्म  का  पहला  पाठ  पढ़ाया  जायेगा  तब  धीरे - धीरे  लोगों  की  मानसिकता  परिवर्तित  होगी  l  

Saturday 23 June 2018

समाज में अशांति और अनैतिकता बढ़ने का कारण है कि अब लोगों ने व्यक्ति के पहनावे से उसके चरित्र का आंकलन शुरू कर दिया

       समाज  में  जब  भी  अपराध , अनैतिकता  बढ़ती  है   तो  उसके  पीछे  एक  बड़ा  कारण  यह  है  कि  समाज  ही  जागरूक  नहीं  है   l  जो  समाज  व्यक्ति  के   पहनावे  को  देखकर ,  उसके  वस्त्रो  को ,  ड्रेस  को   देखकर ,   व्यवसाय  या  पद  को  देखकर     व्यक्ति   को  अच्छा  कहे ,  उस  पर  विश्वास  करे   तो  यह  जागरूकता  नहीं  है    l
   वातावरण ,  समय  का  प्रभाव  आदि  अनेक  वजह  से  व्यक्ति  में   अनेक  बुराइयाँ  आ  जाती  हैं    लेकिन  कामवासना   का  सम्बन्ध  व्यक्ति  के  मन  से  है  ,  यह  विकार  व्यक्ति  के  मन  में  पैदा  होता  है  l  यह  कहना  कि  अमुक  वस्त्र  पहनकर  ,  किसी  अच्छे  पद , व्यवसाय  में  होने  से  व्यक्ति  ने  इस  विकार  पर  विजय   प्राप्त  कर  ली  है ,  यह  गलत  है  l   धन - वैभव ,  शक्ति ,  दंड  का  भय  न  होना  ये  सब  बातें  व्यक्ति  की  उन्मतता   को  और   भड़काती    हैं  l 
अपनी  संस्कृति  को  बचाना  है ,  गरिमामय  जीवन  जीना  है   तो  व्यक्ति  हो , परिवार  हो  या  संस्था  हो  सबको  जागरूक  होना  होगा   l  

Thursday 21 June 2018

प्रत्येक व्यक्ति यह देखे और चिंतन करे कि वह नई पीढ़ी को क्या सिखा रहा है

 बच्चे  की प्रथम  पाठशाला  उसका  परिवार  है  l   यदि  इस  बात  पर  ध्यान  दें  तो  देखेंगे  कि  परिवार  के  सदस्य   परस्पर  और  मित्रों  से  बच्चे  के  सामने  जिस  भाषा  का ,  जिन  अच्छे - बुरे  शब्दों  का  इस्तेमाल  करते  हैं  ,  बच्चा  जब  बोलने  लगता  है  तब  वह  भी  उन्ही  शब्दों  का  इस्तेमाल  करता  है  l  परिवार  के  लड़ाई - झगडे ,  आपस  में  एक   दूसरे   का  अपमान ,  तिरस्कार ,  उपेक्षा ,  किसी  को  अपने  से  हीन  समझना   ,  झूठ  बोलना  आदि  अनेक  दुर्गुण  बच्चा  अपनी  घुट्टी  के  साथ  बिना  सिखाये  ही  सीख  जाता  है   और  बड़े  होकर  वह  परिवार  और  समाज  में  वैसा  ही  व्यवहार  करता  है  l  
    आचरण  से  ही  शिक्षा  दी  जा  सकती  है   l     भाषण ,  उपदेश ,  मार ,  भय  ,  दंड  आदि  से  आप  किसी  को  अच्छा   नहीं  बना  सकते  l  

Wednesday 20 June 2018

अहंकारी व्यक्ति की बुद्धि , दुर्बुद्धि में बदल जाती है

   महाभारत  में   भगवन  श्रीकृष्ण  ने  अर्जुन  के  जीवन  की  बागडोर  अपने  हाथ  में  ले  ली   क्योंकि  अर्जुन  में  नम्रता  थी  अहंकार  नहीं  था   l  कहते  हैं  ईश्वर  जिस  पर  कृपा  करते   हैं  उसे  सद्बुद्धि  देते  हैं  और  जो  अहंकारी  है ,  अत्याचारी  है   उसे  दुर्बुद्धि  देते  हैं   l  फिर  ईश्वर  को  हथियार  नहीं  उठाना  पड़ता  ,  अहंकारी  की  दुर्बुद्धि  ही  उसका  अंत  कर  देती  है    l 
     अहंकारी  व्यक्ति  को  ये  बात  समझ  में  नहीं  आती  कि  उसके  अत्याचार  से   तंग  आकर   लोगों  के  ह्रदय  में  उसके  लिए  कितनी  नफरत  भर  गई  होगी  l  एक  घटना  है  ----  एक  परिवार  में  पति - पत्नी  और  एक  बच्चा  था  l   एक  दुष्ट  व्यक्ति  ने  उन  पर  बहुत  अत्याचार  किये  ,  उनकी  सम्पति  आदि  सब  हड़प  ली  ,  फिर  भी  हर  तरह  से  परेशान    करता  था  l  गरीबी ,  अत्याचार   इन  सबसे  तंग  आकर  पत्नी  दूसरे  बच्चे  को  जन्म  देकर  चल    बसी  l   लेकिन  अत्याचार  का  अंत  नहीं  हुआ  l  पिता  के  साथ  यातनाएं  सहते - सहते  वह  बच्चा   चार  वर्ष  का  हो  गया  l   एक  दिन  अपने  पिता  के  साथ  अपने  छोटे  से  नाममात्र  के  खेत  पर  जा  रहा  था  कि  उस  दुष्ट  व्यक्ति  ने    आकर  उसके  पिता  को  बहुत  मारा - पीटा,  अभद्र  भाषा  बोली   l  अचानक  उस  बच्चे  ने  अपने  छोटे ,  कमजोर  हाथ  से  एक  छोटा  सा  पत्थर  उठाया  और  उस  छह  फुट  लम्बे  आदमी  को  दे  मारा  ,  जो  उसकी  आँख  में  लगा  l  वह  सन्न  रह  गया  l  उसने  कसकर  बच्चे  का  हाथ  पकड़ा   तो  बच्चे  ने  उसके  हाथ  में  काट  लिया  l  अब  बच्चे  की  खैर  नहीं   थी  l  उसी  समय  एक  साधु  आ  गया  ,  उसने  बीच - बचाव  कर  के  बच्चे  को  बचा  लिया  l  और  उस  दुष्ट  आदमी  को  कहा   कि  बच्चे  ने  जो  किया  ,  वह  तुम्हारे  ही  अत्याचार  की  कहानी  है  l  ----
हमें  ईश्वर  से  डरना  चाहिए  ,  अति  का  अहंकार  प्रकृति  भी  सहन  नहीं  करती   l