समाज में आतंक , चोरी , लूट , हत्या , अपहरण , नशा , जुआ आदि दुष्प्रवृत्तियों का कारण है ---- लोगों की मानसिकता का प्रदूषित होना । इस प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है --- नशा । अश्लील फिल्म , दूषित साहित्य तो सारे समाज की मानसिकता को प्रदूषित कर देता है । कहते हैं इन सबसे प्रकृति भी कुपित हो जाती है और बाढ़ , सूखा, भूकंप , महामारी आदि प्राकृतिक प्रकोप बढ़ जाते हैं । यदि सुख - शान्ति से जीना है , स्वस्थ रहना है तो ----- साम -दाम , दंड - भेद --- किसी भी तरीके से लोगों की मानसिकता को प्रदूषित करने वाले कारणों को समाप्त करना होगा । सुख शान्ति के महल के लिए परिष्कृत विचारों की मजबूत नींव जरुरी है ।
Tuesday 31 January 2017
Wednesday 25 January 2017
भ्रष्टाचार की सोच ने पूजा - पाठ और पुण्य कार्यों की परिभाषा बदल दी
आज के समय में कथा , प्रवचन , हर प्रकार की पूजा एक व्यवसाय है , आकर्षक रोजगार है । लोग स्वयं अपने व्यक्तित्व को परिष्कृत कर , बुरी आदतों को छोड़कर अपने ह्रदय में विराजमान ईश्वर को जाग्रत करने का परिश्रम करना नहीं चाहते , वे तो धन के बल पर , चढ़ावा चढ़ाकर ईश्वर की कृपा चाहते हैं ।
व्यक्ति पूजा - पाठ चाहे न करे , केवल अपना कर्तव्य - पालन ही ईमानदारी से करे तो सारी समस्याएं हल हो जायें । संसार में रहकर अपना कर्तव्यपालन ही सबसे बड़ी पूजा है , जब व्यक्ति इसी से दूर भाग रहा है तो शान्ति कैसे हो ?
आज लोग पुण्य भी करते हैं तो उसकी आड़ में बड़ी बेईमानी कर लेते हैं जैसे ---- जैसे एक शिक्षक है या डाक्टर है , उसने किसी प्रकार रोजगार प्राप्त कर लिया l अब वह अपने वेतन के अतिरिक्त और बड़ी कमाई करना चाहता है तो वह सांठ-गाँठ करके अपने वेतन का कुछ हिस्सा किसी को देकर , अपनी जगह उसे भेज देगा और स्वयं कहीं कोई व्यवसाय करके और धन कमाएगा ।
जब व्यक्ति की सोच में बेईमानी आ जाती है तो वह समझता है कि उसने किसी को रोजगार देकर पुण्य किया और अतिरिक्त कार्य करके ' कर्मठ ' बन गया किन्तु सच्चाई यह हुई कि विद्दार्थी को योग्य व्यक्ति से ज्ञान नहीं मिला , कई लोग गलत इलाज के कारण और बीमार हो गए ।
जब सोच में ईमानदारी न हो तो ऐसे लोग जुड़कर बड़ी श्रंखला बना लेते हैं और हर व्यक्ति अपना प्रतिशत लेकर चुप रहता है , लेकिन ईश्वर की निगाह से कुछ छुपता नहीं है ।
इसीलिए पूजा पाठ , दान - पुण्य करने के बाद भी जीवन में अशान्ति है ।
आज की सबसे बड़ी जरुरत है --- सोच सकारात्मक हो ।
व्यक्ति पूजा - पाठ चाहे न करे , केवल अपना कर्तव्य - पालन ही ईमानदारी से करे तो सारी समस्याएं हल हो जायें । संसार में रहकर अपना कर्तव्यपालन ही सबसे बड़ी पूजा है , जब व्यक्ति इसी से दूर भाग रहा है तो शान्ति कैसे हो ?
आज लोग पुण्य भी करते हैं तो उसकी आड़ में बड़ी बेईमानी कर लेते हैं जैसे ---- जैसे एक शिक्षक है या डाक्टर है , उसने किसी प्रकार रोजगार प्राप्त कर लिया l अब वह अपने वेतन के अतिरिक्त और बड़ी कमाई करना चाहता है तो वह सांठ-गाँठ करके अपने वेतन का कुछ हिस्सा किसी को देकर , अपनी जगह उसे भेज देगा और स्वयं कहीं कोई व्यवसाय करके और धन कमाएगा ।
जब व्यक्ति की सोच में बेईमानी आ जाती है तो वह समझता है कि उसने किसी को रोजगार देकर पुण्य किया और अतिरिक्त कार्य करके ' कर्मठ ' बन गया किन्तु सच्चाई यह हुई कि विद्दार्थी को योग्य व्यक्ति से ज्ञान नहीं मिला , कई लोग गलत इलाज के कारण और बीमार हो गए ।
जब सोच में ईमानदारी न हो तो ऐसे लोग जुड़कर बड़ी श्रंखला बना लेते हैं और हर व्यक्ति अपना प्रतिशत लेकर चुप रहता है , लेकिन ईश्वर की निगाह से कुछ छुपता नहीं है ।
इसीलिए पूजा पाठ , दान - पुण्य करने के बाद भी जीवन में अशान्ति है ।
आज की सबसे बड़ी जरुरत है --- सोच सकारात्मक हो ।
Tuesday 24 January 2017
सद्बुद्धि के प्रकाश की जरुरत है
वर्तमान समय में लोग अपने जीवन में मिली खुशियों का आनन्द नहीं मनाते बल्कि अपना अधिकांश समय दूसरों के विरुद्ध षड्यंत्र रचने में कि किस तरह दूसरों को उत्पीड़ित किया जाये , अपनी प्रभुता कायम की जाये , ऐसी ही बातों में बिता देते हैं । इस तरह के लोग संगठित रहकर ही अपनी योजनाओं को अंजाम देते हैं ।
ऐसी ही समस्याओं से निपटने के लिए विवेक की जरुरत है । ऐसे लोगों से विवाद करना , बहस करना उचित नहीं होता । ये लोग संगठित होते हैं इसलिए बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं । आज के समय में सतत जागरूक रहने की जरुरत है । यदि हमारे जीवन की दिशा सही है , हम स्वयं किसी का अहित नहीं करते तो इन कांटो के बीच भी राह निकल आती है ।
ऐसी ही समस्याओं से निपटने के लिए विवेक की जरुरत है । ऐसे लोगों से विवाद करना , बहस करना उचित नहीं होता । ये लोग संगठित होते हैं इसलिए बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं । आज के समय में सतत जागरूक रहने की जरुरत है । यदि हमारे जीवन की दिशा सही है , हम स्वयं किसी का अहित नहीं करते तो इन कांटो के बीच भी राह निकल आती है ।
Monday 23 January 2017
कर्मयोगी बने
हमारी अधिकांश समस्याओं का कारण है ----- आलस | आज व्यक्ति सोचता है कि कम परिश्रम कर के ज्यादा पैसा कमा लें । इसके पीछे एक कारण यह भी है कि अधिकांश माता - पिता अपने बच्चों को सारी सुख - सुविधाएँ देकर बहुत आराम - तलबी से रखते हैं , इससे वे बच्चे बड़े होकर संघर्ष करने से डरते हैं । अपना कार्य दूसरों पर टालते हैं या करना भी पड़े तो बोझ समझ कर करते हैं । आलसी स्वभाव होने से ' आत्म निर्भर होना , स्वाभिमान से जीना ' जैसी भावना समाप्त हो जाती है , इससे बेईमानी और भ्रष्टाचार जैसी समस्या कि मेहनत न करनी पड़े , चालाकी से ज्यादा कमा लो --- ऐसे विचारों को बल मिलता है ।
आज पुन: गुरुकुल जैसी व्यवस्था की जरुरत है जहाँ बच्चों को गुरुमाता का स्नेह भी मिलता था और राजा हो या रंक , कृष्ण हों या सुदामा सबको अथक परिश्रम करके ज्ञान प्राप्त करना पड़ता था ।
वैज्ञानिक युग ने हमें बहुत सुविधाएँ दी हैं , हम इन सुविधाओं के साथ संघर्ष का समन्वय करें , ये सुख - सुविधा के साधन हमें आलसी न बनायें ।
आज पुन: गुरुकुल जैसी व्यवस्था की जरुरत है जहाँ बच्चों को गुरुमाता का स्नेह भी मिलता था और राजा हो या रंक , कृष्ण हों या सुदामा सबको अथक परिश्रम करके ज्ञान प्राप्त करना पड़ता था ।
वैज्ञानिक युग ने हमें बहुत सुविधाएँ दी हैं , हम इन सुविधाओं के साथ संघर्ष का समन्वय करें , ये सुख - सुविधा के साधन हमें आलसी न बनायें ।
Sunday 22 January 2017
आज की सबसे बड़ी जरुरत है ----- विवेक
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में छोटी - बड़ी अनेक समस्याएं , उलझने आती रहती हैं , यदि विवेक न हो तो ये समस्याएं और उलझती चली जाती हैं ।
पढ़ - लिख कर बड़ी डिग्रियां लेकर मनुष्य स्वयं को बहुत बुद्धिमान समझता है लेकिन नशा , सिगरेट , तम्बाकू , अश्लील फिल्म व साहित्य आदि बुरी आदतों में अपना समय और उर्जा बरबाद करना मनुष्य की दुर्बुद्धि है । ऐसी आदतों से व्यक्ति की बुद्धि स्थिर नहीं रहती वह सही वक्त पर सही निर्णय नहीं ले पाता , इस कारण कभी छोटी समस्या भी विकराल रूप ले लेती है ।
बुरी आदतें इतनी आसानी से नहीं छूटती हैं इसलिए हम कम से कम एक अच्छी आदत को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करें । नि:स्वार्थ भाव से कोई भी सेवा , परोपकार का कार्य अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करें । एक यही सत्कार्य से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होने लगेगा ।
पढ़ - लिख कर बड़ी डिग्रियां लेकर मनुष्य स्वयं को बहुत बुद्धिमान समझता है लेकिन नशा , सिगरेट , तम्बाकू , अश्लील फिल्म व साहित्य आदि बुरी आदतों में अपना समय और उर्जा बरबाद करना मनुष्य की दुर्बुद्धि है । ऐसी आदतों से व्यक्ति की बुद्धि स्थिर नहीं रहती वह सही वक्त पर सही निर्णय नहीं ले पाता , इस कारण कभी छोटी समस्या भी विकराल रूप ले लेती है ।
बुरी आदतें इतनी आसानी से नहीं छूटती हैं इसलिए हम कम से कम एक अच्छी आदत को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करें । नि:स्वार्थ भाव से कोई भी सेवा , परोपकार का कार्य अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करें । एक यही सत्कार्य से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होने लगेगा ।
Thursday 19 January 2017
संसार में शान्ति के लिए सच्चे अर्थों में धार्मिक होने की जरुरत है
आज के समय में अधिकांश लोग ऐसे हैं जो अपने धार्मिक स्थल पर जायेंगे , भजन - पूजन करते हैं , बहुत दान पुण्य भी करते हैं लेकिन व्याहारिक जीवन में झूठ , बेईमानी , भ्रष्टाचार , दूसरों को अकारण तंग करना ऐसे गलत कार्यों में संलग्न है , फिर भी वे धार्मिक कहे जाते हैं और समाज में उनका सम्मान है |
सच्चे अर्थों में धार्मिक होना पड़ेगा , मेहनत और ईमानदारी से काम करके अपने बाह्य जीवन को सफल बनाना होगा और परोपकार , सेवा निष्काम भाव से करके अपने मन को निर्मल बनाना होगा जिससे जीवन में सुख शान्ति प्राप्त हो सके |
सच्चे अर्थों में धार्मिक होना पड़ेगा , मेहनत और ईमानदारी से काम करके अपने बाह्य जीवन को सफल बनाना होगा और परोपकार , सेवा निष्काम भाव से करके अपने मन को निर्मल बनाना होगा जिससे जीवन में सुख शान्ति प्राप्त हो सके |
Monday 9 January 2017
जीवन निर्माण की शिक्षा जरुरी है
आज लोगों के जीवन का एकमात्र उद्देश्य धन कमाना है , समस्याओं से भाग कर LIFE को ENJOY करना है |। धन से समस्याएं एक सीमा तक ही हल होती हैं , यदि हमें जीवन जीना आ जाये तो धन भी कमा लेते हैं , खुशियाँ भी मना लेते हैं और जीवन भी सरलता से , शान्ति से चलता है । सुख तो मन का होता है , एक व्यक्ति सुख - साधनों पर लाखों रूपये खर्च करके भी उदास है , जीवन में खालीपन है तो दूसरी ओर सूखी रोटी खाकर भी एक व्यक्ति खुश है ।
अच्छाई और सच्चाई के रास्ते पर चलने वालों को दुनिया चैन से जीने नहीं देती , लोगों के प्रहार एक परीक्षा हैं , ईश्वर विश्वास और निष्काम कर्म की ताकत से ही जीवन में सफल हुआ जा सकता है ।
अच्छाई और सच्चाई के रास्ते पर चलने वालों को दुनिया चैन से जीने नहीं देती , लोगों के प्रहार एक परीक्षा हैं , ईश्वर विश्वास और निष्काम कर्म की ताकत से ही जीवन में सफल हुआ जा सकता है ।
Sunday 8 January 2017
समाज में शान्ति के लिए जरुरी है कि पुरुष और नारी दोनों ही एक दूसरे के महत्व को स्वीकार करें
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है , पुरुष और नारी ही इस समाज में हैं और आधुनिक युग में जी रहे हैं लेकिन चेतना विकसित नहीं हुई | स्वतंत्रता , स्वच्छंदता में बदल गई और किसी प्रकार का भय , रोक - टोक न होने से मनुष्य के भीतर छिपा हुआ पशु जाग जाता है , इससे न केवल सामाजिक जीवन अपितु पारिवारिक जीवन भी अशांत और कलहपूर्ण हो जाता है |
हम चाहे कितने भी आधुनिक हो जाएँ लेकिन जो संस्कृति हमारे रोम - रोम में बसी है , हम उससे अलग नहीं हो सकते और अपने पारिवारिक जीवन में मर्यादा और पवित्रता देखना चाहते हैं |
आज के स्वच्छंद वातावरण में जब अश्लीलता , नशा अपनी चरम सीमा पर है इस संस्कृति की रक्षा कैसे संभव है ? हमें स्वयं जागना होगा क्योकि जब समाज का चारित्रिक पतन होता है तो उसके परिणाम बड़े दूरगामी होते हैं --- रिश्तों की अहमियत ख़त्म हो जाती है , परिवार बिखर जाते हैं , महान आत्माएं भी धरती पर आने के लिए तरसती हैं ।
हम चाहे कितने भी आधुनिक हो जाएँ लेकिन जो संस्कृति हमारे रोम - रोम में बसी है , हम उससे अलग नहीं हो सकते और अपने पारिवारिक जीवन में मर्यादा और पवित्रता देखना चाहते हैं |
आज के स्वच्छंद वातावरण में जब अश्लीलता , नशा अपनी चरम सीमा पर है इस संस्कृति की रक्षा कैसे संभव है ? हमें स्वयं जागना होगा क्योकि जब समाज का चारित्रिक पतन होता है तो उसके परिणाम बड़े दूरगामी होते हैं --- रिश्तों की अहमियत ख़त्म हो जाती है , परिवार बिखर जाते हैं , महान आत्माएं भी धरती पर आने के लिए तरसती हैं ।
Saturday 7 January 2017
निराशा की वजह से जीवन अस्त - व्यस्त हो जाता है
निराशा का भावना तरक्की के रास्ते बंद कर देती है । यदि पारिवारिक जीवन में निराशा है तो सुख - शान्ति नहीं रहती , इसी तरह यदि आर्थिक क्षेत्र में निराशा ( मंदी ) हो तो जब लोगों को कोई काम नहीं मिल पाता इससे समाज में चोरी , लूट, डकैती , अपराध , व्यभिचार जैसी घटनाएँ बढ़ जाती हैं ।
लोगों में , विशेष रूप से युवाओं में उर्जा बहुत होती है , इसका सदुपयोग होना बहुत जरुरी है । यदि यह शक्ति गलत कार्यों में लग गई तो विकास अवरुद्ध हो जाता है ।
युवा भी अपना आदर्श ढूंढते हैं और उसके जैसा बनने का प्रयास करते हैं । आज के समय में जब भ्रष्टाचार का बोलबाला है , लोगों को दण्ड का भय नहीं है , तो अपना आदर्श किसे बनाये
पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण के साथ मानसिक प्रदूषण पर नियंत्रण जरुरी है ।
लोगों में , विशेष रूप से युवाओं में उर्जा बहुत होती है , इसका सदुपयोग होना बहुत जरुरी है । यदि यह शक्ति गलत कार्यों में लग गई तो विकास अवरुद्ध हो जाता है ।
युवा भी अपना आदर्श ढूंढते हैं और उसके जैसा बनने का प्रयास करते हैं । आज के समय में जब भ्रष्टाचार का बोलबाला है , लोगों को दण्ड का भय नहीं है , तो अपना आदर्श किसे बनाये
पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण के साथ मानसिक प्रदूषण पर नियंत्रण जरुरी है ।
Friday 6 January 2017
अशान्ति का कारण है ------ राह गलत होना
सच्चाई की राह पर चलना, तलवार की धार पर चलने के सामान है लेकिन इसका प्रतिफल है -- मन की शान्ति | इस राह पर चलने के लिए बहुत धैर्य और ईश्वर पर विश्वास चाहिए |
आज के समय में लोग तुरन्त लाभ चाहते हैं , इस कारण गलत राह का चयन कर लेते हैं | धन - वैभव , ऐश - आराम , सारे सुख बहुत जल्दी मिल जाएँ , इसी कारण समाज में अपराध , भ्रष्टाचार , चरित्र हीनता की समस्या उत्पन्न होती है l पतन की राह बड़ी सरल है , इस राह पर अशान्ति है जैसे जब रात्रि का आगमन होता है तो समूचा क्षेत्र अंधकारमय हो जाता है , उसी प्रकार चारित्रिक पतन सम्पूर्ण समाज को अपनी गिरफ्त में ले लेता है । ।
जब व्यक्ति अपनों को , अपने परिवार के सदस्यों को पतन के गर्त में गिरते हुए देखता है तब स्थिति असहनीय हो जाती है , इसी कारण तनाव , आत्महत्या , पारिवारिक विघटन आदि अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं ।
यह स्वतंत्रता व्यक्ति को प्रकृति ने दी है कि वह कोई भी राह चुन सकता है , उसके चयन के अनुरूप ही प्रतिफल उसे मिलेगा ।
आज के समय में लोग तुरन्त लाभ चाहते हैं , इस कारण गलत राह का चयन कर लेते हैं | धन - वैभव , ऐश - आराम , सारे सुख बहुत जल्दी मिल जाएँ , इसी कारण समाज में अपराध , भ्रष्टाचार , चरित्र हीनता की समस्या उत्पन्न होती है l पतन की राह बड़ी सरल है , इस राह पर अशान्ति है जैसे जब रात्रि का आगमन होता है तो समूचा क्षेत्र अंधकारमय हो जाता है , उसी प्रकार चारित्रिक पतन सम्पूर्ण समाज को अपनी गिरफ्त में ले लेता है । ।
जब व्यक्ति अपनों को , अपने परिवार के सदस्यों को पतन के गर्त में गिरते हुए देखता है तब स्थिति असहनीय हो जाती है , इसी कारण तनाव , आत्महत्या , पारिवारिक विघटन आदि अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं ।
यह स्वतंत्रता व्यक्ति को प्रकृति ने दी है कि वह कोई भी राह चुन सकता है , उसके चयन के अनुरूप ही प्रतिफल उसे मिलेगा ।
Thursday 5 January 2017
संसार में अशान्ति का कारण है ------- अत्याचारी का साथ देना
इस संसार में अनेक अच्छे लोग हैं , बहुत पुण्य के कार्य करते हैं लेकिन अनजाने में वे अपने पुण्यों को कम कर देते हैं , अपनी प्राणशक्ति , अपने प्रभामंडल को कमजोर कर लेते हैं |
आज के समय में हम देखते हैं कि प्रत्येक वह व्यक्ति जिसके पास कोई ताकत है ----- धन , पद , शारीरिक बल ---- वह इस शक्ति के मद में अपने से कमजोर पर अत्याचार करता है और अनेक लोगों को कोई - न - कोई लालच देकर अपने पक्ष में कर लेता है , शक्तिशाली होकर उसके अत्याचार चरम सीमा पर पहुँच जाते हैं । अत्याचारी और अन्यायी का समर्थन करने वाले , उसके विरुद्ध आवाज न उठाने वाले का क्या हश्र होता है , इसका ज्ञान हमें रामचरितमानस से मिलता है ------
' राम - रावण का युद्ध हो रहा था , रावण की सेना का सेनापति उसका शक्तिशाली पुत्र ' मेघनाद था । वह बहुत वीर था , उसने एक बार स्वर्ग के राजा इन्द्र को पराजित किया था , इसलिए उसे ' इन्द्रजीत ' भी कहते हैं । श्रीराम की सेना में लक्ष्मण सेनापति थे । लक्ष्मण जी और मेघनाद में भयंकर युद्ध हुआ और मेघनाद ने शक्तिबाण से लक्ष्मण को मूर्छित कर दिया ।
ऐसा कहते हैं जब श्री हनुमानजी संजीवनी बूटी लेकर आ रहे थे तो लक्ष्मण जी की पत्नी उर्मिला ने उन्हें एक फूलों का हार दिया कि युद्ध में लक्ष्मणजी वह हार पहन लें , पतिव्रता नारी का तेज उनकी रक्षा करेगा ।
मेघनाद की पत्नी सुलोचना भी बहुत पतिव्रता थी , उसने भी अपने पति मेघनाद के गले में फूलों का हार पहना दिया । युद्ध के मैदान में लक्ष्मण और मेघनाद में भयंकर युद्ध हो रहा था , लेकिन शक्तिशाली बाण उन फूलों के हार में छिपी पतिव्रता की शक्ति को नमन कर लौट रहे थे ।
लक्ष्मण जी का फूलों का हार वैसे ही तरोताजा था लेकिन धीरे - धीरे मेघनाद के गले के हार के फूल मुरझाने लगे , वह कमजोर पड़ गया और लक्ष्मणजी के बाण से मृत्यु को प्राप्त हुआ ।
भगवन श्रीराम से पूछा गया कि मेघनाद की पत्नी सुलोचना पतिव्रता थी फिर उसके फूलों का हार क्यों मुरझाया ?
भगवान ने कहा -- ' मेघनाद ने ऐसे व्यक्ति ' रावण ' का साथ दिया जो अत्याचारी था , जिसने परस्त्री का अपहरण किया , उस पर कुद्रष्टि डाली , इस कारण सती सुलोचना का तेज उसकी रक्षा न कर सका । जबकि लक्ष्मणजी के पास संयम का बल था । '
इस द्रष्टान्त से हमें यही शिक्षा मिलती है कि --- अपने जीवन में यदि सुख - शान्ति , विपदाओं से लड़ने और विजयी होने की ताकत यदि चाहिए तो अत्याचारी का , चाहे वह अपना सगा ही क्यों न हो , कभी साथ न दे ।
आज के समय में हम देखते हैं कि प्रत्येक वह व्यक्ति जिसके पास कोई ताकत है ----- धन , पद , शारीरिक बल ---- वह इस शक्ति के मद में अपने से कमजोर पर अत्याचार करता है और अनेक लोगों को कोई - न - कोई लालच देकर अपने पक्ष में कर लेता है , शक्तिशाली होकर उसके अत्याचार चरम सीमा पर पहुँच जाते हैं । अत्याचारी और अन्यायी का समर्थन करने वाले , उसके विरुद्ध आवाज न उठाने वाले का क्या हश्र होता है , इसका ज्ञान हमें रामचरितमानस से मिलता है ------
' राम - रावण का युद्ध हो रहा था , रावण की सेना का सेनापति उसका शक्तिशाली पुत्र ' मेघनाद था । वह बहुत वीर था , उसने एक बार स्वर्ग के राजा इन्द्र को पराजित किया था , इसलिए उसे ' इन्द्रजीत ' भी कहते हैं । श्रीराम की सेना में लक्ष्मण सेनापति थे । लक्ष्मण जी और मेघनाद में भयंकर युद्ध हुआ और मेघनाद ने शक्तिबाण से लक्ष्मण को मूर्छित कर दिया ।
ऐसा कहते हैं जब श्री हनुमानजी संजीवनी बूटी लेकर आ रहे थे तो लक्ष्मण जी की पत्नी उर्मिला ने उन्हें एक फूलों का हार दिया कि युद्ध में लक्ष्मणजी वह हार पहन लें , पतिव्रता नारी का तेज उनकी रक्षा करेगा ।
मेघनाद की पत्नी सुलोचना भी बहुत पतिव्रता थी , उसने भी अपने पति मेघनाद के गले में फूलों का हार पहना दिया । युद्ध के मैदान में लक्ष्मण और मेघनाद में भयंकर युद्ध हो रहा था , लेकिन शक्तिशाली बाण उन फूलों के हार में छिपी पतिव्रता की शक्ति को नमन कर लौट रहे थे ।
लक्ष्मण जी का फूलों का हार वैसे ही तरोताजा था लेकिन धीरे - धीरे मेघनाद के गले के हार के फूल मुरझाने लगे , वह कमजोर पड़ गया और लक्ष्मणजी के बाण से मृत्यु को प्राप्त हुआ ।
भगवन श्रीराम से पूछा गया कि मेघनाद की पत्नी सुलोचना पतिव्रता थी फिर उसके फूलों का हार क्यों मुरझाया ?
भगवान ने कहा -- ' मेघनाद ने ऐसे व्यक्ति ' रावण ' का साथ दिया जो अत्याचारी था , जिसने परस्त्री का अपहरण किया , उस पर कुद्रष्टि डाली , इस कारण सती सुलोचना का तेज उसकी रक्षा न कर सका । जबकि लक्ष्मणजी के पास संयम का बल था । '
इस द्रष्टान्त से हमें यही शिक्षा मिलती है कि --- अपने जीवन में यदि सुख - शान्ति , विपदाओं से लड़ने और विजयी होने की ताकत यदि चाहिए तो अत्याचारी का , चाहे वह अपना सगा ही क्यों न हो , कभी साथ न दे ।
Tuesday 3 January 2017
संसार में अशान्ति का कारण है ---- छल - कपट
आज संसार में ऐसे लोगों की अधिकता है जो अपना अधिकांश समय दूसरों को बेवकूफ बनाने , धोखा देने और चालाकी से अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगाते हैं | परिवार में सम्पति के झगड़े , भाई - भाई में टकराव , विभिन्न संस्थाओं में उत्पीड़न ऐसे लोगों की वजह से होता है |
ऐसे लोगों से निपटने के लिए शारीरिक शक्ति की नहीं , बल्कि विवेक की जरुरत होती है |
सन्मार्ग पर चलने से , निष्काम कर्म करने से मन निर्मल होता है और इस निर्मल मन में ही विवेक जाग्रत होता है |
ऐसे लोगों से निपटने के लिए शारीरिक शक्ति की नहीं , बल्कि विवेक की जरुरत होती है |
सन्मार्ग पर चलने से , निष्काम कर्म करने से मन निर्मल होता है और इस निर्मल मन में ही विवेक जाग्रत होता है |
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