Thursday 9 August 2018

समाज में व्याप्त विषमताएं अशांति उत्पन्न करती हैं

 समाज  में  जात - पांत ,  ऊँच - नीच   और   अमीर - गरीब    के  बीच  गहरी  खाई  होने  से   अशांति  उत्पन्न  होती  है  l  कितने  भी  नियम  क्यों  न  बन  जाएँ  ,  जब  तक  व्यक्ति  की  मानसिकता  में  परिवर्तन  नहीं  होगा  ,  स्थिति  में  सुधार  संभव  नहीं  है   l  इतनी  तरह  की  विषमता  होने  के  अतिरिक्त   अब  समाज  में  एक  नई  तरह  की  विषमता  उत्पन्न  हो  गई  है  ,  उसका  आधार  है  ---- स्वार्थ   l    जो  समर्थ  हैं ,  शक्ति  संपन्न   हैं   वह  अपनी  शक्ति  और  धन  को  और  बढ़ाना  चाहता  है  ,  जिन  लोगों  से  उसके  इस  स्वार्थ  की  पूर्ति  होती  है   उनका  एक  वर्ग  बन  जाता  है   l  इन  लोगों  का  एक  ही  उद्देश्य  है -- अपने  स्वार्थ  व  अहंकार  की  पूर्ति  करना   l  जो  इनके  इस  उद्देश्य  की  पूर्ति  न  करे  वह    दूसरे  वर्ग  का  होगा   l  आज  के  समय  में  इन्ही  दोनों  वर्गों  की  खींचातानी  चलती  है   l  

Wednesday 8 August 2018

WISDOM ----- चिंता हमारे दुःखों को कम नहीं करती , बल्कि वर्तमान की खुशियों से हमें दूर कर देती है

 '  चिंता  हमारे  जीवन  को  घुन  की  तरह  खाती  है  इस  कारण  मनुष्य  कभी  किसी  लक्ष्य  तक  नहीं  पहुँच  पाता  l ' 
   लगभग  92  प्रतिशत  व्यक्तियों  की   चिंताएं  उन  कारणों  को  लेकर  होती  हैं  जिन्हें   बदल  पाना  हमारे  हाथ  में  नहीं  है  l   व्यक्ति  के  जीवन में    कुछ  चिंता   ही  ऐसी  होती  हैं  जिनके  पीछे  सार्थक  कारण  होता  है   ,     उनकी  चिंता  में  अपनी  ऊर्जा  बरबाद  न  कर  के  ,  उनके  सम्बन्ध  में  चिंतन  करना  चाहिए  l   उचित  समय  पर  विवेक  से   निर्णय  लेकर   उनका  समाधान  हो  सकता  है  और  सार्थक  परिणाम  प्राप्त  किया  जा  सकता  है  l   ईश्वर  की  प्रार्थना  और  सत्कर्मों  से  कठिन  समय  में  जीवन  को  सही  दिशा  मिलती  है  l  

Monday 6 August 2018

समाज के नैतिक पतन का मूल कारण है ---- भ्रष्टाचार --- अनैतिक तरीके से कमाया गया धन

  अनैतिक  तरीके  से ,  भ्रष्टाचार  से  धन  बड़ी  तेजी  से  आता  है  ,  एक  साधारण  व्यक्ति  देखते - देखते   बहुत  ही  कम  समय  में  करोड़पति  बन  जाता  है  l  धन  कमाने  की  यह  गलत  राह  व्यक्ति  चुनता  ही  इसलिए  है  कि  इस  असीमित  धन  से  वह  अपनी  दमित  कामनाओं - वासनाओं  की  पूर्ति  कर  सके  l   इससे  समाज  का  नैतिक  पतन  तो  होता  ही  है ,  इससे  पूरा  पर्यावरण  प्रदूषित  होता  है  l   बड़े  शहरों  में  तो  इतनी  कारें ,  वाहन  आदि  हैं  कि  खुला  साफ  आसमान  दिखना  मुश्किल  हो  गया  है  l   इनमे  असंख्य  वाहन  ऐसे  होंगे   जिनका  उपयोग  अनैतिक  और  अवैध  कार्यों  के  लिए  होता  है   l   आज  का व्यक्ति  दोगला  है  ,  एक  शहर  में  परिवार  के  साथ  रहता  है  कि  वह   समाज  का  संभ्रांत  नागरिक  है  ,  बहुत  पैसा  है ,  महँगी  कारें  हैं   तो  दूसरे  शहरों   में  जाकर  अपनी  दुष्प्रवृतियों  को  अंजाम  देते  हैं   ताकि  उनकी  असलियत  लोगों  को  पता  न  चले  l 
 हर  तरह  के  अपराध ,  अनैतिक  और  अवैध  कार्य  इसी  समाज  में  सबके  बीच  होते  हैं    लेकिन  अपनी  कमजोरियों  के  कारण  सब  उन्हें  अनदेखा  करते  हैं  l  पाप  और  अपराध    भी  वैश्विक  स्तर  पर  होने  लगे 
स्थिति  तभी  सुधरेगी    जब  कठोर  दंड  होगा   और  उसके  भय  से  लोग  स्वयं  सुधरना  चाहेंगे  l     

Saturday 4 August 2018

पापी और अनाचारी का साथ देने वाला भी उतना ही पापी होता है

   समाज  में   अपराध  इसलिए  बढ़ते  हैं  क्योंकि  समाज  में  ही  अनेक  समर्थ  और  शक्तिसंपन्न  लोग  उन्हें  संरक्षण  देते  हैं   l  इसके  पीछे  उनकी  सोच  यह  होती  है  कि  उस  अपराधी  के  माध्यम  से  वे  भी  अपनी  कामनाओं  और  वासनाओं  की  पूर्ति  करेंगे   और  समाज  में  शराफत  का  चोला  पहन  कर  रहेंगे  l  ऐसे  लोगों  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  होता  है  ,  वे  सोचते  है  कि अपराधी  को  , पापी  को  संरक्षण  देने  से  वे  और  उनका  परिवार  उसकी  अपराधिक  गतिविधियों  से  बचा  रहेगा  l  वास्तव  में  ऐसा  होता  नहीं  है  l  जो  अपराधी  है ,  छोटी - छोटी  बच्चियों  व  बच्चों  के  साथ  जघन्य  अपराध  करते  हैं  ,  वे  मानसिक  रूप  से  विकृत  होते  हैं   l  वे  केवल  कमजोर   पर  ही  अत्याचार  नहीं  करते ,  वे  मौके  का  फायदा  उठाते  हैं  l  उनके  लिए  अपने - पराये ,  रिश्ते - नाते  का  कोई  अर्थ  नहीं  होता  l  जिन  स्थानों  पर ,  जिन  परिवारों  में  उनका  सरलता  से  आना - जाना  होता  है  ,  उनकी  मानसिक  विकृति  वहां  भी  अपराधों  को  अंजाम  देती  है   l  सच  यही  है  कि  अत्याचारी , अनाचारी  का  साथ  देने  वाले ,  उसे  संरक्षण  देने  वाले   अपने  हाथ  से  अपना  दुर्भाग्य  लिखते  हैं  ,  अपने  परिवार ,  अपने  प्रियजनों  को    पतन  की  गहरी  खाई  में  धकेलने  की  व्यवस्था  अपने  हाथ  से  करते  हैं  l  यह  कटु - सत्य  जितनी  जल्दी  समझ  में  आ  जाये   तो  समाज  में , परिवार  में    सुख - शांति   होगी   l   

Thursday 2 August 2018

नैतिक पतन के दूरगामी परिणाम असहनीय होते हैं

  नारी  पर  अत्याचार  तो  सदियों  से   इस  धरती  पर  हो  रहा  है   l  इसके  लिए  कोई  देश ,  कोई  धर्म  ,  कोई  जाति  दोषी  नहीं  है  ,  यह  तो  पुरुष  वर्ग  की मानसिकता  है  ,  उसके  भीतर  का  राक्षस  है  ,  जिसके  कारण  इस  वैज्ञानिक  युग  में  रहते  हुए  भी   वह  मानसिक  स्तर  पर    आदिमकाल  में  है   l    पानी   बड़ी  तेजी  से   नीचे  गिरता  है ,  चारित्रिक  पतन  पूरे  समाज  को  अपनी  गिरफ्त  में  ले  लेता  है  l  एक  ओर  राक्षसी  प्रवृति  के  कारण  छोटी - छोटी  बच्चियां  सुरक्षित  नहीं   हैं ,  कुछ  लोग  पकड़े  जाते  हैं , और  कितने  ही  लोग  मुखौटा  लगाकर  समाज  में   शान  से  रहते  हैं ,  लेकिन  उनके  अनैतिक  और  अमानवीय कार्य   पूरे   समाज  पर  नकारात्मक  प्रभाव  डालते  हैं  l   दूसरी  और  विज्ञापन , प्रचार  और   फिल्मों  के  माध्यम  से   अश्लीलता  अपनी  चरम  सीमा  पर  है  ,  इसका  प्रभाव  मन  पर  इतना  गहरा  पड़ता  है  कि  समाज  से   मर्यादित  जीवन  की  उम्मीद  रखना  कठिन  है  l   यही  स्थिति  कठिन  है   l  हम  चाहे  कितने  ही  आधुनिक  हो  जाएँ    अपनी  संस्कृति  से  अलग  नहीं  हो  सकते ,  अपने  पारिवारिक  रिश्तों  में  पवित्रता  देखना  चाहते  हैं    लेकिन  बाढ़  तो  सबको   बहा  ले जाती  है  l  नैतिक  पतन  का  यही  परिणाम  है ---- नारी  ने  तो  अत्याचार   सहन  किया ,  लेकिन  अपने  ही  रिश्तों  को ,  अपनों  को  इस  बाढ़  में  बहते  हुए  देखना   पुरुष  की  सबसे  बड़ी  हार  है ,  उसके  अहंकार  पर  चोट  है   l  किस - किस  को   मृत्यु  के  मुँह  में   डालोगे ,  घुट - घुट  कर  जीना  पड़ेगा   l 
  अपनी  'पुरुष प्रधानता '  और  अपने  अहंकार  को   गहरे  घाव  में  बदलने  और  रिसने  से  बचाना  है   तो  इस आदिम  युग  से  बाहर  निकलकर    इनसान  बनना  होगा  l  छोटी - छोटी बच्चियां  आत्मरक्षा  के  उपाय  नहीं  सीख  सकतीं