Saturday 20 October 2018

दुष्प्रवृतियों को त्यागने से ही सुख - शांति संभव है

  आज  की  सबसे  बड़ी  विडम्बना  यह  है  कि  मनुष्य  सुख - शांति  तो  चाहता  है  ,  लेकिन  उसके  लिए  स्वयं  को  बदलने  को  तैयार  नहीं  है  l  समाज  का  बहुत  बड़ा भाग  आज   नशे  का  शिकार  है  l     भारत  एक  गर्म  जलवायु  का  देश  है  l   शराब ,  मांसाहार   उन  देशों  के  निवासियों  के  लिए   उचित है  जहाँ  ठण्ड  बहुत  पड़ती  है  l  भारत  जैसे  गर्म  जलवायु   में  रहने  वाले  लोगों  के  लिए   शराब  और  मांसाहार  जहर  का  काम  करता  है  ,  इसके  सेवन  से  बुद्धि  भ्रमित  हो  जाती  है  ,  मनुष्य  विवेकशून्य  हो  जाता  है  ,  सोचने - समझने  की  शक्ति  नहीं  रहती  ,  वक्त  पर  सही  निर्णय  नहीं  ले  सकते  l   शराब  के  अधिक  सेवन  से   व्यक्ति  चाहे  साधारण  हो  या  बड़ा  अधिकारी  हो  ,  बेहोशी  की  हालत  में  रहता  है  ,  और  कोई  भी  काम  जिम्मेदारी  से  नहीं  करता  है  l 
 शराब   के  साथ  फिर  गुटका , तम्बाकू ,  सिगरेट ,  और  समाज  में   विभिन्न  तरीके  से  परोसी  जाने  वाली  अश्लीलता  ---- इन  सबकी   वजह  से  ही   समाज  में  अपराध ,  हत्याएं ,  दुष्कर्म   और  प्राकृतिक  प्रकोप  बढ़े  हैं   l  जरुरी  है  कि  मनुष्य  अपना  हठ  छोड़कर  सन्मार्ग  पर  चले   l  

Thursday 18 October 2018

स्वस्थ समाज का निर्माण जरुरी है

 अभी  तक  जो  विकास  हुआ  है  वह  भौतिक  है   l  मनुष्य  के  व्यक्तित्व  के  दो  पक्ष  हैं -- आंतरिक  और  बाह्य  l  यह  विकास  बाह्य  है  l  आंतरिक  द्रष्टि  से  मनुष्य  अभी  भी   असभ्य  है  ,  पशु - तुल्य  है  ,  उसके  भीतर  का  राक्षस  अभी  मरा  नहीं  है  l    ऐसा  इसलिए  है  क्योंकि  जीवन  को  सुख - सुविधा संपन्न  बनाने  के  तो  बहुत  प्रयास  हुए  ,  लेकिन  आत्मिक  विकास  के  कोई  प्रयास  नहीं  हुए  l   इसलिए  धर्म ,  जाति  के  नाम  पर  बहुत  अत्याचार  हुए ,  अमीरी - गरीबी  का  भेदभाव  अपने  चरम  पर  है ,  युगों  से  महिलाओं  पर  अत्याचार  हुए  l  अत्याचार , अन्याय  इसलिए  भी  बढ़ता  गया   क्योंकि  समर्थ  पक्ष  ने  समाज  के  प्रमुख  लोगों  और  धर्म  के  ठेकेदारों  को  अपने  पक्ष  में  कर  इस  बात  को  लोगों  के  दिलोदिमाग  में  भरा  कि  जो  पीड़ित  हैं  उनका  भाग्य  ही  ख़राब  है  और  उनका  जन्म  अत्याचार  सहने  के  लिए  ही  हुआ  है  l
  अन्याय  और  अत्याचार  के  विरुद्ध  आवाज  न  उठाने  से  अत्याचारियों  के  हौसले  बुलंद  होते  गए   और  उन्होंने  दूसरों  को  सताना ,  अपनी  हुकूमत  चलाना ,  अपने  से  तुच्छ  समझना ,  उत्पीड़ित  करना  अपना  जन्म  सिद्ध  अधिकार  समझ  लिया  l  धीरे - धीरे  यह  उनकी  आदत  बन  गई   और  खानदानी  बीमारी  की  तरह  एक  पीढ़ी  से  दूसरी  पीढ़ी  में  आती  रही   l
  पीड़ित  पक्ष  को  अपनी  भाग्यवादी  सोच  को  बदलना  होगा  कि---  यह  दुर्भाग्य  नहीं , कमजोरी  है  l 
अपने  ज्ञान ,  जागरूकता ,  संगठन  और  आत्मबल  के  सहारे  ही   अत्याचारी  का  मुकाबला  किया  जा  सकता  है   l   

Wednesday 17 October 2018

संसार में सुख - शान्ति के लिए ह्रदय की पवित्रता अनिवार्य है l

आज  संसार  में  अशान्ति  का  सबसे  बड़ा  कारण  है  --- मनुष्य  के  मानसिक  विकार -- काम , क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार  आदि  l  यह  सब  विकार  मनुष्य  के  ह्रदय  को  अपवित्र  कर  देते  हैं   और  इसी  अपवित्रता  के  कारण  विभिन्न  अपराध , दंगे - फसाद होते  हैं   l  शारीरिक  शुद्धता  का  कोई  मतलब  नहीं  होता  क्योंकि  सबके  शरीर  में  चाहे  वह  पुरुष  हो  या  नारी  मल-मूत्र ,  खून  और  न  जाने  क्या - क्या  भरा  है  जो   चिकित्सा  के  उपकरण  की  सहायता  से  देखा  जा  सकता  है  l  लेकिन  मन  के  विकारों  को  किसी  उपकरण  की  सहायता  से  देखा  नहीं  जा  सकता  ,  यह  तो  व्यक्ति  की  क्रिया  और  उसके  परिणामों  से समझ  में  आता  है   l  इन  विकारों  की  वजह  से  मनुष्य  की  बुद्धि  भ्रमित  हो  जाती  है   और  वह   अनैतिक ,  अमर्यादित  कार्य  कर  के  संसार  में  अशांति  उत्पन्न  करता  है  l  इसलिए  हमारा  सारा  प्रयास  मन  को  पवित्र  बनाने  पर  होना  चाहिए   l  

Tuesday 16 October 2018

दोगलापन समाज के लिए अभिशाप है

 कहते  हैं  -- अच्छाई  में  गजब  का  आकर्षण  होता  है  ,  इसलिए  पापी  से  पापी  भी  अपने  परिवार  में ,  समाज  में  स्वयं  को  अच्छा  दिखाना  चाहता    है  l  उसके  व्यक्तित्व  के  अँधेरे  पक्ष  पर ,  उसके  अवगुणों  पर  परदा  पड़ा  रहे  ,  इसके  लिए    ऐसे  लोगों  को   कितनों  के  आगे  नाक  रगड़नी  पड़ती  है ,  कितने  ही  लोगों  को   मुंह  बंद  रखने  के  लिए  धन  देना  पड़ता  है   l  फिर  इस  धन  को  कमाने  के  लिए  बेईमानी ,  भ्रष्टाचार  करना  पड़ता  है  l   किसी  गड़बड़ी  में  फँस  न  जाएँ ,  यह  तनाव  दिमाग  में  रहता  है   l  इस  तनाव  को  दूर करने  के  लिए  नशा  करते  हैं   l  धीरे - धीरे  जीवन  पतन  के  गर्त  में  गिरता  जाता  है  l 
   बाह्य  रूप  से  देखने  पर  ऐसे  लोगों  का  सुख - वैभव  का  जीवन  दिखाई  देता  है   लेकिन  वास्तविकता  में   कितनी  ' बेचारगी '  है  l 
  मनुष्य  अपनी  कमजोरियों  के  कारण  ही  अपनी  दुर्गति   कराता  है  l  बेहतर  यही  है    कि  जैसे   वास्तव  में  हैं ,  वैसे  ही  दिखाई  दें   l  कहते  हैं -- मनुष्य  के  व्यक्तित्व  में  इतने  छिद्र  होते  हैं   कि  एक  दिन  सच्चाई  बाहर  आ  ही  जाती  है  l  अपनी  कमजोरियों  को  ,  अपनी  गलती  को  स्वीकार  करना   ही  सबसे  बड़ी  वीरता  है   ,  ऐसा  कर    के  ही  व्यक्ति  तनावरहित  जीवन  जी  सकता  है   l  

Sunday 14 October 2018

अपराधी का सबसे बड़ा दंड है ---- उसका बहिष्कार करो

  यह  समाज  पुरुष  और  नारी  से  मिलकर  बना है   l  मनुष्य  की   दुष्प्रवृत्तियों  के  कारण  ही  अपराध  होते  हैं   l  महिलाओं  का  चरित्र  हनन  और  छोटे - छोटे  बच्चे - बच्चियों  के  साथ  जो  जघन्य  अपराध  होते  हैं   उनके  सबूत,  गवाह  आदि   नहीं  मिल   पाते  ,  अधिकांश  अपराधी  बच  जाते  हैं  ,  समाज  में  रौब  से  घूमते  हैं ,  निरंकुश  हो  कर  और  अपराध करते  हैं  l   जो  सच  है , उसे  परिवार  व  समाज  जानता  है   इसलिए   अपना  दिल  मजबूत  कर  अपराधी का  परिवार ,  समाज  व  कार्यस्थल में  बहिष्कार  अवश्य  करें  l     न्याय  की  प्रक्रिया   होती  है ,  प्रकृति  से  भी  दंड  ' काल ' निर्धारित  करता  है  l  कम  से कम   अपराधी  का  बहिष्कार  कर  के ,  उससे  दूरी  बनाकर     समाज  को  जागरूक  किया  जा  सकता  है   l  इससे  अनेक  लोग  अपराधी  के  चंगुल  में  आने  से बच  जायेंगे   और  अपराध  पर  नियंत्रण  अवश्य  होगा   l  

Saturday 13 October 2018

जागरूक समाज में ही अपराध पर नियंत्रण संभव है

  आज  के  समय  में   सही  व्यक्ति  की  पहचान  मुश्किल  हो  गई  है  l  देखने  में  लगता  है  कि  व्यक्ति  बहुत  शिक्षित  है ,   सभ्य   है ,    उच्च  पद  पर  है ,  सभ्रांत  नागरिक  है   लेकिन  उसके  पीछे  कितनी  कालिक  है  ,  यह  जानना  हर  व्यक्ति  की  समझ  से  बाहर  है  l    अब  लोगों  की  रूचि   अपराधी  का  बहिष्कार  करने  , उसके  विरुद्ध  खड़े  होने  की  नहीं   हैं   l  उसके  माध्यम  से  अपने  स्वार्थ   पूरे   करने  में   है  l  अनेक  लोग  अपराधी  को  संरक्षण  देते  हैं   और  अनेक  उसके  संरक्षण  में  पलते  हैं   l  शक्ति  और  बुद्धि  का  दुरूपयोग   समाज  में   अनेक   अपराधों    को  जन्म  देता  है   l   अपनी   कमियां  उजागर  न  हों  इसलिए  लोग    चुप  रहते  हैं    l  जब  समाज  जागरूक  होगा  ,  तत्कालीन  लाभ  न  देखकर   दूरदर्शिता  से   निर्णय  लेगा   तभी  सुख - शांति  संभव  होगी   l 

Friday 12 October 2018

संवेदनहीनता समाज में अनेक सामाजिक बुराइयों को जन्म देती है

 युगों  की  गुलामी  के  बाद  भी  मनुष्य  ने  प्रेम  से  रहना  नहीं  सीखा  l  स्वार्थ  और  लालच  ने  मनुष्य  को  संवेदनहीन  बना  दिया  है  l  पुरुष  के  अहंकार  पर  यदि लगाम  न  लगे  तो  उसकी  क्रूरता , निर्दयता  बढ़ती  जाती  है  l  हर  धर्म    ने  अपने  ही  समाज  की  आधी  जनसँख्या --- नारी  पर  अत्याचार  किये  हैं   l  बस !  उनका  तरीका   भिन्न - भिन्न  है  l    सती-प्रथा ,  बाल - विधवा ,  दहेज- हत्या , कन्या भ्रूण हत्या ,  पारिवारिक  हिंसा --- यह  सब   पारिवारिक  संवेदनहीनता  को  बताते   हैं  l  ऐसे  व्यक्ति  जो  अपने  परिवार  के  प्रति  संवेदनहीन  हैं  ,  वे  समाज  के  हर  घटक  के  प्रति  -- मनुष्य , पशु - पक्षी ,  प्रकृति  सम्पूर्ण  पर्यावरण --- सबके  प्रति  संवेदनहीन  होते  हैं    क्योंकि  उनके  ऊपर  उनका  स्वार्थ  और  अहंकार  हावी  होता  है   l   आज   समाज    में  ऐसे  ही  लोगों  की  भरमार  है   इसीलिए  अबोध  बच्चे - बच्चियां  सुरक्षित  नहीं  हैं  l   कार्य स्थल  उत्पीड़न  के  केंद्र  बन  गए  हैं   l   विकास  के  नाम  पर   पेड़ों  की  कटाई  से  और  अधिक  पर्यावरण   प्रदूषण  को  आमंत्रित  किया  जा  रहा  है  l
  अनेक  लोग ,  अनेक  संगठन   एक  स्वस्थ  समाज  के  निर्माण  में  प्रयत्नशील  हैं   लेकिन  मनुष्य  की  एक  बहुत  बड़ी  कमजोरी -- यश  की  लालसा --- उन्हें   एकसूत्र  में   बंधने  नहीं  देती   l    इसके  अतिरिक्त  कहीं  न  कही   अपने  संगठन  की  चिंता ,  अपने  जीवन  की  सुरक्षा   आदि  अनेक  कारणों  से  लोग  अपराधियों  को  जानते  हुए  भी ,  उनके  अत्याचारों  को  समझते  हुए  भी  चुप  रहते  हैं   l  इससे  अपराधियों  को  और  प्रोत्साहन  मिलता  है    l 
  जब  समाज  में  केवल  एक  धर्म  होगा ---- इन्सानियत   और  एक   जाति  होगी  ---- ' मनुष्य '---- तभी    स्वस्थ  समाज  का  निर्माण  संभव  होगा   l   

Thursday 11 October 2018

दंड न मिलने के कारण अपराध को प्रोत्साहन मिलता है

 अपराध  चाहे  छोटा  हो  या  बड़ा  ,  जब  अपराधी  को  उसके  लिए  दंड  नहीं  मिलता  तो  दूसरों  को  भी  प्रोत्साहन  मिलता  है  l  भ्रष्टाचार ,  बेईमानी  आदि  में  तुरत  लाभ  ज्यादा  है  ,  इसका  भविष्य  में  क्या  परिणाम  होगा  ,  इस  बारे  में  लोग  नहीं  सोचते  l  तुरत  लाभ  का  आकर्षण  इतना  अधिक  है  कि  कोई  व्यक्ति ,  कोई  संस्था  इससे  अछूती  नहीं  बचती  l  जो  लोग  जघन्य अपराध  कर  के  बच  जाते    , वे  और  इस  क्षेत्र  के  विशेषज्ञ  बन  जाते  हैं  l  जब  कोई  समाज  इसी  तरह   लम्बे  समय  तक  अपराधियों  को   छोड़  देता  है  तो   एक   समय     ऐसा  आता  है   जब   हमारे  चारों और  ऐसे  ही  व्यक्ति  होते  हैं  जो  किसी  न  किसी  अपराध  में  संलग्न  होते  हैं   l  अपराध  उनकी  आदत  बन  जाता  है  l  

Monday 8 October 2018

बुद्धि और शक्ति के दुरूपयोग से समाज में अराजकता बढ़ती है

  नशा ,  शराब , गुटका , तम्बाकू  आदि    के  कारण  व्यक्ति  का  चारित्रिक  पतन  होता  है  ,  लेकिन  अपराध  और  संस्कृति  को  पतन  की  और  ले  जाने  वाली   ह्रदय विदारक  घटनाएँ  तभी  बढ़ती  हैं  बुद्धि  और  शक्ति  से  संपन्न  व्यक्ति   इन  घटनाओं  को   छोटी  और  साधारण  कहकर  नजरंदाज  कर  देते  हैं   l  इससे अपराधियों  के  हौसले  बढ़ते  हैं   l  अपराध  इसलिए  भी  बढ़ते  हैं  क्योंकि   ऐसे  दुर्बुद्धि ग्रस्त  लोग  समाज  में  अपना  रुतबा  और  भय   कायम  करने  के  लिए  अपराधियों  की  मदद  लेते  हैं  l  कभी  विदेशी  आततायियों  से  बेटियों को  बचाने  के  लिए   परदा - प्रथा  शुरू  हुई  थी  ,  अब  देशी  आततायियों  से  बेटी बचाना  कठिन  समस्या  है   l   एक  साधारण ,  अति  सामान्य  व्यक्ति  यदि  कोई  अपराध  करता  है  तो  उसका  प्रभाव  उस  पर और  अधिक - से - अधिक   उसके  परिवार  पर  पड़ता  है  l   लेकिन   जब  बुद्धि  ,  धन  और  शक्ति  से  संपन्न  व्यक्ति  अपराध  करते  हैं ,  अपराधियों  को  संरक्षण  देते  हैं   तो  उसका  दुष्प्रभाव  सम्पूर्ण  समाज  और  राष्ट्र  पर  पड़ता  l  छोटी - छोटी  बच्चियों  की  चीखों  और  आहों  से  प्रकृति  को  भी  कष्ट  होता  है  और  उसका  परिणाम  सामूहिक  दंड  के  रूप  में  सम्पूर्ण  समाज  को  भोगना  पड़ता है  l
  संवेदनहीन   समाज  का  सबसे  दुःखद  पहलू   यह  है  कि  इसमें  कायरता   अति  की  बढ़  जाती  है  ,  लोगों  का  दोहरा  चरित्र  होता  है  ,  असली  अपराधी  को  पहचानना  कठिन  होता  है  l  

Saturday 6 October 2018

दुर्बुद्धि के कारण मनुष्य की दुर्गति होती है

 इस  सम्बन्ध  में   एक  कथा  है -----  राजा  नहुष   को  पुण्य  कार्यों  के  फलस्वरूप  स्वर्ग  जाने  का  अवसर  मिला   और  इंद्र  पद  के  अधिकारी  हो  गए  l   इतना  उच्च  पद  पाकर  वे  मदांध  हो  गए   और  सोचने  लगे  कि  इंद्र  के  अंत:पुर  पर  भी  उनका  अधिकार  होना  चाहिए   और  इन्द्राणी  समेत  उनकी  सब  सखियों  को   उनकी  सेवा  में  रहना  चाहिए  l  यह   सूचना    इन्द्राणी  तक  पहुंची  तो  वे  बहुत  विचलित  हो   गईं  और  वे  इस  समस्या  से  बचने  का  उपाय  सोचने  लगीं  l 
  इन्द्राणी  ने   कूटनीतिक   चाल  चली  l  उन्होंने  नहुष  को  कहला  भेजा  कि   वे  सप्त ऋषियों  को  पालकी  में  जोतकर  उस  पर  बैठकर   अंत:पुर  आयें  तभी  उनका  स्वागत  होगा   l 
मदांध  को  भला - बुरा  नहीं  सूझता  ,  उन्होंने   तत्काल  यह  प्रस्ताव  स्वीकार  कर  लिया   और  सप्त ऋषियों  को  पालकी  में  जोतकर   अंत:पुर  चले   l   मार्ग  की  दूरी  में  लगने  वाला  विलम्ब  उनसे  सहन  नहीं  हो  रहा  था   l  ऋषि  कमजोर  थे  ,  नहुष  पालकी  में  बैठे  थे  l  इतनी  भारी  पालकी  को  उठाकर  वे  धीरे - धीरे  चल  रहे  थे  l    ऋषियों  को  दौड़ने  का  आदेश  देते  हुए   वे  अपनी  भाषा  में  सर्पि  सर्पि  कहने  लगे   l  ऋषियों  से  यह  अपमान   सहा  नहीं  गया  ,  उन्हें  क्रोध  भी  आ  गया   l  उनने  पालकी  को  धरती  पर  पटक  दिया   और  शाप  दिया   कि  सर्पि  सर्पि  कहने  वाले  को  सर्प  की  योनि  मिले   l  नहुष  पालकी  से  गिरकर  धरती  पर  आ  गए  और  सर्प  की  योनि  में  बुरे  दिन  बिताने  लगे  l  

Friday 5 October 2018

संसार में अशांति का कारण मनुष्य का नैतिक पतन है

 कहते  हैं  हम  सबके  मन  के  तार  ईश्वर  से  जुड़े  हैं  ,  इसलिए   व्यक्ति   की  भावनाएं  कैसी  हैं  , उसके  अंत:करण  में   कैसे  विचार - भावनाएं  हैं  यह  सब  ईश्वर  जानते  हैं  l  इस  सम्बन्ध  में  एक  कथा  है  ---- नारदजी  एक  बार  धरती  पर  भ्रमण  को  आये   l  उन्होंने  देखा  धरती  पर  धार्मिक  उत्सव , कर्मकांड  बहुत  हो  रहे  हैं  ,  सब  लोग  अपने - अपने  तरीके  से  भक्ति  में  मग्न  हैं  ,  लेकिन  अशांति  बहुत  है ,  मनुष्य , पशु - पक्षी ,  पर्यावरण  --- कहीं  कोई  रौनक  नहीं  है ,  अपराध , दुष्कर्म ,  लूटपाट ,  आत्महत्या  आदि  नकारात्मकता  बढ़  गई  है  l    नारदजी  का  मन  नहीं  लगा  और  उन्होंने  भगवान  से  यह  सब  व्यथा  कही   और    मानव  के  कल्याण  का  उपाय पूछा   l   भगवान  ने  कहा -- सच  जानने  के  लिए    तुम  उस  समय  धरती  पर  जाओ  , जब   पृथ्वीवासी  अपने - अपने  भगवान  को  सुला  देते  हैं   l   ईश्वर  के  नाम  का , उनके  स्थान  का  उपयोग   जिस  तरह  करते  हैं   वह  अब  प्रकृति  से  सहन  नहीं  हो  रहा  है   l 
  भगवान  ने  कहा  -- जब  ये  धार्मिक  स्थल  शिक्षा  के  और  लोक कल्याण  के  केंद्र  बनेंगे ,  उनके  माध्यम  से  सद्प्रवृतियों  और  सद्विचारों  का  प्रचार - प्रसार  होगा   तभी  संसार  में  सुख - शांति  होगी  l
  मनुष्यों  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  देखकर  नारदजी  का  मन  व्यथित  हो  गया  l 

Monday 1 October 2018

अति का अंत होता है

  इस  संसार  में  जब  भी  अत्याचार  अपने  चरम  पर  पहुंचा  है ,  उसका  अंत  हुआ  है   l  संसार  तो  केवल  वही  देख  पाता  है  ,  जो  इन  आँखों  से  दीखता  है  ,  जिनका  सबूत  होता  है  l  जो  अत्याचारी  है  और  अहंकारी  है   वह  अपनी  ओछी  हरकतों  को  इस  तरह  अंजाम  देता  है   जिन्हें  या  तो  सहन  करने  वाला  जानता  है  या  फिर  ईश्वर  जानते  हैं  l  जब  अत्याचार  और  अन्याय  की  अति  हो  जाती है    तब  उसका  अंत  अवश्य  होता  है ,  उसके  लिए  माध्यम  चाहे  कोई  भी  हो  l
   रावण  के  पास  सोने  की  लंका  थी  ,  वेद  व  शास्त्रों  का  ज्ञाता  था  ,  शिव भक्त  था  ,    एक  लाख  पूत  और  सवा लाख  नाती --- भरा - पूरा  परिवार  था  लेकिन  उसे  अपनी  शक्ति  का अहंकार  था  l  ऋषि - मुनियों  ने  उसका  क्या  बिगाड़ा  था   जो  उसने  उनके  यज्ञ, हवन  आदि  पवित्र  कार्यों  को  अपवित्र  किया   उसके   अत्याचारों  की  जब  अति  हो  गई   तब  भगवान  राम  ने  रीछ,  वानरों  की  सेना  लेकर  उसका  अंत  किया  l     इसी  तरह  कंस  ने  अति के  अत्याचार  किये   l  जब  उसे  यह  पता चला  कि  कृष्ण  का  जन्म  हो  चुका   है  ,  तो  उसने  कितने  ही   बालकों  का  वध  करा  दिया  l  मासूम  और  निर्दोष  पर  अत्याचार  प्रकृति  कभी  बर्दाश्त  नहीं  करती  l   कंस ,  दुर्योधन  आदि  सभी  अत्याचारियों का  अंत  हुआ  l 
  जो  गरीब  है ,  निर्धन  है ,  जिसे  दो  वक्त  की  रोटी  की  चिंता  है ,  अपनी  बेटी  की  कुशलता  और  उसके  विवाह  की  चिंता  है  ,  वह  क्या  किसी  पर  अत्याचार  करेगा  l  अत्याचार , अन्याय  और  शोषण  वही  करते  हैं   जो  हर  तरह  से  समर्थ  हैं  ,  दूसरों  को  सताना ,  उनका  शोषण  करना  और  ऐसा  कर  के  आनंदित  होना  उनकी  आदत  होती  है   l  युगों  से  यही  हो  रहा  है  ,  अत्याचारी  का अंत  होता  है ,  फिर  नए  अत्याचारी  पैदा  हो  जाते  हैं   l  यह  उसका  बढ़ - चढ़ा  अहंकार  है   जो  अंत  होते  हुए  भी  अपने  पापों  को  स्वीकार नहीं  करता  ,  आने  वाली  पीढ़ियों  को  सिखाता नहीं  कि  देखो !  इतने  पाप  कर्म  किये  उसका  यह  नतीजा  निकला   l  इसका  परिणाम  यही  होता  है  आने  वाली  पीढ़ियाँ  कम  उम्र  से  ही  अपराध  में  लग  जाती  हैं    l  एक  स्वस्थ  समाज  का  निर्माण  तभी   हो  सकता  है   जब  व्यक्ति   पाप - पुण्य  का  अंतर  समझे ,  अपनी  गलती  को  स्वीकार  कर   स्वयं  को  सुधारने  का प्रयास  करे  l