Thursday 20 December 2018

आत्मविश्वासी ही सुख - शांति से जी सकता है

    भौतिक  द्रष्टिकोण  से  मनुष्य  चाहे  कितनी  भी  तरक्की  कर  ले  ,   वह  तब  तक  अधूरी  है  जब  तक  मन  के  विकारों  पर ---- ईर्ष्या - द्वेष ,  कामना , वासना  पर  उसका  नियंत्रण  नहीं  है  l  जब  ये  दुष्प्रवृत्तियां   उस  पर  हावी  हो  जाती  हैं   तो  उसकी  हालत  पशु , राक्षस  या  अर्द्ध विक्षिप्त  जैसी  हो  जाती  है   l   ये  बुराइयाँ  आदि  काल  से  हैं  और  इन्ही  के  कारण    बड़े - बड़े  युद्ध  हुए   l
  लोगों  को  बदलना ,  समझाना  बड़ा  मुश्किल  है  ,  उचित  यही  है  कि  हम  स्वयं  के  बदलें  l  सर्वप्रथम  आत्मविश्वासी  बने  ,  किसी  के  द्वारा  की  जा  रही  अपनी  निंदा ,  प्रशंसा  ,  मान - अपमान  के  प्रति  तटस्थ  रहे  l  जो  ऐसा  कर  रहा  है  ,  वह  उसकी  प्रवृति  है ,  वह  अपनी  आदत  से  लाचार  है   लेकिन  यदि  हम  आत्मविश्वासी  हैं   तो  उसका  हर  दांव  निष्फल  हो  जायेगा   l