समाज में अशान्ति , उत्पीड़न इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि लोग भाग्यवादी हैं । वैज्ञानिक प्रगति जिस तीव्र गति से होती जा रही है , मनुष्य मानसिक रूप से उतना ही आलसी होता जा रहा है । अपने जीवन , अपनी परिस्थितियों को अच्छा बनाने , परिवार में आने वाली विपरीत परिस्थितियों , दुःख , तकलीफों को दूर करने के लिए स्वयं कोई प्रयत्न करना नहीं चाहता है । चाहे अमीर हो या गरीब हर व्यक्ति सोचता है कि पंडितों को , ज्योतिषी को कुछ धन दे दो, वे पूजा - पाठ , तंत्र - मन्त्र कुछ कर देंगे तो घर में सुख की वर्षा होने लगेगी । सुख - शान्ति तो श्रेष्ठ कर्म करने , सेवा - परोपकार के कार्य करने से आती है । इसे धन खर्च करके ख़रीदा नहीं जा सकता ।
पूजा - पाठ , मन्त्र - जप सबका बहुत महत्व, लेकिन तब जब व्यक्ति स्वयं श्रद्धा और विश्वास के साथ जप करे । हमारे आचार्य , ऋषि, महर्षि ने बताया है कि गायत्री मन्त्र में वो शक्ति है जो प्रारब्ध को काट दे , दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल दे । लेकिन ऐसा तभी संभव होगा जब व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास से स्वयं नियमित जप करे । इसके साथ जरुरी है कि नि:स्वार्थ भाव से सेवा , परोपकार के कार्य करे , और अपनी दुष्प्रवृत्तियों को दूर कर सन्मार्ग पर चलने का प्रयास करे ।
यह भी पुरुषार्थ है , पुरुषार्थ के अनुरूप सफलता अवश्य मिलती है ।
पूजा - पाठ , मन्त्र - जप सबका बहुत महत्व, लेकिन तब जब व्यक्ति स्वयं श्रद्धा और विश्वास के साथ जप करे । हमारे आचार्य , ऋषि, महर्षि ने बताया है कि गायत्री मन्त्र में वो शक्ति है जो प्रारब्ध को काट दे , दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल दे । लेकिन ऐसा तभी संभव होगा जब व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास से स्वयं नियमित जप करे । इसके साथ जरुरी है कि नि:स्वार्थ भाव से सेवा , परोपकार के कार्य करे , और अपनी दुष्प्रवृत्तियों को दूर कर सन्मार्ग पर चलने का प्रयास करे ।
यह भी पुरुषार्थ है , पुरुषार्थ के अनुरूप सफलता अवश्य मिलती है ।