अति महत्वाकांक्षा और बढ़ती हुई तृष्णा ने मनुष्य की कायरता में वृद्धि की है l अपने से कमजोर को संरक्षण देने के बजाय व्यक्ति उसे लूटने में , उसे गलत दिशा दिखाने में तत्पर रहता है ताकि वे समर्थ होकर उसकी बराबरी में न आ जाये l ' स्वाभिमान ' जैसा गुण जिससे व्यक्ति और समाज गर्व से सिर उठाकर रहते हैं , मिलना बड़ा मुश्किल हो गया है l लोगों का दोहरा व्यक्तित्व है l बढ़ती हुई कामनाओं और वासना की पूर्ति के लिए लोग अपनी आत्मा को बेच देते हैं l ऐसे ही लोग समाज में अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए अत्याचार और अन्याय का सहारा लेते हैं , इस वजह से समाज में अशान्ति बढ़ती है l
Monday 31 July 2017
Monday 24 July 2017
अत्याचारी को पहचानना कठिन है
एक जमाना था -- जब डाकू होते थे , पहले से ही घोषणा कर के डाके डालने आया करते थे l उनका भी ईमान था , धर्म था , देवी के भक्त थे और समाज से बाहर बीहड़ों में रहते थे l लेकिन अब भ्रष्टाचार के युग ने सब पर लीपापोती कर दी l अब तो अपराधी शराफत का नकाब पहन कर समाज में सब के साथ हिल -मिल कर रहता है l विज्ञान के युग में लोगों के पास दूसरों का शोषण करने के बहुत हथकंडे हैं l थोड़े बहुत अपराध तो हर युग में होते रहे हैं , लेकिन तब लोग अपराधियों को , गुंडों को अपने समाज , अपनी जाति से बहिष्कृत कर देते थे l आज की स्थिति में यदि किसी तरह अपराधी पकड़ भी जाये तो सबूत , गवाह ----- आदि लम्बी प्रक्रिया से वर्षों खुला घूमता है और अपने जैसे अनेक अपराधी तैयार करता है l आज समाज की अधिकांश समस्याएं बुद्धि भ्रष्ट होने से , सद्बुद्धि की कमी से उत्पन्न हुई हैं l स्वतंत्रता से पूर्व , देश की आजादी के लिए लोगों को जागरूक करने के लिए जो देशभक्त भाषण देते , लेख लिखते , अपनी जान जोखिम में डालते उन्हें अति कठोर जेल , काले पानी की सजा , असहनीय कष्ट दिया जाता था लेकिन अब मासूम बच्चियों से बलात्कार करने वाले , छोटे बच्चों का अपहरण कर उन्हें सताने वाले , बड़े - बड़े अपराध करने वाले समाज में खुले घूमते हैं l आज जरुरत है -- ऐसे लोगों की जिनके पास सद्बुद्धि हो , विवेक हो जो जाति व धर्म के आधार पर लोगों को न बांटे l ऐसा भेद हो जिसमे एक ओर ईमानदार, सच्चे और नेक दिल वाले लोग हों और दूसरी तरफ समाज को अंधकार में ले जाने वाले अपराधी , अत्याचारी , अन्यायी हों l इस अंधकार तरफ के लोगों को कठोर सजा भी हो और सुधरने का प्रयास भी हो तभी एक सुन्दर समाज का निर्माण हो सकता है l
Saturday 22 July 2017
अशान्ति इसलिए है क्योंकि लोग अत्याचार को चुपचाप सहन करते हैं
नैतिकता और मानवीय मूल्यों का ज्ञान न होने से जो समर्थ हैं , जिनके पास धन और पद की ताकत है , वे अपनी शक्ति का सदुपयोग नहीं करते l अपने अहंकार में , शक्ति के मद में वे कमजोर पर अत्याचार करते हैं l कहते हैं अत्याचार में भी एक नशा होता है , यदि अत्याचार को सहन किया जाये तो वह धीरे - धीरे बढ़ता जाता है , संगठित हो जाता है और अपने विरुद्ध उठने वाली हर आवाज को बंद कर देता है l
समस्या इसलिए बढ़ती जाती है --- यदि छोटे बच्चे - बच्चियों पर अत्याचार हुआ , उन्हें तरह -तरह से सताया गया , तो वे बेचारे छोटे हैं , ऐसे आतताइयों का मुकाबला कैसे करेंगे ? समाज के गरीब , कमजोर लोगों का शोषण हो , विभिन्न संस्थाओं में उत्पीड़न हो तो अकेला उत्पीड़ित व्यक्ति कैसे मुकाबला करे ? सबसे बड़ी गलती समाज के उस वर्ग की है जो धन के लालच में , कुछ सुविधाओं के लिए और सबसे बढ़कर अपने चेहरे पर जो शराफत का नकाब है उसे बचाने के लिए वे अत्याचारियों का साथ देते हैं , उनकी मदद करते हैं , उनका साथ दे कर उन्हें मजबूत बनाते हैं l
आज अच्छाई को , सत्य को संगठित होने की जरुरत है l यश प्राप्त करने की कामना को त्याग कर जब सुख-शांतिपूर्ण समाज व्यवस्था की चाह रखने वाले लोग संगठित होंगे , जियो और जीने दो , हम सब एक माला के मोती हैं --- इस विचारधारा के लोग संगठित होंगे , अत्याचार के विरुद्ध तुरन्त संगठित होकर खड़े होंगे तभी समाज से नशा , जीव हत्या , अत्याचार - अन्याय समाप्त हो सकेगा l
समस्या इसलिए बढ़ती जाती है --- यदि छोटे बच्चे - बच्चियों पर अत्याचार हुआ , उन्हें तरह -तरह से सताया गया , तो वे बेचारे छोटे हैं , ऐसे आतताइयों का मुकाबला कैसे करेंगे ? समाज के गरीब , कमजोर लोगों का शोषण हो , विभिन्न संस्थाओं में उत्पीड़न हो तो अकेला उत्पीड़ित व्यक्ति कैसे मुकाबला करे ? सबसे बड़ी गलती समाज के उस वर्ग की है जो धन के लालच में , कुछ सुविधाओं के लिए और सबसे बढ़कर अपने चेहरे पर जो शराफत का नकाब है उसे बचाने के लिए वे अत्याचारियों का साथ देते हैं , उनकी मदद करते हैं , उनका साथ दे कर उन्हें मजबूत बनाते हैं l
आज अच्छाई को , सत्य को संगठित होने की जरुरत है l यश प्राप्त करने की कामना को त्याग कर जब सुख-शांतिपूर्ण समाज व्यवस्था की चाह रखने वाले लोग संगठित होंगे , जियो और जीने दो , हम सब एक माला के मोती हैं --- इस विचारधारा के लोग संगठित होंगे , अत्याचार के विरुद्ध तुरन्त संगठित होकर खड़े होंगे तभी समाज से नशा , जीव हत्या , अत्याचार - अन्याय समाप्त हो सकेगा l
Friday 21 July 2017
अशांति इसलिए है क्योंकि मनुष्य स्वयं सुधरने के बजाय दूसरों को अपने मन के अनुकूल बनाना चाहता है
संसार में अधिकांश समस्याएं इसलिए उत्पन्न होती हैं क्योंकि जिसके पास धन , पद आदि की ताकत है वह चाहता है कि दूसरे उसके अनुसार चले l अशान्ति तब होती है जब समर्थ लोग गरीबों , मजदूर, किसानों और हर तरह से कमजोर लोगों का शोषण करते हैं और चाहते हैं वो इसी तरह शोषित होता रहे , एक शब्द भी न बोले ताकि ' उनका ' वैभव - विलास चलता रहे l ऐसे लोगों की आड़ में कितने ही ' दबंग ' समाज में तैयार हो जाते हैं जिन्हें कानून का भय नहीं होता , उनमे कोई नैतिकता नहीं होती , दो पैर के पशु समान होते हैं l ऐसे में समाज की नयी पीढ़ी भी सुरक्षित नहीं है l लोगों की सोच बहुत संकुचित हो गई है l आज जरुरत है ऐसे विचारशील लोगों की जो अपनेश्रेष्ठ आचरण से लोगों को जीना सिखाएं l
Sunday 16 July 2017
जिनके मन में अशान्ति है वही इस संसार में अशान्ति फैलाते हैं
' अशान्ति भी संक्रामक रोग की तरह है , अशान्त मन - मस्तिष्क के व्यक्ति अपने क्रिया - कलापों से आसपास के लोगों को अशांत करते हैं और इस तरह अशान्ति का क्षेत्र बढ़ता जाता है l
पशु - पक्षियों को देखें तो वे अपने समुदाय में शान्ति से रहते हैं , ईर्ष्या, द्वेष , अहंकार जैसी कोई दुष्प्रवृत्ति नहीं है , मनुष्यों से उनकी शांति देखी नहीं जाती इसलिए मानव समाज बेजान पशु - पक्षी को भी चैन से जीने नहीं देता l मानव समाज में भी पुरुष और नारी है l संसार का कोई भी देश हो , कोई भी धर्म हो सभी में पुरुषों ने अपने अहंकार और शक्ति के मद में नारी पर अत्याचार किये है l
संसार में जितने बड़े - बड़े युद्ध हुए वे सब पुरुषों के अहंकार की वजह से हुए लेकिन उसके घातक परिणाम स्त्रियों और बच्चों को भोगने पड़े l पुरुष वर्ग अपने बेवजह के अहंकार को कम कर ले , अपने मन को शांत रखे तो संसार में भी शान्ति रहे l आज सबसे बड़ी जरुरत है ---- मन की शान्ति l जब शांत मन के लोग अधिक होंगे , लोगों में सद्बुद्धि होगी , विवेक जाग्रत होगा तभी शान्ति होगी l
पशु - पक्षियों को देखें तो वे अपने समुदाय में शान्ति से रहते हैं , ईर्ष्या, द्वेष , अहंकार जैसी कोई दुष्प्रवृत्ति नहीं है , मनुष्यों से उनकी शांति देखी नहीं जाती इसलिए मानव समाज बेजान पशु - पक्षी को भी चैन से जीने नहीं देता l मानव समाज में भी पुरुष और नारी है l संसार का कोई भी देश हो , कोई भी धर्म हो सभी में पुरुषों ने अपने अहंकार और शक्ति के मद में नारी पर अत्याचार किये है l
संसार में जितने बड़े - बड़े युद्ध हुए वे सब पुरुषों के अहंकार की वजह से हुए लेकिन उसके घातक परिणाम स्त्रियों और बच्चों को भोगने पड़े l पुरुष वर्ग अपने बेवजह के अहंकार को कम कर ले , अपने मन को शांत रखे तो संसार में भी शान्ति रहे l आज सबसे बड़ी जरुरत है ---- मन की शान्ति l जब शांत मन के लोग अधिक होंगे , लोगों में सद्बुद्धि होगी , विवेक जाग्रत होगा तभी शान्ति होगी l
Saturday 15 July 2017
धन का स्रोत क्या है ?
मनुष्य का पारिवारिक जीवन कैसा है ? समाज में शांति है अथवा नहीं , लोगों का चरित्र कैसा है आदि बहुत सी बातें इस बात पर निर्भर करती हैं किउनके परिवार में धन किस तरह आता है l
जिन परिवारों में बेईमानी , भ्रष्टाचार से धन आता है वहां बीमारी , चारित्रिक पतन आदि की वजह से अशांति रहती है l
यदि लोगों को बिना मेहनत के धन मिल जाये जैसे अनेक लोग , संस्थाएं दान के नाम पर , निष्काम कर्म के नाम पर निर्धन लोगों को विभिन्न सहायता देते हैं l दान - पुण्य के कार्य करना अच्छी बात है लेकिन हमारे शास्त्रों में लिखा है ---- किसी को आलसी बना देना , बहुत बड़ा पाप है l कहते हैं ' खाली मन शैतान का घर ' l जिस समाज में ऐसे आलसी लोग , जिन्हें बिना श्रम के धन , सुविधाएँ मिल जाती हैं --- तो ऐसे समाज में विकास रुक जाता है , लोग अपनी उर्जा का उपयोग नकारात्मक कार्यों में करने लगते हैं , समाज में अपराध , अराजकता बढ़ने लगती है जो सबके लिए घातक है l समाज में सुख शांति के लिए जरुरी है कि लोगों को आत्म निर्भर बनाया जाये , वो अपनी रोटी स्वयं कमा कर खा लें l भिखारियों को भी पुरुषार्थी बनाया जाये l केवल वृद्ध और हर तरह से असमर्थ को ही भोजन आदि दिया जाये l l
जिन परिवारों में बेईमानी , भ्रष्टाचार से धन आता है वहां बीमारी , चारित्रिक पतन आदि की वजह से अशांति रहती है l
यदि लोगों को बिना मेहनत के धन मिल जाये जैसे अनेक लोग , संस्थाएं दान के नाम पर , निष्काम कर्म के नाम पर निर्धन लोगों को विभिन्न सहायता देते हैं l दान - पुण्य के कार्य करना अच्छी बात है लेकिन हमारे शास्त्रों में लिखा है ---- किसी को आलसी बना देना , बहुत बड़ा पाप है l कहते हैं ' खाली मन शैतान का घर ' l जिस समाज में ऐसे आलसी लोग , जिन्हें बिना श्रम के धन , सुविधाएँ मिल जाती हैं --- तो ऐसे समाज में विकास रुक जाता है , लोग अपनी उर्जा का उपयोग नकारात्मक कार्यों में करने लगते हैं , समाज में अपराध , अराजकता बढ़ने लगती है जो सबके लिए घातक है l समाज में सुख शांति के लिए जरुरी है कि लोगों को आत्म निर्भर बनाया जाये , वो अपनी रोटी स्वयं कमा कर खा लें l भिखारियों को भी पुरुषार्थी बनाया जाये l केवल वृद्ध और हर तरह से असमर्थ को ही भोजन आदि दिया जाये l l
Monday 3 July 2017
जागरूकता का अभाव
समाज में अशांति का सबसे बड़ा कारण है ---- लोग जागरूक नहीं हैं l अपने आप परिस्थितियों से ठोकर खा कर जागरूक होने में जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा खप जाता है l सच्चाई यह है कि आज लोग दूसरों को बेवकूफ बना कर ही पैसा कमा रहें हैं , पद , शोहरत , वैभव सब तभी तक है जब तक दूसरा बेवकूफ है l धर्म , शिक्षा , राजनीति, चिकित्सा -------- कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं बचा जहाँ ईमानदारी और कर्तव्यपालन हो l लोग गरीब और कमजोर को जागरूक करना चाहते भी नहीं अन्यथा बहुतों की रोटी -रोजी छिन जाएगी l जो गरीब है , हर तरह से कमजोर है उसी को सब मिलकर लूटते हैं ---- धार्मिक कर्मकांडी उसे भाग्य अच्छा करने के लिए तरह -तरह की पूजा , कर्मकांड बताकर पैसा ऐंठते हैं , शिक्षा के क्षेत्र में उसे प्रश्न -उत्तर रटा दिए , व्यवहारिक ज्ञान नहीं हुआ , बीमार हो जाये तो चिकित्सक छोटी सी बीमारी को बड़ा बताकर , तरह - तरह की जांच करा के खूब लूटते हैं , कहीं अपनी समस्या को हल कराने के लिए जाये तो जो उसका बचा - खुचा है , वह भी समाप्त !
हमारे शास्त्रों में , धर्म ग्रन्थों में कहा भी गया है गरीब को , कमजोर को मत सताओ , गरीब की
' हाय ' बहुत बुरी होती है l समाज में एक वर्ग सुख - वैभव में रहे और दूसरे वर्ग को दिन - रात मेहनत - मजदूरी करने पर भी दो वक्त भोजन नसीब न हो तो अशान्ति तो होगी l
हमारे शास्त्रों में , धर्म ग्रन्थों में कहा भी गया है गरीब को , कमजोर को मत सताओ , गरीब की
' हाय ' बहुत बुरी होती है l समाज में एक वर्ग सुख - वैभव में रहे और दूसरे वर्ग को दिन - रात मेहनत - मजदूरी करने पर भी दो वक्त भोजन नसीब न हो तो अशान्ति तो होगी l
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