निर्धन की तो केवल एक समस्या है कि वो निर्धन है लेकिन जो धनी हैं , सर्वसुविधा संपन्न हैं उनकी हजार समस्याएं हैं । मन अशांत है , मुलायम बिस्तर पर हैं लेकिन सारी रात करवटें बदलते है , नींद नहीं आती , रात कटनी मुश्किल है । इसका कारण है कि मनुष्य का अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं है । धन-संपन्न हो जाने से इच्छाएं तो बहुत अधिक पूरी हो जाती हैं लेकिन फिर उन इच्छाओं को सुरक्षित रखने का डर मन में पैदा हो जाता है । व्यक्ति उन इच्छाओं को पकड़कर जीना चाहता है ---- कहीं बीमार न हो जायें , धन -संपदा समाप्त न हो जाये , उसे छुपाने की चिंता , प्रतिष्ठा कम न हो जाए --- इस प्रकार की विभिन्न चिंताएं आँखों की नींद उड़ा देती हैं ।
सुख -शांति का जीवन जीना है , चैन की नींद सोना है तो अपने धन का थोड़ा सा भाग निर्धनो की चिकित्सा पर खर्च कीजिये , खुशियों को बांटकर ही आप खुश हो सकते हैं ।
सेवा, परोपकार के कार्य जो नि:स्वार्थ भाव से किये जाते हैं वे मन को नियंत्रित करने की दवाई का काम करते हैं । मन को नियंत्रित करना सरल नही है, किसी के उपदेशों से, पूजा-प्रार्थना से, जबरन रोकने से मन नहीं नियंत्रण में आता । मन को नियंत्रित करने की तो केवल एक ही औषधि है----- नि:स्वार्थ सेवा-परोपकार के कार्य । इस औषधि को लेकर देखिये---- इस प्रकार के कार्य नियमित करने से हमारा मन निर्मल हो जाता है, मन की भाग-दौड़ थमने लगती है और जब मन शांत होगा तो सारी समस्याएं स्वत: ही हल होने लगती हैं ।
सुख -शांति का जीवन जीना है , चैन की नींद सोना है तो अपने धन का थोड़ा सा भाग निर्धनो की चिकित्सा पर खर्च कीजिये , खुशियों को बांटकर ही आप खुश हो सकते हैं ।
सेवा, परोपकार के कार्य जो नि:स्वार्थ भाव से किये जाते हैं वे मन को नियंत्रित करने की दवाई का काम करते हैं । मन को नियंत्रित करना सरल नही है, किसी के उपदेशों से, पूजा-प्रार्थना से, जबरन रोकने से मन नहीं नियंत्रण में आता । मन को नियंत्रित करने की तो केवल एक ही औषधि है----- नि:स्वार्थ सेवा-परोपकार के कार्य । इस औषधि को लेकर देखिये---- इस प्रकार के कार्य नियमित करने से हमारा मन निर्मल हो जाता है, मन की भाग-दौड़ थमने लगती है और जब मन शांत होगा तो सारी समस्याएं स्वत: ही हल होने लगती हैं ।