पिछले दो हजार वर्ष ऐसे बीते हैं जिनमे समर्थों ने असमर्थों को त्रास देने में , उन पर अत्याचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी l जो लोग ईश्वर को मानते हैं उनकी यह सोच होती है कि भगवान पापियों को दंड देंगे l लेकिन ईश्वर भी क्या करें ? जब सताए जाने वाले चुपचाप अत्याचार सहते हैं , कायरता और भीरुता को अपनाकर अनीति से टकराने के लिए संगठित नहीं होते l अपनी कमजोरियों के कारण अनाचारी को क्षमा कर अनीति को बढ़ावा देते हैं l मानवीय गरिमा के विरुद्ध ऐसे आचरण से प्रकृति भी रुष्ट हो जाती है l
अच्छाई और सच्चाई के मार्ग पर एक कदम भी बढ़ाओ तो दैवी शक्तियां मदद को तत्पर रहती हैं ' लेकिन एक कदम तो बढ़ाना ही होगा l
अच्छाई और सच्चाई के मार्ग पर एक कदम भी बढ़ाओ तो दैवी शक्तियां मदद को तत्पर रहती हैं ' लेकिन एक कदम तो बढ़ाना ही होगा l
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