विभिन्न धर्मों , जातियों और समाज में युगों से महिलाओं पर अत्याचार किये गए l अब महिला सशक्तिकरण के नाम पर देश - दुनिया में बहुत काम हो रहे हैं लेकिन जब तक पुरुष वर्ग की मानसिकता नहीं बदलती तब तक इन विभिन्न प्रयासों से कोई सच्चा लाभ नहीं है l देखने में तो यह स्पष्ट है कि महिलाएं उच्च व महत्वपूर्ण पदों पर हैं लेकिन सशक्त वे तभी कहलाएंगी जब वे अपने विवेक और अपने स्वयं के ज्ञान व समझ से निर्णय लेंगी l दुर्भाग्य यह है कि जो महिलाएं पुरुषों के स्वार्थ , भ्रष्टाचार आदि गलत कार्यों में सहयोग न दें उन्हें उपेक्षित व अपमानित किया जाता है l जो अपने विवेक से कार्य करे , पुरुष प्रधानता को, सामंती व्यवस्था को चुनौती दे उन्हें वृहद स्तर पर अपमानित करने व ' चिढ़ाने ' जैसा तुच्छ कार्य किया जाता है l यह सशक्तिकरण नहीं है l समस्या विकट तब और हो जाती है जब महिलाएं ही अपनी किन्ही कमजोरियों के कारण किसी महिला को उत्पीड़ित करने के लिए , उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचने के लिए पुरुषों का साथ देने लगती हैं l सामाजिक स्थिति चाहे वह महिलाओं की हो या दलितों की , उसमे सुधार तभी संभव है जब लोगों के ह्रदय में संवेदना होगी , मानवता होगी , उनके विचार परिष्कृत होंगे l
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