Thursday 2 August 2018

नैतिक पतन के दूरगामी परिणाम असहनीय होते हैं

  नारी  पर  अत्याचार  तो  सदियों  से   इस  धरती  पर  हो  रहा  है   l  इसके  लिए  कोई  देश ,  कोई  धर्म  ,  कोई  जाति  दोषी  नहीं  है  ,  यह  तो  पुरुष  वर्ग  की मानसिकता  है  ,  उसके  भीतर  का  राक्षस  है  ,  जिसके  कारण  इस  वैज्ञानिक  युग  में  रहते  हुए  भी   वह  मानसिक  स्तर  पर    आदिमकाल  में  है   l    पानी   बड़ी  तेजी  से   नीचे  गिरता  है ,  चारित्रिक  पतन  पूरे  समाज  को  अपनी  गिरफ्त  में  ले  लेता  है  l  एक  ओर  राक्षसी  प्रवृति  के  कारण  छोटी - छोटी  बच्चियां  सुरक्षित  नहीं   हैं ,  कुछ  लोग  पकड़े  जाते  हैं , और  कितने  ही  लोग  मुखौटा  लगाकर  समाज  में   शान  से  रहते  हैं ,  लेकिन  उनके  अनैतिक  और  अमानवीय कार्य   पूरे   समाज  पर  नकारात्मक  प्रभाव  डालते  हैं  l   दूसरी  और  विज्ञापन , प्रचार  और   फिल्मों  के  माध्यम  से   अश्लीलता  अपनी  चरम  सीमा  पर  है  ,  इसका  प्रभाव  मन  पर  इतना  गहरा  पड़ता  है  कि  समाज  से   मर्यादित  जीवन  की  उम्मीद  रखना  कठिन  है  l   यही  स्थिति  कठिन  है   l  हम  चाहे  कितने  ही  आधुनिक  हो  जाएँ    अपनी  संस्कृति  से  अलग  नहीं  हो  सकते ,  अपने  पारिवारिक  रिश्तों  में  पवित्रता  देखना  चाहते  हैं    लेकिन  बाढ़  तो  सबको   बहा  ले जाती  है  l  नैतिक  पतन  का  यही  परिणाम  है ---- नारी  ने  तो  अत्याचार   सहन  किया ,  लेकिन  अपने  ही  रिश्तों  को ,  अपनों  को  इस  बाढ़  में  बहते  हुए  देखना   पुरुष  की  सबसे  बड़ी  हार  है ,  उसके  अहंकार  पर  चोट  है   l  किस - किस  को   मृत्यु  के  मुँह  में   डालोगे ,  घुट - घुट  कर  जीना  पड़ेगा   l 
  अपनी  'पुरुष प्रधानता '  और  अपने  अहंकार  को   गहरे  घाव  में  बदलने  और  रिसने  से  बचाना  है   तो  इस आदिम  युग  से  बाहर  निकलकर    इनसान  बनना  होगा  l  छोटी - छोटी बच्चियां  आत्मरक्षा  के  उपाय  नहीं  सीख  सकतीं  

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