नारी पर अत्याचार तो सदियों से इस धरती पर हो रहा है l इसके लिए कोई देश , कोई धर्म , कोई जाति दोषी नहीं है , यह तो पुरुष वर्ग की मानसिकता है , उसके भीतर का राक्षस है , जिसके कारण इस वैज्ञानिक युग में रहते हुए भी वह मानसिक स्तर पर आदिमकाल में है l पानी बड़ी तेजी से नीचे गिरता है , चारित्रिक पतन पूरे समाज को अपनी गिरफ्त में ले लेता है l एक ओर राक्षसी प्रवृति के कारण छोटी - छोटी बच्चियां सुरक्षित नहीं हैं , कुछ लोग पकड़े जाते हैं , और कितने ही लोग मुखौटा लगाकर समाज में शान से रहते हैं , लेकिन उनके अनैतिक और अमानवीय कार्य पूरे समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं l दूसरी और विज्ञापन , प्रचार और फिल्मों के माध्यम से अश्लीलता अपनी चरम सीमा पर है , इसका प्रभाव मन पर इतना गहरा पड़ता है कि समाज से मर्यादित जीवन की उम्मीद रखना कठिन है l यही स्थिति कठिन है l हम चाहे कितने ही आधुनिक हो जाएँ अपनी संस्कृति से अलग नहीं हो सकते , अपने पारिवारिक रिश्तों में पवित्रता देखना चाहते हैं लेकिन बाढ़ तो सबको बहा ले जाती है l नैतिक पतन का यही परिणाम है ---- नारी ने तो अत्याचार सहन किया , लेकिन अपने ही रिश्तों को , अपनों को इस बाढ़ में बहते हुए देखना पुरुष की सबसे बड़ी हार है , उसके अहंकार पर चोट है l किस - किस को मृत्यु के मुँह में डालोगे , घुट - घुट कर जीना पड़ेगा l
अपनी 'पुरुष प्रधानता ' और अपने अहंकार को गहरे घाव में बदलने और रिसने से बचाना है तो इस आदिम युग से बाहर निकलकर इनसान बनना होगा l छोटी - छोटी बच्चियां आत्मरक्षा के उपाय नहीं सीख सकतीं
अपनी 'पुरुष प्रधानता ' और अपने अहंकार को गहरे घाव में बदलने और रिसने से बचाना है तो इस आदिम युग से बाहर निकलकर इनसान बनना होगा l छोटी - छोटी बच्चियां आत्मरक्षा के उपाय नहीं सीख सकतीं
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