समाज में जात - पांत , ऊँच - नीच और अमीर - गरीब के बीच गहरी खाई होने से अशांति उत्पन्न होती है l कितने भी नियम क्यों न बन जाएँ , जब तक व्यक्ति की मानसिकता में परिवर्तन नहीं होगा , स्थिति में सुधार संभव नहीं है l इतनी तरह की विषमता होने के अतिरिक्त अब समाज में एक नई तरह की विषमता उत्पन्न हो गई है , उसका आधार है ---- स्वार्थ l जो समर्थ हैं , शक्ति संपन्न हैं वह अपनी शक्ति और धन को और बढ़ाना चाहता है , जिन लोगों से उसके इस स्वार्थ की पूर्ति होती है उनका एक वर्ग बन जाता है l इन लोगों का एक ही उद्देश्य है -- अपने स्वार्थ व अहंकार की पूर्ति करना l जो इनके इस उद्देश्य की पूर्ति न करे वह दूसरे वर्ग का होगा l आज के समय में इन्ही दोनों वर्गों की खींचातानी चलती है l
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