यदि हम शान्त रहना चाहते हैं तो हमें उन तत्वों का सामना करना आना चाहिए जो हमें अशांत करते हैं । संसार में जितनी भी समस्याएं हैं उनके मूल में---- लालच, तृष्णा, अहंकार और ईर्ष्या--- है
व्यक्ति अपनी जीविका के लिए विभिन्न ऑफिस, कंपनियों, कार्यालय में काम करते हैं । इन स्थानों पर विभिन्न जाति, धर्म, विभिन्न जीवन-स्तर, भिन्न-भिन्न रंग- रूप के लोग एक साथ दिन-भर काम करते हैं , जहां उनकी दूषित प्रवृतियां--- लालच, ईर्ष्या, अहंकार परस्पर टकराते है । इन कार्य-स्थल पर कुछ लोग तरह-तरह के हथकंडों से अपना वर्चस्व कायम कर लेते है और चाहते हैं कि सब लोग उनकी हुकूमत में चलें । जो इस स्थिति को स्वीकार नहीं करता उसे विभिन्न तरीकों से परेशान करते है , इसका परिणाम यह होता है कि अहंकार का पोषण न होने के कारण वे स्वयं अशान्त रहते हैं और नये-नये षडयंत्र रचकर दूसरों को अशांत करते हैं ।
विभिन्न कार्य-स्थलों पर होने वाली यह अशांति--- समाज में एक व्यापक, समग्र अशान्ति को जन्म देती है । इस अशांति के लिये किसी जाति, धर्म या सम्प्रदाय को दोष नहीं दिया जा सकता । ये तो वे लोग हैं जो स्वयं को श्रेष्ठ समझते हैं, जिनकी एक ही जाति है---- ' पैसा ' । एक ही धर्म है--- ' ' अपने अहंकार का पोषण ' ।
दूसरों को उत्पीड़ित करना, अपना वर्चस्व कायम करना भी एक नशा है, ऐसी दूषित प्रवृतियों वाले ये व्यक्ति अपनी मनमानी के लिए बड़े अपराधियों से जुड़ जाते हैं---------- इसी से समाज मे इतनी अशांति रहती है ।
आज के समाज की जो समस्याएं हैं वे बुद्धि के विपरीत होने से उत्पन्न हुई हैं, इन्हें किसी तीर-तलवार से, लड़ाई-झगड़ा करके हल नहीं किया जा सकता । इन्हें तो विवेक से, प्रज्ञा से, अंत:ज्ञान से हल किया जा सकता है । आज के अशांत वातावरण में रहते हुए भी हम नियमित निष्काम कर्म करें, सत्कर्म के साथ गायत्री मन्त्र का जप करें और अपना कर्तव्य पालन करें, ऐसा करते रहने से ईश्वर की कृपा से विवेक जाग्रत हों जाता है, किन परिस्थितियों में क्या निर्णय लेना है यह समझ आ जाती है और फिर बाहरी परिस्थितियां हमें परेशान नहीं कर पातीं, हम अपने शान्ति के साम्राज्य में रहते हैं ।
व्यक्ति अपनी जीविका के लिए विभिन्न ऑफिस, कंपनियों, कार्यालय में काम करते हैं । इन स्थानों पर विभिन्न जाति, धर्म, विभिन्न जीवन-स्तर, भिन्न-भिन्न रंग- रूप के लोग एक साथ दिन-भर काम करते हैं , जहां उनकी दूषित प्रवृतियां--- लालच, ईर्ष्या, अहंकार परस्पर टकराते है । इन कार्य-स्थल पर कुछ लोग तरह-तरह के हथकंडों से अपना वर्चस्व कायम कर लेते है और चाहते हैं कि सब लोग उनकी हुकूमत में चलें । जो इस स्थिति को स्वीकार नहीं करता उसे विभिन्न तरीकों से परेशान करते है , इसका परिणाम यह होता है कि अहंकार का पोषण न होने के कारण वे स्वयं अशान्त रहते हैं और नये-नये षडयंत्र रचकर दूसरों को अशांत करते हैं ।
विभिन्न कार्य-स्थलों पर होने वाली यह अशांति--- समाज में एक व्यापक, समग्र अशान्ति को जन्म देती है । इस अशांति के लिये किसी जाति, धर्म या सम्प्रदाय को दोष नहीं दिया जा सकता । ये तो वे लोग हैं जो स्वयं को श्रेष्ठ समझते हैं, जिनकी एक ही जाति है---- ' पैसा ' । एक ही धर्म है--- ' ' अपने अहंकार का पोषण ' ।
दूसरों को उत्पीड़ित करना, अपना वर्चस्व कायम करना भी एक नशा है, ऐसी दूषित प्रवृतियों वाले ये व्यक्ति अपनी मनमानी के लिए बड़े अपराधियों से जुड़ जाते हैं---------- इसी से समाज मे इतनी अशांति रहती है ।
आज के समाज की जो समस्याएं हैं वे बुद्धि के विपरीत होने से उत्पन्न हुई हैं, इन्हें किसी तीर-तलवार से, लड़ाई-झगड़ा करके हल नहीं किया जा सकता । इन्हें तो विवेक से, प्रज्ञा से, अंत:ज्ञान से हल किया जा सकता है । आज के अशांत वातावरण में रहते हुए भी हम नियमित निष्काम कर्म करें, सत्कर्म के साथ गायत्री मन्त्र का जप करें और अपना कर्तव्य पालन करें, ऐसा करते रहने से ईश्वर की कृपा से विवेक जाग्रत हों जाता है, किन परिस्थितियों में क्या निर्णय लेना है यह समझ आ जाती है और फिर बाहरी परिस्थितियां हमें परेशान नहीं कर पातीं, हम अपने शान्ति के साम्राज्य में रहते हैं ।
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