जब हम परिवार में, मित्रों में , अपनों से बहुत उम्मीद रखते हैं और जब वे आशाएँ, उम्मीदें पूरी नहीं हो पातीं तो हमें बहुत दुःख होता है, मन अशांत हो जाता है l इसका एक दूसरा पहलू भी है----
प्रत्येक व्यक्ति की सामर्थ्य सीमित होती है, और प्रत्येक व्यक्ति की अपनी जिंदगी, अपना सोचने का तरीका होता है l आज के समय में मनुष्य बहुत स्वार्थी हो गया है, संवेदनाएं सूख गईं हैं, हमारे लिए उचित यही है कि जो कुछ हमें मिला, उसमे खुश रहें, उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद दें l जो नहीं है, उसका कोंई दुःख नहीं, उसके लिए किसी से कोई उम्मीद नही l
शान्ति से जीने के लिए हमें अपने मन में एक बात बैठा लेनी चाहिए कि---- देने वाला तो ईश्वर है, वे हमारा भूत, भविष्य, वर्तमान सब कुछ जानते हैं इसलिए जो हमारे लिए उचित है वे हमें अवश्य देंगे l बस ! हमारी इच्छा और ईश्वर की कृपा के बीच कुछ बाधाएं आ जाती हैं l
हम जितने अधिक सत्कर्म करेंगे, अपने कर्तव्य का पालन करेंगे और सन्मार्ग पर चलेंगे उतनी ही तेजी से वे बाधाएं दूर होंगी और ईश्वरीय कृपा के आनंद का हम अनुभव करेंगे l
प्रत्येक व्यक्ति की सामर्थ्य सीमित होती है, और प्रत्येक व्यक्ति की अपनी जिंदगी, अपना सोचने का तरीका होता है l आज के समय में मनुष्य बहुत स्वार्थी हो गया है, संवेदनाएं सूख गईं हैं, हमारे लिए उचित यही है कि जो कुछ हमें मिला, उसमे खुश रहें, उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद दें l जो नहीं है, उसका कोंई दुःख नहीं, उसके लिए किसी से कोई उम्मीद नही l
शान्ति से जीने के लिए हमें अपने मन में एक बात बैठा लेनी चाहिए कि---- देने वाला तो ईश्वर है, वे हमारा भूत, भविष्य, वर्तमान सब कुछ जानते हैं इसलिए जो हमारे लिए उचित है वे हमें अवश्य देंगे l बस ! हमारी इच्छा और ईश्वर की कृपा के बीच कुछ बाधाएं आ जाती हैं l
हम जितने अधिक सत्कर्म करेंगे, अपने कर्तव्य का पालन करेंगे और सन्मार्ग पर चलेंगे उतनी ही तेजी से वे बाधाएं दूर होंगी और ईश्वरीय कृपा के आनंद का हम अनुभव करेंगे l
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