प्रशंसा की चाहत सबको होती है लेकिन यह चाहत भी एक बीमारी तब बन जाती है जब व्यक्ति का अहंकार इस सीमा तक बढ़ जाता है कि वह सोचने लगता है कि केवल उसी की तारीफ हो , अन्य किसी की नहीं l ऐसे व्यक्ति को यदि यह पता लग जाये कि अमुक व्यक्ति की कई लोग तारीफ करते हैं तब वह अपनी अधिकांश ऊर्जा उन लोगों के मुँह बंद कराने में लगा देता है जिससे अमुक व्यक्ति की कोई प्रशंसा न करे और इसके साथ ही उसका यह भी प्रयास होता है कि ऐसे दोष - दुर्गुण जो अमुक व्यक्ति में हैं ही नहीं , लोगों को बताकर उसकी इमेज खराब की जाये l इसलिए हमें निन्दा - प्रशंसा , मान - सम्मान के प्रति तटस्थ रहना चाहिए और केवल एक बात याद रखनी चाहिए कि ईश्वर का प्रत्येक विधान मंगलमय है l
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