पारिवारिक जीवन हो या सामाजिक जीवन जब तक लोगों के ह्रदय में संवेदना और परस्पर सहयोग का भाव नहीं होगा तब तक सुख - शान्ति संभव नहीं है l परिवार इसीलिए टूटते हैं कि कहीं पुरुष निर्दयी और स्वार्थी है , तो कहीं नारी कर्कश स्वभाव की है l संवेदना और त्याग का अभाव है l कहीं तलाक दे कर एक - दूसरे को और बच्चों को उत्पीड़ित करते हैं तो कहीं साथ रहकर निरंतर क्रोध , लड़ाई - झगड़ा, उपेक्षा , कलह आदि से पारिवारिक जीवन को जहरीला बना देते हैं l परिवार से मिलकर ही समाज बना है l हम सब एक माला के मोती हैं l इस धरती पर सब को जीने का हक है और हम सब --- मनुष्य , पेड़ - पौधे , जीव - जंतु , जल , पहाड़ ----- सब परस्पर निर्भर हैं l जब हम एक - दूसरे के महत्व को समझेंगे तभी सुख - शान्ति संभव है l
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