हम जो कुछ सोचते हैं , जो कार्य करते हैं उसकी गवाह प्रकृति है l जैसे हम अपने खान - पान , पहनावा , अपने तौर - तरीके से परिवार में , समाज में यह स्पष्ट करते हैं कि हमें क्या पसंद है , हम अपने आपको कैसा दिखाना चाहते हैं l उसी प्रकार हम अपने विचारों से , अपने कार्यों से , अपनी गतिविधियों से प्रकृति को यह बताते हैं कि हमें क्या पसंद है l फिर हमें जो पसंद है वही प्रकृति हमें देने लगती है l
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है उसके कार्यों का प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है l जब मनुष्य प्रकृति पर अत्याचार करता है , तब प्रकृति को यह समझ आता है कि आपको मिटाना , नष्ट करना पसंद है तब प्रकृति आपको आपकी पसंद ' मिटाना '---- बाढ़ , भूकंप , सुनामी , तूफ़ान आदि प्राकृतिक आपदाएं देती है l जिसमे असंख्य लोग मिट जाते हैं l
इसी तरह मानव समाज है जिसमे बच्चे , बच्चियां , युवा स्त्री - पुरुष और वृद्ध स्त्री - पुरुष हैं l अब यदि कोई जाति, समुदाय , धर्म --- मानव - समाज में जो अपने से कमजोर हैं , जिनकी उन्हें हिफाजत करनी चाहिए , अहंकार के वशीभूत होकर उन्ही पर अत्याचार करता है , अन्याय करता है तो प्रकृति में सन्देश जाता है कि आपको अत्याचार और अन्याय बहुत पसंद है l इस सन्देश के परिणामस्वरूप अत्याचारी और अन्यायी लोगों पर कहीं न कहीं से अत्याचार और अन्याय शुरू हो जाता है l
हमें अपनी पसंद का प्रकृति से रिटर्न कब मिलेगा , इसका लेखा - जोखा सर्वशक्तिमान ईश्वर के पास है l यदि इस सत्य को हम समझ सकें तो प्रकृति हमें सुधरने का , प्रायश्चित करने का मौका भी देती है l
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है उसके कार्यों का प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है l जब मनुष्य प्रकृति पर अत्याचार करता है , तब प्रकृति को यह समझ आता है कि आपको मिटाना , नष्ट करना पसंद है तब प्रकृति आपको आपकी पसंद ' मिटाना '---- बाढ़ , भूकंप , सुनामी , तूफ़ान आदि प्राकृतिक आपदाएं देती है l जिसमे असंख्य लोग मिट जाते हैं l
इसी तरह मानव समाज है जिसमे बच्चे , बच्चियां , युवा स्त्री - पुरुष और वृद्ध स्त्री - पुरुष हैं l अब यदि कोई जाति, समुदाय , धर्म --- मानव - समाज में जो अपने से कमजोर हैं , जिनकी उन्हें हिफाजत करनी चाहिए , अहंकार के वशीभूत होकर उन्ही पर अत्याचार करता है , अन्याय करता है तो प्रकृति में सन्देश जाता है कि आपको अत्याचार और अन्याय बहुत पसंद है l इस सन्देश के परिणामस्वरूप अत्याचारी और अन्यायी लोगों पर कहीं न कहीं से अत्याचार और अन्याय शुरू हो जाता है l
हमें अपनी पसंद का प्रकृति से रिटर्न कब मिलेगा , इसका लेखा - जोखा सर्वशक्तिमान ईश्वर के पास है l यदि इस सत्य को हम समझ सकें तो प्रकृति हमें सुधरने का , प्रायश्चित करने का मौका भी देती है l
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