संसार में अच्छे लोग हैं , जो सत्कर्म करते हैं , सन्मार्ग पर चलते हैं लेकिन इसके साथ ही अनीति पर चलने वाले , अन्यायी , अत्याचारी भी बहुत हैं जिनका प्रतिदिन हमें सामना करना पड़ता है ,
दुष्टता , असुरता आज से नहीं है , युगों से इस धरती पर दुष्प्रवृत्तियों के लोग रहते आ रहें हैं ।
चाहे भगवान् राम का युग हो , ईसा मसीह हों , गुरु नानक हों या कबीर हों , सबके समय में दुष्ट लोग थे जिन्होंने सच्चाई पर चलने वालों पर अत्याचार किये ।
व्यक्ति अपना दुष्टता का स्वभाव नहीं बदलता ----- शराबी चाहे छत से गिर जाये , उसकी सब हड्डियाँ टूट जाएँ लेकिन वो शराब पीना नहीं छोड़ता , भिखारी को कहें कि भगवन नाम की माला जपो , कुछ श्रम करो , उसके लिए रूपये देंगे , तो वह यह काम नहीं करेगा , उसे तो भीख माँगना ही अच्छा लगेगा । इसी तरह कुछ लोगों का भयंकर बीमारी से शरीर का कोई अंग काटना पड़ता है , वे ठीक भी हो जाते हैं लेकिन इतनी बड़ी ठोकर खाने के बाद भी वे बदलते नहीं । थोड़ा ठीक होते ही उनकी दुष्टता , ईर्ष्या, द्वेष फिर प्रबल हो जाता है । हजारों - लाखों में कोई एक होता है जो ठोकर खाकर , प्रकृति का दंड भोगकर सुधर जाये , नेक रास्ते पर चलने लगे ।
व्यक्ति अपने संस्कार , अपने स्वभाव के प्रति हठी होता है । विचारों में परिवर्तन होने पर ही व्यक्ति में परिवर्तन , रूपांतरण संभव है ।
असुर प्रवृतियों और काम , क्रोध , लोभ , ईर्ष्या - द्वेष जैसी दुष्प्रवृतियों से ग्रस्त लोगों के बीच हमें हर पल रहना पड़ता है , इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश देकर हमें जीना सिखाया , इस संसार में जहाँ चारों ओर छल -कपट है , तरह -तरह के आकर्षण है , कैसे हम शांतिपूर्वक रहें , संसार के सारे काम भी करें और परेशान भी न हों । जीवन अनमोल है , इसे रो - पीट कर , शिकायते कर नहीं गंवाएं । गीता का ज्ञान हमें जीवन जीने की कला सिखाता है ।
दुष्टता , असुरता आज से नहीं है , युगों से इस धरती पर दुष्प्रवृत्तियों के लोग रहते आ रहें हैं ।
चाहे भगवान् राम का युग हो , ईसा मसीह हों , गुरु नानक हों या कबीर हों , सबके समय में दुष्ट लोग थे जिन्होंने सच्चाई पर चलने वालों पर अत्याचार किये ।
व्यक्ति अपना दुष्टता का स्वभाव नहीं बदलता ----- शराबी चाहे छत से गिर जाये , उसकी सब हड्डियाँ टूट जाएँ लेकिन वो शराब पीना नहीं छोड़ता , भिखारी को कहें कि भगवन नाम की माला जपो , कुछ श्रम करो , उसके लिए रूपये देंगे , तो वह यह काम नहीं करेगा , उसे तो भीख माँगना ही अच्छा लगेगा । इसी तरह कुछ लोगों का भयंकर बीमारी से शरीर का कोई अंग काटना पड़ता है , वे ठीक भी हो जाते हैं लेकिन इतनी बड़ी ठोकर खाने के बाद भी वे बदलते नहीं । थोड़ा ठीक होते ही उनकी दुष्टता , ईर्ष्या, द्वेष फिर प्रबल हो जाता है । हजारों - लाखों में कोई एक होता है जो ठोकर खाकर , प्रकृति का दंड भोगकर सुधर जाये , नेक रास्ते पर चलने लगे ।
व्यक्ति अपने संस्कार , अपने स्वभाव के प्रति हठी होता है । विचारों में परिवर्तन होने पर ही व्यक्ति में परिवर्तन , रूपांतरण संभव है ।
असुर प्रवृतियों और काम , क्रोध , लोभ , ईर्ष्या - द्वेष जैसी दुष्प्रवृतियों से ग्रस्त लोगों के बीच हमें हर पल रहना पड़ता है , इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश देकर हमें जीना सिखाया , इस संसार में जहाँ चारों ओर छल -कपट है , तरह -तरह के आकर्षण है , कैसे हम शांतिपूर्वक रहें , संसार के सारे काम भी करें और परेशान भी न हों । जीवन अनमोल है , इसे रो - पीट कर , शिकायते कर नहीं गंवाएं । गीता का ज्ञान हमें जीवन जीने की कला सिखाता है ।
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