संसार  के  बाजार  में  कुछ  चाहिए  तो   मुद्रा  में  उसकी  कीमत  चुकानी  पड़ती  है    लेकिन  ईश्वर  से  प्रकृति  से  कुछ  चाहिए  तो    धार्मिक  स्थलों  पर  रूपये -पैसे  चढ़ाने  से ,  फूलमाला ,  फल -मिठाई  आदि    का  भोग  लगाने  से   कुछ  नहीं  मिलता  ,  ये  सब  कर्मकांड   तभी  सार्थक  हैं    जब  इनके  साथ  सत्कर्म  किये
जाएँ । अध्यात्म में सफलता हो या संसार में सफलता दोनों के लिए ही सत्कर्म अनिवार्य हैं ।
और ये सत्कर्म निष्काम भाव से किये जाएँ , इनमे कोई दिखावा न हो ।
निष्काम कर्म करने से ही ईश्वर की कृपा मिलती है , हमारे मन के विकार दूर होते हैं ---- इससे दोहरा लाभ है --- एक तो मन निर्मल हो जाने से ध्यान करना आसान हो जाता है और दूसरी ओर संसार में सफलता मिलती है । सत्कर्म ढाल बनकर हमारी रक्षा करते हैं ।
जाएँ । अध्यात्म में सफलता हो या संसार में सफलता दोनों के लिए ही सत्कर्म अनिवार्य हैं ।
और ये सत्कर्म निष्काम भाव से किये जाएँ , इनमे कोई दिखावा न हो ।
निष्काम कर्म करने से ही ईश्वर की कृपा मिलती है , हमारे मन के विकार दूर होते हैं ---- इससे दोहरा लाभ है --- एक तो मन निर्मल हो जाने से ध्यान करना आसान हो जाता है और दूसरी ओर संसार में सफलता मिलती है । सत्कर्म ढाल बनकर हमारी रक्षा करते हैं ।
 
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