धर्म चाहे कोई भी हो यदि व्यक्ति केवल कर्मकांड करता है तो यह ईश्वर विश्वास नहीं है । कर्मकांड स्वयं करना या अपने धर्म के पंडित - पुजारी -------- आदि से कराना सरल पड़ता है इसलिए लोग अब इन्ही कर्मकाण्डों में उलझ गये हैं । देखने में लगता है कि धार्मिकता बहुत बढ़ गई है किन्तु वास्तव में सद्गुणों को महत्व न देने के कारण अशांति और अपराध बढ़ गये हैं ।
ईश्वर --- वह अज्ञात शक्ति उसे चाहे किसी भी नाम से पुकारो --- वह सर्वशक्तिमान है । विभिन्न कर्मकांड ने अब व्यवसाय का रूप ले लिया है इसलिए अब उसका सुफल नहीं मिलता है ।
ईश्वर विश्वास का , ईश्वर की कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल तरीका है ----- सत्कर्म करना । हम चाहे किसी भी धर्म के हों , यदि नि:स्वार्थ भाव से सत्कर्म करते हैं , सेवा - परोपकार के कार्य करते हैं तो यही सच्ची पूजा है । यही श्रेष्ठ कर्म ढाल बनकर हमारी रक्षा करते हैं ।
कोई व्यक्ति आस्तिक , ईश्वर विश्वासी तभी कहलायेगा जब वह सत्कर्म करेगा , अपनी बुरी आदतों को छोड़कर सद्गुणों को अपनाएगा , सन्मार्ग पर चलेगा ।
ईश्वर --- वह अज्ञात शक्ति उसे चाहे किसी भी नाम से पुकारो --- वह सर्वशक्तिमान है । विभिन्न कर्मकांड ने अब व्यवसाय का रूप ले लिया है इसलिए अब उसका सुफल नहीं मिलता है ।
ईश्वर विश्वास का , ईश्वर की कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल तरीका है ----- सत्कर्म करना । हम चाहे किसी भी धर्म के हों , यदि नि:स्वार्थ भाव से सत्कर्म करते हैं , सेवा - परोपकार के कार्य करते हैं तो यही सच्ची पूजा है । यही श्रेष्ठ कर्म ढाल बनकर हमारी रक्षा करते हैं ।
कोई व्यक्ति आस्तिक , ईश्वर विश्वासी तभी कहलायेगा जब वह सत्कर्म करेगा , अपनी बुरी आदतों को छोड़कर सद्गुणों को अपनाएगा , सन्मार्ग पर चलेगा ।
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