हमारे आन्तरिक शत्रु ---- काम , क्रोध , लोभ --- हमारे बाहरी शत्रुओं से अधिक खतरनाक हैं क्योंकि ये हमेशा हमारे साथ रहते हैं । बाहरी शत्रु तो मौका मिलने पर आक्रमण करते हैं किन्तु भीतरी शत्रु घुन की तरह व्यक्तित्व को खोखला कर देते हैं । अपने मनोविकार और स्वभाव के दोषों से ही व्यक्ति परेशान रहता है । हम संसार को नहीं बदल सकते लेकिन यदि हम लालच छोड़ दें , किसी से कोई उम्मीद न करें , अपनी कामनाओं को नियंत्रित और मर्यादित करें तो हर पल अशान्ति देने वाले इस संसार में हम शान्ति से जी सकते हैं ।
यह प्रयास हमें ही करना है । जोर - जबरदस्ती से किसी को सद्गुणी नहीं बनाया जा सकता । यह व्यक्ति के विवेक पर निर्भर है कि वह सद्गुणों को अपनाकर सुख - शान्ति का जीवन जीना चाहता है या दुर्गुणों में रहकर स्वयं का सर्वनाश करना चाहता है ।
अपने दुर्गुणों को नष्ट करना सबसे कठिन काम है लेकिन यदि मन में सन्मार्ग पर चलने की इच्छा है तो निष्काम कर्म करने से ही मनोविकारों का नाश होता है और मन निर्मल होता है l
यह प्रयास हमें ही करना है । जोर - जबरदस्ती से किसी को सद्गुणी नहीं बनाया जा सकता । यह व्यक्ति के विवेक पर निर्भर है कि वह सद्गुणों को अपनाकर सुख - शान्ति का जीवन जीना चाहता है या दुर्गुणों में रहकर स्वयं का सर्वनाश करना चाहता है ।
अपने दुर्गुणों को नष्ट करना सबसे कठिन काम है लेकिन यदि मन में सन्मार्ग पर चलने की इच्छा है तो निष्काम कर्म करने से ही मनोविकारों का नाश होता है और मन निर्मल होता है l
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