मानव जीवन की जितनी भी समस्याएं हैं उन सबके मूल में एक ही कारण है ----- संवेदना न होना आज मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि वह अपने सामने हत्या , लूट, जघन्य अपराध होते देखता है , लेकिन अनदेखा कर देता है , लोग खड़े - खड़े देखते हैं लेकिन पीड़ित को बचाने का कोई प्रयास नहीं करता है । अनेक लोग ऐसे अपराधियों से गुपचुप सांठ-गाँठ कर लेते हैं ताकि उनके सुख - भोग में कोई कमी न आये ।
लोगों के संवेदनहीन हो जाने के कारण ही समाज में अपराधिक प्रवृतियां बढीं हैं । युद्धों में तो एक बार में सब नष्ट हो जाता है लेकिन समाज में होने वाले अपराध , हत्या , महिलाओं के प्रति और , बच्चों के प्रति अपराध से धीरे - धीरे समाज खोखला होता जाता है । ऐसी घटनाओं से सामान्य लोगों की मानसिकता भी प्रदूषित हो जाती है ।
मनुष्य केवल मनुष्य के प्रति ही नहीं अपितु प्रकृति व पशु - पक्षियों के प्रति भी संवेदनहीन हो गया है , इसीलिए इतने प्राकृतिक प्रकोप हैं । वैज्ञानिक प्रगति होना , भौतिक सुख - सुविधाएँ बढ़ जाना ही विकास नहीं है , वास्तविक प्रगति तो तब है जब मनुष्य , इनसान बने ,' जियो और जीने दो ' के सिद्धांत पर चले ।
लोगों के संवेदनहीन हो जाने के कारण ही समाज में अपराधिक प्रवृतियां बढीं हैं । युद्धों में तो एक बार में सब नष्ट हो जाता है लेकिन समाज में होने वाले अपराध , हत्या , महिलाओं के प्रति और , बच्चों के प्रति अपराध से धीरे - धीरे समाज खोखला होता जाता है । ऐसी घटनाओं से सामान्य लोगों की मानसिकता भी प्रदूषित हो जाती है ।
मनुष्य केवल मनुष्य के प्रति ही नहीं अपितु प्रकृति व पशु - पक्षियों के प्रति भी संवेदनहीन हो गया है , इसीलिए इतने प्राकृतिक प्रकोप हैं । वैज्ञानिक प्रगति होना , भौतिक सुख - सुविधाएँ बढ़ जाना ही विकास नहीं है , वास्तविक प्रगति तो तब है जब मनुष्य , इनसान बने ,' जियो और जीने दो ' के सिद्धांत पर चले ।
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