आज संसार में इतनी अशान्ति का कारण है कि लोगों के ह्रदय में संवेदना का स्रोत सूख गया है लोग परोपकार करने के बजाय एक - दूसरे को परेशान करते हैं । यदि गहराई से देखें तो इसका कारण है कि आज सद्गुण सिखाने वाली नैतिक शिक्षा का अभाव है । लोगों में प्रतिभा तो बहुत है , ऊँची - ऊँची डिग्री है , ज्ञान का भंडार है लेकिन सद्गुणों के अभाव में व्यक्ति अपनी प्रतिभा का दुरूपयोग करने लगता है ।
वैज्ञानिकों में कितनी प्रतिभा है , कितना ज्ञान है लेकिन संवेदना न होने के कारण वे अपनी प्रतिभा का उपयोग भयंकर बम बनाने , मारक अस्त्र , तोपें आदि बनाने में करते हैं जिससे यह सुन्दर संसार खंडहर हो जाये , कुछ लोग ही जैसे तैसे बच पायें जो लाशों पर राज करें । वे ऐसा कोई आविष्कार नहीं करते कि मनुष्य में सद्बुद्धि जाग्रत हो जाये , वो मिलजुल कर रहे युद्ध की जरुरत ही न हो ।
हमारे महाकाव्य हमें शिक्षा देते हैं ---'- महाभारत ' के अध्ययन से ज्ञात होता है कि पांडवों ने अस्त्र - शस्त्र की शिक्षा तो गुरु द्रोणाचार्य से ली , लेकिन उन्हें पग - पग पर नैतिक शिक्षा उनकी महान तपस्वी माता कुंती ने दी । इसलिए इतने कष्ट सहने के बावजूद भी वे अपने पथ से विचलित नहीं हुए , सन्मार्ग पर चले और अन्याय के विरुद्ध युद्ध में विजयी हुए ।
दूसरी ओर कौरव थे । अस्त्र - शस्त्र की शिक्षा तो उन्हें भी गुरु द्रोणाचार्य से मिली लेकिन उन्हें नैतिक शिक्षा नहीं मिली । दुर्योधन के पिता धृतराष्ट्र अंधे थे , वो पुत्र मोह में भी अंधे थे । दुर्योधन की गलतियों पर उसे रोकते नहीं थे , इससे वह बहुत अहंकारी और अत्याचारी हो गया था । दुर्योधन की माता गांधारी ने अपनी आँखों पर पट्टी बांध ली थी , वे भी उसे पांडवों के विरुद्ध षड्यंत्र करने , अन्याय , अत्याचार करने से न रोक सकीं । इसी का परिणाम हुआ कि युद्ध में दुर्योधन बन्धु- बान्धव समेत मारा गया । धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने वाले पांडव विजयी हुए ।
वैज्ञानिकों में कितनी प्रतिभा है , कितना ज्ञान है लेकिन संवेदना न होने के कारण वे अपनी प्रतिभा का उपयोग भयंकर बम बनाने , मारक अस्त्र , तोपें आदि बनाने में करते हैं जिससे यह सुन्दर संसार खंडहर हो जाये , कुछ लोग ही जैसे तैसे बच पायें जो लाशों पर राज करें । वे ऐसा कोई आविष्कार नहीं करते कि मनुष्य में सद्बुद्धि जाग्रत हो जाये , वो मिलजुल कर रहे युद्ध की जरुरत ही न हो ।
हमारे महाकाव्य हमें शिक्षा देते हैं ---'- महाभारत ' के अध्ययन से ज्ञात होता है कि पांडवों ने अस्त्र - शस्त्र की शिक्षा तो गुरु द्रोणाचार्य से ली , लेकिन उन्हें पग - पग पर नैतिक शिक्षा उनकी महान तपस्वी माता कुंती ने दी । इसलिए इतने कष्ट सहने के बावजूद भी वे अपने पथ से विचलित नहीं हुए , सन्मार्ग पर चले और अन्याय के विरुद्ध युद्ध में विजयी हुए ।
दूसरी ओर कौरव थे । अस्त्र - शस्त्र की शिक्षा तो उन्हें भी गुरु द्रोणाचार्य से मिली लेकिन उन्हें नैतिक शिक्षा नहीं मिली । दुर्योधन के पिता धृतराष्ट्र अंधे थे , वो पुत्र मोह में भी अंधे थे । दुर्योधन की गलतियों पर उसे रोकते नहीं थे , इससे वह बहुत अहंकारी और अत्याचारी हो गया था । दुर्योधन की माता गांधारी ने अपनी आँखों पर पट्टी बांध ली थी , वे भी उसे पांडवों के विरुद्ध षड्यंत्र करने , अन्याय , अत्याचार करने से न रोक सकीं । इसी का परिणाम हुआ कि युद्ध में दुर्योधन बन्धु- बान्धव समेत मारा गया । धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने वाले पांडव विजयी हुए ।
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