Thursday 23 April 2015

संसार में सुख-शांति के लिए सत्कर्म व सद्विचारों की प्रतिष्ठा होनी चाहिए

आज  की  सबसे  बड़ी  विडम्बना  यही  है  कि   अच्छाई  को  दबाकर  रखा  जाता  है,  चारों  तरफ  बुराई  और  नकारात्मकता  ही  नजर  आती  है  ।  अपहरण,  बलात्कार,  हत्या,  आत्महत्या,  लूट,  डकैती,  मारपीट  आदि  जितनी  भी  बुरी  घटनाएं  है  वे  सब  समाचार पत्रों में,   विभिन्न प्रचार साधनो  में  बड़े  मोटे  अक्षरों  में  विस्तार  के  साथ   बताई  जाती  हैं  और  जीवन  दर्शन,  प्रेरक-प्रसंग   और  समाज  में  घटने वाली  अच्छी  घटनाओं  को  इतने  विस्तार  से  नहीं  बताया  जाता   |   बुरी  घटनाओं  का  इतना  अधिक  प्रचार-प्रसार  होने  से  वे  कम  नहीं  हुईं,   बढ़ती  जा  रहीं  हैं  ।  इन्हें  तो  कानून-व्यवस्था  ,  जन-जागरूकता  और   संवेदना  के  विस्तार    द्वारा  ही  नियंत्रित  किया  जा  सकता  है  |
हमारे  ऋषियों  ने  कहा  है--- शिव  नीलकंठ  हैं  ।  हलाहल  विष  को  धारण  किया  ।   न   उगला     न  पिया  ।
      शिक्षण  यही  है------- विषाक्तता  को  न  तो  आत्मसात  करें    और  न  ही   विक्षुब्ध  होकर  उछालें   । 

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