राजतन्त्र और सामन्तवाद यद्दपि समाप्त हो गया लेकिन लोगों के ह्रदय में अभी भी जिन्दा है |
अधिकांश लोग अपना काम स्वयं न करके उसे अपने ही साथ के किसी न किसी से करवाना चाहता है । यह बात पारिवारिक , सामाजिक , आदि सभी क्षेत्रों में है । कुछ लोग सर्वेसर्वा बन जाते हैं और अन्य लोगों पर काम का बोझ लादकर उनका शोषण करते हैं ।
केवल चेहरे बदल गए । जब देश पराधीन था तब जिन बातों के लिए विदेशी लोगों को दोष दिया जाता था , आज वही सब देश के लोग कर रहे हैं । मानसिकता नहीं बदली ।
पहले एक लक्ष्य था --- देश को आजाद कराना है , विदेशियों के शोषण से मुक्त होना है लेकिन अब ऐसे लोगों के बीच रहकर जीवन का सफर तय करना है जो दूसरों का शोषण करते हैं , हक छीनते हैं बिना वजह सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए दूसरों को सताते हैं --- यह स्थिति और भी कष्टदायी है । इसी से व्यापक अशान्ति ।
अधिकांश लोग अपना काम स्वयं न करके उसे अपने ही साथ के किसी न किसी से करवाना चाहता है । यह बात पारिवारिक , सामाजिक , आदि सभी क्षेत्रों में है । कुछ लोग सर्वेसर्वा बन जाते हैं और अन्य लोगों पर काम का बोझ लादकर उनका शोषण करते हैं ।
केवल चेहरे बदल गए । जब देश पराधीन था तब जिन बातों के लिए विदेशी लोगों को दोष दिया जाता था , आज वही सब देश के लोग कर रहे हैं । मानसिकता नहीं बदली ।
पहले एक लक्ष्य था --- देश को आजाद कराना है , विदेशियों के शोषण से मुक्त होना है लेकिन अब ऐसे लोगों के बीच रहकर जीवन का सफर तय करना है जो दूसरों का शोषण करते हैं , हक छीनते हैं बिना वजह सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए दूसरों को सताते हैं --- यह स्थिति और भी कष्टदायी है । इसी से व्यापक अशान्ति ।
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