' हम सब एक माला के मोती हैं , इस माला के आधे से अधिक फूल पददलित , कुम्हलाये हुए और प्रदूषित हों तो वह माला व्यर्थ है । '
इन सबके पीछे वास्तविक कारण है --- धन का लालच और स्वार्थ । लोग वास्तव में व्यक्ति का चाहे वह पुरुष हो या नारी उसका सम्मान नहीं करते , उस के माध्यम से वे कितना धन कमा सकते हैं , अपना प्रमोशन करा सकते हैं , अपनी मनमानी कर सकते हैं , उस सम्मान के पीछे यही उद्देश्य होता है ।
समाज में धन को इतना महत्व देने के कारण ही लोगों ने पर्यावरण को प्रदूषित कर दिया , लोगों को नशे का आदी बना दिया , , कला को ऐसा बना दिया जो लोगों की कुत्सित भावना को और भड़का दे और नारी जो युगों से शोषित और उत्पीड़ित है , उसे भी प्रदर्शन की आड़ में अपमानित कर दिया ।
कर्मकाण्ड भी जरुरी है लेकिन मानसिकता प्रदूषित है, भावनाओं की पवित्रता नहीं है तो सब कर्मकाण्ड व्यर्थ हैं ।
ऐसा नहीं है कि संसार में सब भ्रष्ट हैं , अनेक अच्छे लोग हैं , पुण्यात्मा हैं जिनके पुण्यों से यह धरती टिकी है लेकिन अंधकार बहुत सघन है उसे मिटाने के लिए दृढ संकल्प और शक्ति के साथ सद्बुद्धि की आवश्यकता है । ऐसे पवित्र अवसर पर हम ईश्वर से धन नहीं सद्बुद्धि मांगे । केवल सद्बुद्धि होने से ही संसार की सभी समस्याओं का हल हो जाता है चाहे वे पारिवारिक हों सामाजिक हों या राजनैतिक हों । उन्हें हल करने के लिए किसी झगड़े, दंगे और युद्ध की आवश्यकता नहीं है ।
इन सबके पीछे वास्तविक कारण है --- धन का लालच और स्वार्थ । लोग वास्तव में व्यक्ति का चाहे वह पुरुष हो या नारी उसका सम्मान नहीं करते , उस के माध्यम से वे कितना धन कमा सकते हैं , अपना प्रमोशन करा सकते हैं , अपनी मनमानी कर सकते हैं , उस सम्मान के पीछे यही उद्देश्य होता है ।
समाज में धन को इतना महत्व देने के कारण ही लोगों ने पर्यावरण को प्रदूषित कर दिया , लोगों को नशे का आदी बना दिया , , कला को ऐसा बना दिया जो लोगों की कुत्सित भावना को और भड़का दे और नारी जो युगों से शोषित और उत्पीड़ित है , उसे भी प्रदर्शन की आड़ में अपमानित कर दिया ।
कर्मकाण्ड भी जरुरी है लेकिन मानसिकता प्रदूषित है, भावनाओं की पवित्रता नहीं है तो सब कर्मकाण्ड व्यर्थ हैं ।
ऐसा नहीं है कि संसार में सब भ्रष्ट हैं , अनेक अच्छे लोग हैं , पुण्यात्मा हैं जिनके पुण्यों से यह धरती टिकी है लेकिन अंधकार बहुत सघन है उसे मिटाने के लिए दृढ संकल्प और शक्ति के साथ सद्बुद्धि की आवश्यकता है । ऐसे पवित्र अवसर पर हम ईश्वर से धन नहीं सद्बुद्धि मांगे । केवल सद्बुद्धि होने से ही संसार की सभी समस्याओं का हल हो जाता है चाहे वे पारिवारिक हों सामाजिक हों या राजनैतिक हों । उन्हें हल करने के लिए किसी झगड़े, दंगे और युद्ध की आवश्यकता नहीं है ।
No comments:
Post a Comment