अपने से कमजोर का शोषण करना मनुष्य का स्वभाव है , लेकिन जब स्वार्थ बढ़ जाता है , दंड का कोई भय नहीं होता तब यह शोषण बड़े पैमाने पर होता है और इसका सबसे ज्यादा शिकार होती है युवा पीढ़ी l युवा वर्ग में ऊर्जा बहुत होती है , धन और पद से संपन्न लोग युवा पीढ़ी की इस ऊर्जा का उपयोग अपने स्वार्थ के लिए करते हैं , उनके जीवन को सही दिशा नहीं देते | ये युवा वास्तव में अपने आकाओं के ' गुलाम ' होते हैं , धन और सुविधाओं के लालच में ये लोग उनके इशारे पर कुछ भी कर सकते | यही इनका रोजगार है | समाज में शान्ति के लिए जरुरी है कि युवा पीढ़ी को सुधारने से पहले , उनके जीवन को गलत दिशा देने वाले सुधर जाएँ | हमारे ऋषियों ने आश्रम व्यवस्था बनायीं थी , कि एक निश्चित आयु सीमा के बाद लोग समाज को शिक्षण देने का , समाज निर्माण का कार्य करें लेकिन आज स्थिति विपरीत हो गई है , इस आयु तक पहुँचते - पहुँचते व्यक्ति भ्रष्टाचार और गलत कार्यों में पक्का हो जाता है l और स्वयं को अमर समझकर अपनी ही स्वार्थपूर्ति में लगे रहते हैं |
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