संसार में विभिन्न धर्म हैं , ईश्वर के अनेक रूप हैं l लोग अपने - अपने तरीके से ईश्वर का नाम लेते हैं लेकिन उनके बताये मार्ग पर नहीं चलते l धर्म ग्रंथों में बताये गए श्रेष्ठ मार्ग को , सद्गुणों को नहीं अपनाते इसलिए स्वयं अशांत रहकर दूसरों को भी अशांत करते हैं l यदि मनुष्य अपने अहंकार को छोड़ दे तो ईश्वर के नाम में इतनी शक्ति है जो युद्ध की आग को भी शांत कर देती है l एक प्राचीन कथा है जो बड़े - बुजुर्ग सुनाया करते थे ----
एक राजा बड़ा अहंकारी था , उसमे अनेक सद्गुण थे लेकिन वे सब अहंकार से ढक गए थे l एक बार किसी अन्य राजा से उसका विवाद हो गया और युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई l वह राजा भगवान् श्री राम का अनन्य भक्त था ,, उसे उनकी प्रत्यक्ष कृपा प्राप्त थी l युद्ध शुरू होने पर उस अहंकारी राजा का किसी ने साथ न दिया क्योंकि सब जानते थे कि वह दूसरा राजा परम भक्त और प्रजापालक है l
जब अहंकारी राजा ने अपनी मृत्यु को निकट देखा तो घबराया l उसके एक वृद्ध मंत्री ने सलाह दी कि तुम श्री हनुमानजी की शरण में जाओ , केवल वे ही तुम्हे बचा सकते हैं और कोई नहीं l वह राजा अपना धन - वैभव , घोड़े - रथ सब छोड़ कर पैदल ही भागता - दौड़ता हनुमानजी के चरणों में गिर पड़ा , बोला --- उस भक्त राजा के पास भगवन श्री राम की दी हुई अमोघ शक्ति है उससे मेरी रक्षा करो l हनुमानजी ने उसे शरण दी और कहा - अहंकार छोड़ो, जैसा मैं कहूँ वैसा करो l उन्हें तुम अस्त्र -शस्त्र से नहीं जीत सकते l
युद्ध के मैदान में दोनों सेनाएं थीं --- एक ओर सद्गुण संपन्न , प्रजापालक राजा जिसे भगवान् राम का संरक्षण था और दूसरी और वह राजा - जो अहंकार छोड़ने का संकल्प ले चुका था हनुमानजी की शरण में था l बड़ा अदभुत द्रश्य था l श्री हनुमानजी ने उसे तीन मन्त्र बताये उनके जपने से बड़ी से बड़ी शक्ति से भी कोई अहित नहीं होगा ---- ' सीता -राम , सीता - राम '
' श्री राम जय राम , जय - जय राम ' श्री राम जय राम , जय - जय राम '
इन दोनों मन्त्रों के जपने से किसी शक्ति बाण ने उसका अहित नहीं किया , नमन कर वापस लौट गईं l तो प्रतिपक्षी राजा को बड़ी हैरानी हुई l अब उसने सबसे शक्ति शाली बाण चलाया , प्रलय की सी स्थिति उत्पन्न हो गई l तब हनुमानजी ने उससे कहा -- सन्मार्ग पर चलने का , अपनी शक्ति का लोक - हित में उपयोग करने का संकल्प लो , फिर सच्चे मन से ईश्वर का ध्यान कर जप करो ' रघुपति राघव राजा राम , पतित पावन सीता राम '
वह शक्ति भी शांत हो गई और युद्ध समाप्त हो गया l कथा का सार यही है कि हम ईश्वर का नाम लेने के साथ सन्मार्ग पर चलें , अपनी बुराइयों को छोड़ें , तभी शांति संभव है
एक राजा बड़ा अहंकारी था , उसमे अनेक सद्गुण थे लेकिन वे सब अहंकार से ढक गए थे l एक बार किसी अन्य राजा से उसका विवाद हो गया और युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई l वह राजा भगवान् श्री राम का अनन्य भक्त था ,, उसे उनकी प्रत्यक्ष कृपा प्राप्त थी l युद्ध शुरू होने पर उस अहंकारी राजा का किसी ने साथ न दिया क्योंकि सब जानते थे कि वह दूसरा राजा परम भक्त और प्रजापालक है l
जब अहंकारी राजा ने अपनी मृत्यु को निकट देखा तो घबराया l उसके एक वृद्ध मंत्री ने सलाह दी कि तुम श्री हनुमानजी की शरण में जाओ , केवल वे ही तुम्हे बचा सकते हैं और कोई नहीं l वह राजा अपना धन - वैभव , घोड़े - रथ सब छोड़ कर पैदल ही भागता - दौड़ता हनुमानजी के चरणों में गिर पड़ा , बोला --- उस भक्त राजा के पास भगवन श्री राम की दी हुई अमोघ शक्ति है उससे मेरी रक्षा करो l हनुमानजी ने उसे शरण दी और कहा - अहंकार छोड़ो, जैसा मैं कहूँ वैसा करो l उन्हें तुम अस्त्र -शस्त्र से नहीं जीत सकते l
युद्ध के मैदान में दोनों सेनाएं थीं --- एक ओर सद्गुण संपन्न , प्रजापालक राजा जिसे भगवान् राम का संरक्षण था और दूसरी और वह राजा - जो अहंकार छोड़ने का संकल्प ले चुका था हनुमानजी की शरण में था l बड़ा अदभुत द्रश्य था l श्री हनुमानजी ने उसे तीन मन्त्र बताये उनके जपने से बड़ी से बड़ी शक्ति से भी कोई अहित नहीं होगा ---- ' सीता -राम , सीता - राम '
' श्री राम जय राम , जय - जय राम ' श्री राम जय राम , जय - जय राम '
इन दोनों मन्त्रों के जपने से किसी शक्ति बाण ने उसका अहित नहीं किया , नमन कर वापस लौट गईं l तो प्रतिपक्षी राजा को बड़ी हैरानी हुई l अब उसने सबसे शक्ति शाली बाण चलाया , प्रलय की सी स्थिति उत्पन्न हो गई l तब हनुमानजी ने उससे कहा -- सन्मार्ग पर चलने का , अपनी शक्ति का लोक - हित में उपयोग करने का संकल्प लो , फिर सच्चे मन से ईश्वर का ध्यान कर जप करो ' रघुपति राघव राजा राम , पतित पावन सीता राम '
वह शक्ति भी शांत हो गई और युद्ध समाप्त हो गया l कथा का सार यही है कि हम ईश्वर का नाम लेने के साथ सन्मार्ग पर चलें , अपनी बुराइयों को छोड़ें , तभी शांति संभव है
No comments:
Post a Comment