इस सम्बन्ध में एक कथा है ----- राजा नहुष को पुण्य कार्यों के फलस्वरूप स्वर्ग जाने का अवसर मिला और इंद्र पद के अधिकारी हो गए l इतना उच्च पद पाकर वे मदांध हो गए और सोचने लगे कि इंद्र के अंत:पुर पर भी उनका अधिकार होना चाहिए और इन्द्राणी समेत उनकी सब सखियों को उनकी सेवा में रहना चाहिए l यह सूचना इन्द्राणी तक पहुंची तो वे बहुत विचलित हो गईं और वे इस समस्या से बचने का उपाय सोचने लगीं l
इन्द्राणी ने कूटनीतिक चाल चली l उन्होंने नहुष को कहला भेजा कि वे सप्त ऋषियों को पालकी में जोतकर उस पर बैठकर अंत:पुर आयें तभी उनका स्वागत होगा l
मदांध को भला - बुरा नहीं सूझता , उन्होंने तत्काल यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और सप्त ऋषियों को पालकी में जोतकर अंत:पुर चले l मार्ग की दूरी में लगने वाला विलम्ब उनसे सहन नहीं हो रहा था l ऋषि कमजोर थे , नहुष पालकी में बैठे थे l इतनी भारी पालकी को उठाकर वे धीरे - धीरे चल रहे थे l ऋषियों को दौड़ने का आदेश देते हुए वे अपनी भाषा में सर्पि सर्पि कहने लगे l ऋषियों से यह अपमान सहा नहीं गया , उन्हें क्रोध भी आ गया l उनने पालकी को धरती पर पटक दिया और शाप दिया कि सर्पि सर्पि कहने वाले को सर्प की योनि मिले l नहुष पालकी से गिरकर धरती पर आ गए और सर्प की योनि में बुरे दिन बिताने लगे l
इन्द्राणी ने कूटनीतिक चाल चली l उन्होंने नहुष को कहला भेजा कि वे सप्त ऋषियों को पालकी में जोतकर उस पर बैठकर अंत:पुर आयें तभी उनका स्वागत होगा l
मदांध को भला - बुरा नहीं सूझता , उन्होंने तत्काल यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और सप्त ऋषियों को पालकी में जोतकर अंत:पुर चले l मार्ग की दूरी में लगने वाला विलम्ब उनसे सहन नहीं हो रहा था l ऋषि कमजोर थे , नहुष पालकी में बैठे थे l इतनी भारी पालकी को उठाकर वे धीरे - धीरे चल रहे थे l ऋषियों को दौड़ने का आदेश देते हुए वे अपनी भाषा में सर्पि सर्पि कहने लगे l ऋषियों से यह अपमान सहा नहीं गया , उन्हें क्रोध भी आ गया l उनने पालकी को धरती पर पटक दिया और शाप दिया कि सर्पि सर्पि कहने वाले को सर्प की योनि मिले l नहुष पालकी से गिरकर धरती पर आ गए और सर्प की योनि में बुरे दिन बिताने लगे l
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