इस संसार में जब भी अत्याचार अपने चरम पर पहुंचा है , उसका अंत हुआ है l संसार तो केवल वही देख पाता है , जो इन आँखों से दीखता है , जिनका सबूत होता है l जो अत्याचारी है और अहंकारी है वह अपनी ओछी हरकतों को इस तरह अंजाम देता है जिन्हें या तो सहन करने वाला जानता है या फिर ईश्वर जानते हैं l जब अत्याचार और अन्याय की अति हो जाती है तब उसका अंत अवश्य होता है , उसके लिए माध्यम चाहे कोई भी हो l
रावण के पास सोने की लंका थी , वेद व शास्त्रों का ज्ञाता था , शिव भक्त था , एक लाख पूत और सवा लाख नाती --- भरा - पूरा परिवार था लेकिन उसे अपनी शक्ति का अहंकार था l ऋषि - मुनियों ने उसका क्या बिगाड़ा था जो उसने उनके यज्ञ, हवन आदि पवित्र कार्यों को अपवित्र किया उसके अत्याचारों की जब अति हो गई तब भगवान राम ने रीछ, वानरों की सेना लेकर उसका अंत किया l इसी तरह कंस ने अति के अत्याचार किये l जब उसे यह पता चला कि कृष्ण का जन्म हो चुका है , तो उसने कितने ही बालकों का वध करा दिया l मासूम और निर्दोष पर अत्याचार प्रकृति कभी बर्दाश्त नहीं करती l कंस , दुर्योधन आदि सभी अत्याचारियों का अंत हुआ l
जो गरीब है , निर्धन है , जिसे दो वक्त की रोटी की चिंता है , अपनी बेटी की कुशलता और उसके विवाह की चिंता है , वह क्या किसी पर अत्याचार करेगा l अत्याचार , अन्याय और शोषण वही करते हैं जो हर तरह से समर्थ हैं , दूसरों को सताना , उनका शोषण करना और ऐसा कर के आनंदित होना उनकी आदत होती है l युगों से यही हो रहा है , अत्याचारी का अंत होता है , फिर नए अत्याचारी पैदा हो जाते हैं l यह उसका बढ़ - चढ़ा अहंकार है जो अंत होते हुए भी अपने पापों को स्वीकार नहीं करता , आने वाली पीढ़ियों को सिखाता नहीं कि देखो ! इतने पाप कर्म किये उसका यह नतीजा निकला l इसका परिणाम यही होता है आने वाली पीढ़ियाँ कम उम्र से ही अपराध में लग जाती हैं l एक स्वस्थ समाज का निर्माण तभी हो सकता है जब व्यक्ति पाप - पुण्य का अंतर समझे , अपनी गलती को स्वीकार कर स्वयं को सुधारने का प्रयास करे l
रावण के पास सोने की लंका थी , वेद व शास्त्रों का ज्ञाता था , शिव भक्त था , एक लाख पूत और सवा लाख नाती --- भरा - पूरा परिवार था लेकिन उसे अपनी शक्ति का अहंकार था l ऋषि - मुनियों ने उसका क्या बिगाड़ा था जो उसने उनके यज्ञ, हवन आदि पवित्र कार्यों को अपवित्र किया उसके अत्याचारों की जब अति हो गई तब भगवान राम ने रीछ, वानरों की सेना लेकर उसका अंत किया l इसी तरह कंस ने अति के अत्याचार किये l जब उसे यह पता चला कि कृष्ण का जन्म हो चुका है , तो उसने कितने ही बालकों का वध करा दिया l मासूम और निर्दोष पर अत्याचार प्रकृति कभी बर्दाश्त नहीं करती l कंस , दुर्योधन आदि सभी अत्याचारियों का अंत हुआ l
जो गरीब है , निर्धन है , जिसे दो वक्त की रोटी की चिंता है , अपनी बेटी की कुशलता और उसके विवाह की चिंता है , वह क्या किसी पर अत्याचार करेगा l अत्याचार , अन्याय और शोषण वही करते हैं जो हर तरह से समर्थ हैं , दूसरों को सताना , उनका शोषण करना और ऐसा कर के आनंदित होना उनकी आदत होती है l युगों से यही हो रहा है , अत्याचारी का अंत होता है , फिर नए अत्याचारी पैदा हो जाते हैं l यह उसका बढ़ - चढ़ा अहंकार है जो अंत होते हुए भी अपने पापों को स्वीकार नहीं करता , आने वाली पीढ़ियों को सिखाता नहीं कि देखो ! इतने पाप कर्म किये उसका यह नतीजा निकला l इसका परिणाम यही होता है आने वाली पीढ़ियाँ कम उम्र से ही अपराध में लग जाती हैं l एक स्वस्थ समाज का निर्माण तभी हो सकता है जब व्यक्ति पाप - पुण्य का अंतर समझे , अपनी गलती को स्वीकार कर स्वयं को सुधारने का प्रयास करे l
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