Thursday 18 October 2018

स्वस्थ समाज का निर्माण जरुरी है

 अभी  तक  जो  विकास  हुआ  है  वह  भौतिक  है   l  मनुष्य  के  व्यक्तित्व  के  दो  पक्ष  हैं -- आंतरिक  और  बाह्य  l  यह  विकास  बाह्य  है  l  आंतरिक  द्रष्टि  से  मनुष्य  अभी  भी   असभ्य  है  ,  पशु - तुल्य  है  ,  उसके  भीतर  का  राक्षस  अभी  मरा  नहीं  है  l    ऐसा  इसलिए  है  क्योंकि  जीवन  को  सुख - सुविधा संपन्न  बनाने  के  तो  बहुत  प्रयास  हुए  ,  लेकिन  आत्मिक  विकास  के  कोई  प्रयास  नहीं  हुए  l   इसलिए  धर्म ,  जाति  के  नाम  पर  बहुत  अत्याचार  हुए ,  अमीरी - गरीबी  का  भेदभाव  अपने  चरम  पर  है ,  युगों  से  महिलाओं  पर  अत्याचार  हुए  l  अत्याचार , अन्याय  इसलिए  भी  बढ़ता  गया   क्योंकि  समर्थ  पक्ष  ने  समाज  के  प्रमुख  लोगों  और  धर्म  के  ठेकेदारों  को  अपने  पक्ष  में  कर  इस  बात  को  लोगों  के  दिलोदिमाग  में  भरा  कि  जो  पीड़ित  हैं  उनका  भाग्य  ही  ख़राब  है  और  उनका  जन्म  अत्याचार  सहने  के  लिए  ही  हुआ  है  l
  अन्याय  और  अत्याचार  के  विरुद्ध  आवाज  न  उठाने  से  अत्याचारियों  के  हौसले  बुलंद  होते  गए   और  उन्होंने  दूसरों  को  सताना ,  अपनी  हुकूमत  चलाना ,  अपने  से  तुच्छ  समझना ,  उत्पीड़ित  करना  अपना  जन्म  सिद्ध  अधिकार  समझ  लिया  l  धीरे - धीरे  यह  उनकी  आदत  बन  गई   और  खानदानी  बीमारी  की  तरह  एक  पीढ़ी  से  दूसरी  पीढ़ी  में  आती  रही   l
  पीड़ित  पक्ष  को  अपनी  भाग्यवादी  सोच  को  बदलना  होगा  कि---  यह  दुर्भाग्य  नहीं , कमजोरी  है  l 
अपने  ज्ञान ,  जागरूकता ,  संगठन  और  आत्मबल  के  सहारे  ही   अत्याचारी  का  मुकाबला  किया  जा  सकता  है   l   

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