आज मनुष्य ने ज्ञान-विज्ञान में तो बहुत तरक्की कर ली, मशीनों और उपकरणों की सहायता से विभिन्न कार्य सरलता से हो जाते हैं । इसलिए लोगों ने यह समझ लिया कि सुख-शांति पाना भी बहुत सरल है---- पात्र-अपात्र का ध्यान रखे बिना, जहां-तहां धन लुटा दो, ---- यह दान नहीं है और ना ही भगवान ऐसे दान से प्रसन्न होते हैं और न ही सुख-शान्ति मिलती है ।
सबसे बडी बात यह है कि नकद राशि हाथ में आते ही व्यक्ति का मन विचलित हो जाता है, पैसा मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी है, धन राशि आते ही व्यक्ति हो या संस्था, भ्रष्टाचार और चारित्रिक पतन शुरू हो जाता है ।
व्यक्ति बहुत धनवान हो या साधारण आय प्राप्त करने वाला हो, आज के मशीनी युग में वह अपने शरीर को कष्ट नही देना चाहता, सोचता है सबसे सरल तरीका है-- जेब में से रुपया निकालो और धार्मिक स्थानों में, कथा, कीर्तन, प्रवचन आदि में चढ़ा दो, सोचता है इस तरह के चढ़ावे से भगवान प्रसन्न होंगे ।
इस तरह बड़ी-बड़ी धन राशि चढ़ा देना, पुण्य नहीं है, यह तो मुद्रा का एक हाथ से दूसरे हाथ में चलन है । इस तरह धन प्राप्त करने वाले व्यक्ति का यदि चारित्रिक पतन होता है तो दान करने वाले को पुण्य मिलना तो दूर, उसके पतन का पाप और सिर पर चढ़ जाता है ।
दान ऐसा हो जिससे किसी के जीवन में तरक्की हो, उसके कष्ट दूर हों । नि:स्वार्थ भाव से किसी की शिक्षा, इलाज , पुत्री का विवाह आदि नेक कार्यों में धन खर्च करके, धन का सदुपयोग किया जा सकता है ।
व्यक्ति यदि स्थायी रुप से सुख-शान्ति चाहता है तो जरुरी है कि वह मेहनत और ईमानदारी से धन कमाये । किसी को कष्ट दे कर, किसी का हक छीनकर, भ्रष्टाचार कर आपने बहुत धन कमा लिया और उसमे से दान भी किया तो भी उससे मानसिक शान्ति की उम्मीद नहीं की जा सकती ।
ईमानदारी से थोड़ा कमाया , उसमे से नियमित एक मुट्ठी दाना व पानी पक्षियों को दिया, जो कुछ अपने पास अतिरिक्त है उसे जरूरतमंद को दिया । और कभी किसी का अहित ना करे-- इस सरल रास्ते पर चलकर व्यक्ति परेशानियों में भी शान्ति का जीवन जी सकता है ।
सबसे बडी बात यह है कि नकद राशि हाथ में आते ही व्यक्ति का मन विचलित हो जाता है, पैसा मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी है, धन राशि आते ही व्यक्ति हो या संस्था, भ्रष्टाचार और चारित्रिक पतन शुरू हो जाता है ।
व्यक्ति बहुत धनवान हो या साधारण आय प्राप्त करने वाला हो, आज के मशीनी युग में वह अपने शरीर को कष्ट नही देना चाहता, सोचता है सबसे सरल तरीका है-- जेब में से रुपया निकालो और धार्मिक स्थानों में, कथा, कीर्तन, प्रवचन आदि में चढ़ा दो, सोचता है इस तरह के चढ़ावे से भगवान प्रसन्न होंगे ।
इस तरह बड़ी-बड़ी धन राशि चढ़ा देना, पुण्य नहीं है, यह तो मुद्रा का एक हाथ से दूसरे हाथ में चलन है । इस तरह धन प्राप्त करने वाले व्यक्ति का यदि चारित्रिक पतन होता है तो दान करने वाले को पुण्य मिलना तो दूर, उसके पतन का पाप और सिर पर चढ़ जाता है ।
दान ऐसा हो जिससे किसी के जीवन में तरक्की हो, उसके कष्ट दूर हों । नि:स्वार्थ भाव से किसी की शिक्षा, इलाज , पुत्री का विवाह आदि नेक कार्यों में धन खर्च करके, धन का सदुपयोग किया जा सकता है ।
व्यक्ति यदि स्थायी रुप से सुख-शान्ति चाहता है तो जरुरी है कि वह मेहनत और ईमानदारी से धन कमाये । किसी को कष्ट दे कर, किसी का हक छीनकर, भ्रष्टाचार कर आपने बहुत धन कमा लिया और उसमे से दान भी किया तो भी उससे मानसिक शान्ति की उम्मीद नहीं की जा सकती ।
ईमानदारी से थोड़ा कमाया , उसमे से नियमित एक मुट्ठी दाना व पानी पक्षियों को दिया, जो कुछ अपने पास अतिरिक्त है उसे जरूरतमंद को दिया । और कभी किसी का अहित ना करे-- इस सरल रास्ते पर चलकर व्यक्ति परेशानियों में भी शान्ति का जीवन जी सकता है ।
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