जब राजतन्त्र था तब जमींदार व सामन्त जनता का शोषण करते थे । शासन प्रणाली चाहें कोई भी हो, जब तक मानवीय प्रवृतियां नहीं बदलती अत्याचार व अन्याय समाप्त नहीं होगा । विभिन्न संस्थाओं में, कार्यालयों में कुछ लोग नेताओं और अधिकरियों का संरक्षण प्राप्त कर पुराने सामन्तों की तरह अपने को उस संस्था का सर्वेसर्वा समझ कर शेष कर्मचारियों को उत्पीड़ित करते हैं । ये लोग नियमों को तोड़-मरोड़ कर केवल अपने हित को पूरा करते हैं, संस्था के विकास से उन्हें कोई लेना-देना नहीं है । यदि कोंई ईमानदारी, सच्चाई से काम करना चाहें तो ये लोग दीवार बनकर खड़े हो जाते हैं । समाज में अशांति के लिए यही वर्ग ज़िम्मेदार है ।
उत्पीड़ित व्यक्ति अपने आक्रोश को समाज में विभिन्न रूपों में व्यक्त करता है । यदि इन
' सामन्तों ' को मिलने वाला संरक्षण समाप्त हो जाये तो समाज में बहुत सी समस्याएं स्वत; ही हल हो जायें ।
उत्पीड़ित व्यक्ति अपने आक्रोश को समाज में विभिन्न रूपों में व्यक्त करता है । यदि इन
' सामन्तों ' को मिलने वाला संरक्षण समाप्त हो जाये तो समाज में बहुत सी समस्याएं स्वत; ही हल हो जायें ।
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