सुख, शान्ति, योग, आसन आदि ऐसे विषय है जिनसे गरीब और अति निर्धन लोगों को कोई लेना-देना नहीं है । उन्हें तो गरीबी, भूख, बीमारी, बेरोजगारी जैसी समस्याओं से निपटना है ।
सुख, मानसिक शान्ति , तनाव रहित जीवन आदि से संबंधित तर्क उन लोगों के लिए हैं जिनके पास पर्याप्त जमा-पूंजी है, सभी आराम के साधन हैं, समाज में प्रतिष्ठा है किन्तु मन में शान्ति नहीं
है । तनाव है, जीवन में चैन नहीं है ।
ये समस्याएं बहुत बड़ी नहीं हैं, इन्हें डॉक्टरी ईलाज से हल नहीं किया जा सकता । इनका हल तो आपके विचारों मे है , विचारों में थोड़ी सी उदारता का समावेश कर व्यक्ति एक सफल जीवन जी सकता है , प्रयास यह हो कि निर्धन व्यक्ति हमारे परामर्श से, सहयोग से समर्थ हो जाये ।
हमारे आचार्य का, ऋषियों का मत है कि परमार्थ में ही सच्चा स्वार्थ है । मन की शान्ति अनमोल है, इसे कहीं से खरीदा नहीं जा सकता ।
मन में परमार्थ की सच्ची प्रेरणा है तो एक कमरे में बैठकर सतत निगरानी रखकर भी किया जा सकता है जैसे निर्धनों की बस्ती में और उस के आस-पास अनेक फल, सब्जी के पेड़-पौधे लगवा दिए और उन लोगों को ही उनकी रखवाली, सफाई, गुड़ाई, पानी डालना आदि के लिए नियुक्त कर दिया । दिन भर की मेहनत के बदले उन्हें शाम को आटा, दाल, चावल, शक्कर, तेल दें, । अब वे भोजन बनाकर , अपने बच्चों के साथ मिलकर जब खायेंगे तो उनकी खुशी दुआ बनकर आप तक पहुंचेगी । बस ! हमारे मन में स्वयं लाभ कमाना, वहां हक जमाना, प्रतिष्ठा हासिल करना जैसी भावना न हो ।
सुख, मानसिक शान्ति , तनाव रहित जीवन आदि से संबंधित तर्क उन लोगों के लिए हैं जिनके पास पर्याप्त जमा-पूंजी है, सभी आराम के साधन हैं, समाज में प्रतिष्ठा है किन्तु मन में शान्ति नहीं
है । तनाव है, जीवन में चैन नहीं है ।
ये समस्याएं बहुत बड़ी नहीं हैं, इन्हें डॉक्टरी ईलाज से हल नहीं किया जा सकता । इनका हल तो आपके विचारों मे है , विचारों में थोड़ी सी उदारता का समावेश कर व्यक्ति एक सफल जीवन जी सकता है , प्रयास यह हो कि निर्धन व्यक्ति हमारे परामर्श से, सहयोग से समर्थ हो जाये ।
हमारे आचार्य का, ऋषियों का मत है कि परमार्थ में ही सच्चा स्वार्थ है । मन की शान्ति अनमोल है, इसे कहीं से खरीदा नहीं जा सकता ।
मन में परमार्थ की सच्ची प्रेरणा है तो एक कमरे में बैठकर सतत निगरानी रखकर भी किया जा सकता है जैसे निर्धनों की बस्ती में और उस के आस-पास अनेक फल, सब्जी के पेड़-पौधे लगवा दिए और उन लोगों को ही उनकी रखवाली, सफाई, गुड़ाई, पानी डालना आदि के लिए नियुक्त कर दिया । दिन भर की मेहनत के बदले उन्हें शाम को आटा, दाल, चावल, शक्कर, तेल दें, । अब वे भोजन बनाकर , अपने बच्चों के साथ मिलकर जब खायेंगे तो उनकी खुशी दुआ बनकर आप तक पहुंचेगी । बस ! हमारे मन में स्वयं लाभ कमाना, वहां हक जमाना, प्रतिष्ठा हासिल करना जैसी भावना न हो ।
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