' समाज के किसी एक वर्ग को उपेक्षित कर स्थायी सुख-शान्ति की उम्मीद नहीं की जा सकती ।
कोई भी शासन-व्यवस्था हो, धनी व्यक्ति, निर्धनों का शोषण करते हैं । उनके प्रति उपेक्षित व्यवहार करते हैं । अनेक धन संपन्न व्यक्ति बहुत दान भी करते हैं, अनेक कालेज, अस्पताल, विभिन्न संस्थान धनिकों की मदद से चलते हैं किन्तु निर्धन और अति निर्धन व्यक्तियों को उनका लाभ नहीं मिल पाता । विभिन्न सरकारों द्वारा निर्धनों के कल्याण की अनेक योजनाएं चलाई जाती हैं, किन्तु निर्धन वर्ग की अशिक्षा, बीमारी, डर, जागरूकता की कमी और भ्रष्टाचार आदि के कारण उन्हें उन योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिल पाता ।
समर्थ और संपन्न व्यक्ति यदि यह सोचे कि बड़े-बड़े घरों में रहकर, गाड़ी में घूमकर, निर्धनों और अति गरीब व लाचार व्यक्तियों से दूर रहकर, सुविधा और विलासिता का जीवन जीकर वे सुखी और स्वस्थ रह सकेंगे, यह संभव नहीं है ।
युगों से उपेक्षित रहने के बावजूद, चाहे भूख व गरीबी से जर्जर शरीर हो, कुपोषण से पेट व पीठ मिलकर एक हो गए हों लेकिन इन लोगों के भी 6-8 बच्चे होते हैं, इनकी जनसंख्या कम नहीं हुई बढ़ती जा रही है ।
दूसरी ओर उच्च पदों के और धन संपन्न व्यक्ति जिनके पास इतनी क्षमता है कि 5-6 बच्चों को अच्छा पोषण और अच्छी शिक्षा दे सकें, वहां एक संतान भी मुश्किल से होती है ।
एयर कंडीशन में रहें, स्वयं को कितना भी बचाकर सुरक्षित रखें, इस उपेक्षित वर्ग से कहीं न कहीं सामना होगा ही ।
यदि हमारे आस-पास ऐसे लोग हैं जो भूख व गंदगी के कारण विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त हैं तो हम भी स्वस्थ रहने की उम्मीद नहीं कर सकते ।
हमारे आचार्य, ऋषियों का मत है कि यदि धन-संपन्न व्यक्ति अपने धन का थोड़ा सा भाग निर्धनों को समर्थ बनाने में और भिखारियों को पुरुषार्थी बनाने में व्यय करें तो उनकी दुआओं से वे भी सुख-वैभव के साथ स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन जी सकेंगे ।
कोई भी शासन-व्यवस्था हो, धनी व्यक्ति, निर्धनों का शोषण करते हैं । उनके प्रति उपेक्षित व्यवहार करते हैं । अनेक धन संपन्न व्यक्ति बहुत दान भी करते हैं, अनेक कालेज, अस्पताल, विभिन्न संस्थान धनिकों की मदद से चलते हैं किन्तु निर्धन और अति निर्धन व्यक्तियों को उनका लाभ नहीं मिल पाता । विभिन्न सरकारों द्वारा निर्धनों के कल्याण की अनेक योजनाएं चलाई जाती हैं, किन्तु निर्धन वर्ग की अशिक्षा, बीमारी, डर, जागरूकता की कमी और भ्रष्टाचार आदि के कारण उन्हें उन योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिल पाता ।
समर्थ और संपन्न व्यक्ति यदि यह सोचे कि बड़े-बड़े घरों में रहकर, गाड़ी में घूमकर, निर्धनों और अति गरीब व लाचार व्यक्तियों से दूर रहकर, सुविधा और विलासिता का जीवन जीकर वे सुखी और स्वस्थ रह सकेंगे, यह संभव नहीं है ।
युगों से उपेक्षित रहने के बावजूद, चाहे भूख व गरीबी से जर्जर शरीर हो, कुपोषण से पेट व पीठ मिलकर एक हो गए हों लेकिन इन लोगों के भी 6-8 बच्चे होते हैं, इनकी जनसंख्या कम नहीं हुई बढ़ती जा रही है ।
दूसरी ओर उच्च पदों के और धन संपन्न व्यक्ति जिनके पास इतनी क्षमता है कि 5-6 बच्चों को अच्छा पोषण और अच्छी शिक्षा दे सकें, वहां एक संतान भी मुश्किल से होती है ।
एयर कंडीशन में रहें, स्वयं को कितना भी बचाकर सुरक्षित रखें, इस उपेक्षित वर्ग से कहीं न कहीं सामना होगा ही ।
यदि हमारे आस-पास ऐसे लोग हैं जो भूख व गंदगी के कारण विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त हैं तो हम भी स्वस्थ रहने की उम्मीद नहीं कर सकते ।
हमारे आचार्य, ऋषियों का मत है कि यदि धन-संपन्न व्यक्ति अपने धन का थोड़ा सा भाग निर्धनों को समर्थ बनाने में और भिखारियों को पुरुषार्थी बनाने में व्यय करें तो उनकी दुआओं से वे भी सुख-वैभव के साथ स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन जी सकेंगे ।
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