आज के समय में दुनिया इतनी सिमट गई है कि विभिन्न तत्व व्यक्ति के मन को प्रभावित करते हैं | हम देखते हैं कि किशोर वय के और युवा पीढ़ी के लोग फिल्म देखकर एक काल्पनिक लोक की दुनिया में रहते है, जीवन की वास्तविकता से उनका कोई लेना-देना नहीं होता । यह पीढ़ी अपनी संस्कृति, अपनी मर्यादा को भूलती जा रही है । फिल्म का ग्लैमर, विभिन्न अपराध के द्रश्य, अश्लीलता इस पीढ़ी के ह्रदय पर अंकित हो जाती है । कलाकार का स्वाभाविक एक्टिंग करने का जूनून नई पीढ़ी को हर तरह की ' सचित्र-शिक्षा ' दे देता है ।
अब आप कितनी भी पूजा-प्रार्थना करें, दान-पुण्य करें, कथा-प्रवचन सुने, आपका मन इन श्रेष्ठ कार्यों में केन्द्रित नहीं होगा, मन में वही द्रश्य और तरह-तरह के विचार हिलोरे मारेंगे । इसीलिए पूजा-पाठ का कोई फल नहीं मिलता, शान्ति नहीं मिलती । ऐसे युवा पढ़-लिख कर उच्च पद पर आ भी जायें तो वे नशे आदि गलत आदतों में अपनी शक्ति गँवाते हैं, अपने परिवार का निर्माण और समाज निर्माण में कोई योगदान नहीं दे पाते ।
जिस व्यवसाय में करोड़ों का लाभ हो, हम न तो उन्हें समझा सकते हैं और न ही उनके बंद होने की उम्मीद कर सकते हैं , हमारे हाथ में तो हमारा जीवन है, हमें उसे ही सुधारना है ।
यदि हम चाहते हैं कि हमारी आने वाली पीढ़ी का, युवाओं का अच्छा स्वास्थ्य हो, चरित्र श्रेष्ठ हो, उनमे नैतिक, मानवीय मूल्य हों तो सबसे पहले माता-पिता को और परिवार में रहने वाले बड़े-बुजुर्गों को बदलना होगा । स्वयं श्रेष्ठ राह पर चलकर ही बच्चों को सही राह दिखा सकते हैं । यदि घर में रहने वाले रिटायर बुजुर्ग दिन भर टीवी देखते हैं तो स्कूल से पढ़कर आने वाले बच्चे को आप टीवी देखने से रोक नहीं सकते । इसी तरह यदि पिता नशे में है, माँ गपशप में व्यस्त है तो आप बच्चों को सही दिशा कैसे देंगे ?
जीवन में मनोरंजन भी जरुरी है, लेकिन इसका समय निश्चित करें । माता-पिता स्वयं श्रेष्ठ साहित्य पढ़े, सकारात्मक कार्य करें , आने वाली पीढ़ी उनका अनुसरण करेगी ।
अब आप कितनी भी पूजा-प्रार्थना करें, दान-पुण्य करें, कथा-प्रवचन सुने, आपका मन इन श्रेष्ठ कार्यों में केन्द्रित नहीं होगा, मन में वही द्रश्य और तरह-तरह के विचार हिलोरे मारेंगे । इसीलिए पूजा-पाठ का कोई फल नहीं मिलता, शान्ति नहीं मिलती । ऐसे युवा पढ़-लिख कर उच्च पद पर आ भी जायें तो वे नशे आदि गलत आदतों में अपनी शक्ति गँवाते हैं, अपने परिवार का निर्माण और समाज निर्माण में कोई योगदान नहीं दे पाते ।
जिस व्यवसाय में करोड़ों का लाभ हो, हम न तो उन्हें समझा सकते हैं और न ही उनके बंद होने की उम्मीद कर सकते हैं , हमारे हाथ में तो हमारा जीवन है, हमें उसे ही सुधारना है ।
यदि हम चाहते हैं कि हमारी आने वाली पीढ़ी का, युवाओं का अच्छा स्वास्थ्य हो, चरित्र श्रेष्ठ हो, उनमे नैतिक, मानवीय मूल्य हों तो सबसे पहले माता-पिता को और परिवार में रहने वाले बड़े-बुजुर्गों को बदलना होगा । स्वयं श्रेष्ठ राह पर चलकर ही बच्चों को सही राह दिखा सकते हैं । यदि घर में रहने वाले रिटायर बुजुर्ग दिन भर टीवी देखते हैं तो स्कूल से पढ़कर आने वाले बच्चे को आप टीवी देखने से रोक नहीं सकते । इसी तरह यदि पिता नशे में है, माँ गपशप में व्यस्त है तो आप बच्चों को सही दिशा कैसे देंगे ?
जीवन में मनोरंजन भी जरुरी है, लेकिन इसका समय निश्चित करें । माता-पिता स्वयं श्रेष्ठ साहित्य पढ़े, सकारात्मक कार्य करें , आने वाली पीढ़ी उनका अनुसरण करेगी ।
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