सामान्य रूप से व्यक्ति जो भी कार्य करता है उसमे निजी लाभ की भावना प्रमुख होती है इसी भावना के कारण वह दिन-रात मेहनत कर अपने व्यवसाय को ऊँचाइयों पर ले जाता है और बड़ी धन-सम्पदा का स्वामी बन जाता है ।
जन-कल्याण सम्बन्धी कार्यों के लिए यह सोचा जाता है कि यह सरकार की जिम्मेदारी है | इसका कारण यही है कि निर्धन बच्चों की नि:-शुल्क शिक्षा, गरीबों की नि:शुल्क चिकित्सा, उनके पीने का स्वच्छ पानी, उनके लिए स्व -रोजगार की योजनायें लागू करना आदि ऐसे कार्य हैं जिनमे तात्कालिक लाभ नहीं मिलता । इसलिए एक-से-बढ़कर एक धनपति भी ऐसे कार्यों में अपना धन नहीं लगाते । धन-संपन्न लोग बड़े अस्पताल, कॉलेज, संस्थाएं आदि चलाते भी हैं तो उनका उद्देश्य लाभ कमाना है । वहां फीस आदि खर्च इतना है कि वे निर्धनों की पहुँच से बाहर हैं ।
बड़े धनपति धर्म के नाम पर होने वाले कार्यों में और विभिन्न प्रकार के चन्दे में बड़ी धन राशि देते हैं । यहां भी उद्देश्य दान-दाताओं की सूची में सबसे ऊपर नाम होना और अपने अहं का पोषण और निजी स्वार्थ पूरा करना होता है ।
अब यदि धन-वैभव के साथ सुख-शान्ति का जीवन चाहिए, बीमारी चाहे हो लेकिन कभी बिस्तर न पकड़ें, तनाव न हो, चैन की नींद लें तो विभिन्न कार्यों में धन व्यय करने के साथ-साथ ऐसे कार्यों में भी धन व्यय करें जहां कोई मौद्रिक लाभ नहीं है । ऐसे कल्याणकारी कार्य जिनमे कोई तात्कालिक लाभ नहीं है , वहां संसार का सबसे बड़ा लाभ ---' मन की शान्ति ' मिल जाती है । मन की शान्ति का अर्थ यही है कि हमने संसार में रहते हुए ईश्वर को पा लिया, यह अनमोल है ।
जन-कल्याण सम्बन्धी कार्यों के लिए यह सोचा जाता है कि यह सरकार की जिम्मेदारी है | इसका कारण यही है कि निर्धन बच्चों की नि:-शुल्क शिक्षा, गरीबों की नि:शुल्क चिकित्सा, उनके पीने का स्वच्छ पानी, उनके लिए स्व -रोजगार की योजनायें लागू करना आदि ऐसे कार्य हैं जिनमे तात्कालिक लाभ नहीं मिलता । इसलिए एक-से-बढ़कर एक धनपति भी ऐसे कार्यों में अपना धन नहीं लगाते । धन-संपन्न लोग बड़े अस्पताल, कॉलेज, संस्थाएं आदि चलाते भी हैं तो उनका उद्देश्य लाभ कमाना है । वहां फीस आदि खर्च इतना है कि वे निर्धनों की पहुँच से बाहर हैं ।
बड़े धनपति धर्म के नाम पर होने वाले कार्यों में और विभिन्न प्रकार के चन्दे में बड़ी धन राशि देते हैं । यहां भी उद्देश्य दान-दाताओं की सूची में सबसे ऊपर नाम होना और अपने अहं का पोषण और निजी स्वार्थ पूरा करना होता है ।
अब यदि धन-वैभव के साथ सुख-शान्ति का जीवन चाहिए, बीमारी चाहे हो लेकिन कभी बिस्तर न पकड़ें, तनाव न हो, चैन की नींद लें तो विभिन्न कार्यों में धन व्यय करने के साथ-साथ ऐसे कार्यों में भी धन व्यय करें जहां कोई मौद्रिक लाभ नहीं है । ऐसे कल्याणकारी कार्य जिनमे कोई तात्कालिक लाभ नहीं है , वहां संसार का सबसे बड़ा लाभ ---' मन की शान्ति ' मिल जाती है । मन की शान्ति का अर्थ यही है कि हमने संसार में रहते हुए ईश्वर को पा लिया, यह अनमोल है ।
No comments:
Post a Comment