अधिकांश लोग हर समय एक न एक समस्या पर चर्चा करते रहते हैं । ऐसा करने से समस्या समाप्त नहीं होती , बढ़ती जाती है । उचित यह है कि समस्या चाहें परिवार की हो या समाज की उसका समाधान क्या हो ? इस बात पर चर्चा हो । निरंतर समाधान के बारे में सोचने से समाधान निकल ही आता है । जैसे लोग धर्म के नाम पर लड़ते हैं , अपनी जाति, अपने धर्म को श्रेष्ठ समझते हैं । समस्या तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति अपनी श्रेष्ठता को दूसरों पर थोपना चाहता है । दूसरों से स्वयं को श्रेष्ठ कहलवाना चाहता है । इस कारण समस्या कभी समाप्त नहीं होती , अहंकार के साथ समस्या बढ़ती जाती है ।
समस्या तभी हल होगी जब प्रत्येक व्यक्ति का अपना धर्म होगा , प्रत्येक व्यक्ति अपने तरीके से , अपने शब्दों में , अपने धार्मिक स्थलों पर अपने ईश्वर को याद करेगा । यह उसका व्यक्तिगत धर्म होगा जिस पर कोई प्रतिबन्ध नहीं , कोई उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचाएं ।
हम सब एक सामाजिक प्राणी हैं और हम अपने धर्म अपने ईश्वर के प्रतिनिधि हैं । समाज में स्वयं को श्रेष्ठ मानकर कोई लड़ाई - झगड़ा न करे इसके लिए जरुरी है --- एक सामाजिक धर्म हो ----
मानव धर्म हो --- जो सारे सद्गुणों से मिलकर बना हो । ईमानदारी , सच्चाई , धैर्य , दया , संवेदना , कर्तव्यपालन आदि विभिन्न सद्गुणों से मिलकर बना यह धर्म हो । परस्पर व्यवहार में व्यक्तिगत धर्म की चर्चा न हो , इसी सामाजिक धर्म का पालन हो तभी संसार में शान्ति होगी ।
समस्या तभी हल होगी जब प्रत्येक व्यक्ति का अपना धर्म होगा , प्रत्येक व्यक्ति अपने तरीके से , अपने शब्दों में , अपने धार्मिक स्थलों पर अपने ईश्वर को याद करेगा । यह उसका व्यक्तिगत धर्म होगा जिस पर कोई प्रतिबन्ध नहीं , कोई उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचाएं ।
हम सब एक सामाजिक प्राणी हैं और हम अपने धर्म अपने ईश्वर के प्रतिनिधि हैं । समाज में स्वयं को श्रेष्ठ मानकर कोई लड़ाई - झगड़ा न करे इसके लिए जरुरी है --- एक सामाजिक धर्म हो ----
मानव धर्म हो --- जो सारे सद्गुणों से मिलकर बना हो । ईमानदारी , सच्चाई , धैर्य , दया , संवेदना , कर्तव्यपालन आदि विभिन्न सद्गुणों से मिलकर बना यह धर्म हो । परस्पर व्यवहार में व्यक्तिगत धर्म की चर्चा न हो , इसी सामाजिक धर्म का पालन हो तभी संसार में शान्ति होगी ।
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