हम जो भी कार्य करते हैं उसके पीछे हमारी भावना क्या है ? यह सबसे महत्वपूर्ण है । जिसे पाप और पुण्य कहा जाता है , वह हमारी भावनाओं से ही निश्चित होता है । कार्य यदि ईमानदारी से और लोककल्याण की भावना से किया जाता है तो वही पुण्य है लेकिन यदि किसी कार्य के माध्यम से लोगों को उत्पीड़ित किया जाता है , किसी को दुःख पहुँचाया जाता है तो कार्य चाहें श्रेष्ठ हो लेकिन भावना निकृष्ट है तो वह कार्य पाप बन जाता है । जैसे कोई सैनिक देशभक्ति की भावना से , अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए वीरता पूर्वक युद्ध करता है तो वह वीर कहलाया , उसे वीरोचित सम्मान मिलता है । ऐसे पवित्र कार्य से इतिहास में उसका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाता है ।
लेकिन यदि सैनिक की भावना युद्ध के बहाने महिलाओं को उत्पीड़ित करने की , उनका चरित्र - हनन करने की है , किसानों के खेतों और बस्तियों को उजाड़ने की है तो ऐसे कार्य से वीरोचित सम्मान नहीं मिलता ।
निकृष्ट या महान बनना व्यक्ति के अपने हाथ में है । प्रकृति सबको अवसर देती है लेकिन चुनाव व्यक्ति को करना पड़ता है । हम ईश्वर से सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करें --- ईश्वर हमें विवेक दे , सद्बुद्धि दे , जिससे हम श्रेष्ठ और पवित्र भावना से कार्यों को संपन्न करें ।
लेकिन यदि सैनिक की भावना युद्ध के बहाने महिलाओं को उत्पीड़ित करने की , उनका चरित्र - हनन करने की है , किसानों के खेतों और बस्तियों को उजाड़ने की है तो ऐसे कार्य से वीरोचित सम्मान नहीं मिलता ।
निकृष्ट या महान बनना व्यक्ति के अपने हाथ में है । प्रकृति सबको अवसर देती है लेकिन चुनाव व्यक्ति को करना पड़ता है । हम ईश्वर से सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करें --- ईश्वर हमें विवेक दे , सद्बुद्धि दे , जिससे हम श्रेष्ठ और पवित्र भावना से कार्यों को संपन्न करें ।
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