वर्तमान की सब समस्याओं का मूल कारण है कि मनुष्य एक मशीनी मानव बन गया है , उसके ह्रदय की सारी संवेदना समाप्त हो गई है । एक - दूसरे के प्रति सहयोग , सहानुभूति , करुणा , प्रेम जैसी पवित्र भावनाएं समाप्त हो गईं हैं और उसका स्थान स्वार्थ , लालच , धोखा व उत्पीड़न ने ले लिया है । लोगों के स्वाभाव में क्रूरता व निर्दयता बढ़ती जा रही है ।
यदि संसार में शान्ति चाहिए तो समूचे संसार में ऐसी संस्थाएं खोलनी चाहिए जो बच्चों को , युवकों को , प्रौढ़ों व वृद्धों को संवेदना , सहयोग , जियो और जीने दो की शिक्षा दें । अक्षर ज्ञान से पहले बच्चों को स्वयं से प्रेम करना सिखाया जाये । सबसे ज्यादा समझ की जरुरत प्रौढ़ आयु वर्ग और युवा वर्ग को है । इसी आयु वर्ग के लोगों के स्वार्थ , धन का लालच , वासना , क्रोध , अहंकार , कट्टरता आदि दुष्प्रवृत्तियों का परिणाम सारा संसार भुगतता है ।
संसार में शान्ति के लिए विचारों में थोड़े से परिवर्तन की जरुरत है । अपनी शक्ति , अपने धन का प्रयोग लोगों को उत्पीड़ित करने और प्रकृति को नष्ट करने के बजाय सकारात्मक कार्यों में , मनुष्य के कल्याण के लिए करें । जो लोग अभी भय से और चापलूसी के लिए जय - जय कार करते हैं फिर वही लोग अपनी आत्मा से , ख़ुशी से जयकार करेंगे ।
यदि संसार में शान्ति चाहिए तो समूचे संसार में ऐसी संस्थाएं खोलनी चाहिए जो बच्चों को , युवकों को , प्रौढ़ों व वृद्धों को संवेदना , सहयोग , जियो और जीने दो की शिक्षा दें । अक्षर ज्ञान से पहले बच्चों को स्वयं से प्रेम करना सिखाया जाये । सबसे ज्यादा समझ की जरुरत प्रौढ़ आयु वर्ग और युवा वर्ग को है । इसी आयु वर्ग के लोगों के स्वार्थ , धन का लालच , वासना , क्रोध , अहंकार , कट्टरता आदि दुष्प्रवृत्तियों का परिणाम सारा संसार भुगतता है ।
संसार में शान्ति के लिए विचारों में थोड़े से परिवर्तन की जरुरत है । अपनी शक्ति , अपने धन का प्रयोग लोगों को उत्पीड़ित करने और प्रकृति को नष्ट करने के बजाय सकारात्मक कार्यों में , मनुष्य के कल्याण के लिए करें । जो लोग अभी भय से और चापलूसी के लिए जय - जय कार करते हैं फिर वही लोग अपनी आत्मा से , ख़ुशी से जयकार करेंगे ।
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