इस संसार में अनेक अच्छे लोग हैं , बहुत पुण्य के कार्य करते हैं लेकिन अनजाने में वे अपने पुण्यों को कम कर देते हैं , अपनी प्राणशक्ति , अपने प्रभामंडल को कमजोर कर लेते हैं |
आज के समय में हम देखते हैं कि प्रत्येक वह व्यक्ति जिसके पास कोई ताकत है ----- धन , पद , शारीरिक बल ---- वह इस शक्ति के मद में अपने से कमजोर पर अत्याचार करता है और अनेक लोगों को कोई - न - कोई लालच देकर अपने पक्ष में कर लेता है , शक्तिशाली होकर उसके अत्याचार चरम सीमा पर पहुँच जाते हैं । अत्याचारी और अन्यायी का समर्थन करने वाले , उसके विरुद्ध आवाज न उठाने वाले का क्या हश्र होता है , इसका ज्ञान हमें रामचरितमानस से मिलता है ------
' राम - रावण का युद्ध हो रहा था , रावण की सेना का सेनापति उसका शक्तिशाली पुत्र ' मेघनाद था । वह बहुत वीर था , उसने एक बार स्वर्ग के राजा इन्द्र को पराजित किया था , इसलिए उसे ' इन्द्रजीत ' भी कहते हैं । श्रीराम की सेना में लक्ष्मण सेनापति थे । लक्ष्मण जी और मेघनाद में भयंकर युद्ध हुआ और मेघनाद ने शक्तिबाण से लक्ष्मण को मूर्छित कर दिया ।
ऐसा कहते हैं जब श्री हनुमानजी संजीवनी बूटी लेकर आ रहे थे तो लक्ष्मण जी की पत्नी उर्मिला ने उन्हें एक फूलों का हार दिया कि युद्ध में लक्ष्मणजी वह हार पहन लें , पतिव्रता नारी का तेज उनकी रक्षा करेगा ।
मेघनाद की पत्नी सुलोचना भी बहुत पतिव्रता थी , उसने भी अपने पति मेघनाद के गले में फूलों का हार पहना दिया । युद्ध के मैदान में लक्ष्मण और मेघनाद में भयंकर युद्ध हो रहा था , लेकिन शक्तिशाली बाण उन फूलों के हार में छिपी पतिव्रता की शक्ति को नमन कर लौट रहे थे ।
लक्ष्मण जी का फूलों का हार वैसे ही तरोताजा था लेकिन धीरे - धीरे मेघनाद के गले के हार के फूल मुरझाने लगे , वह कमजोर पड़ गया और लक्ष्मणजी के बाण से मृत्यु को प्राप्त हुआ ।
भगवन श्रीराम से पूछा गया कि मेघनाद की पत्नी सुलोचना पतिव्रता थी फिर उसके फूलों का हार क्यों मुरझाया ?
भगवान ने कहा -- ' मेघनाद ने ऐसे व्यक्ति ' रावण ' का साथ दिया जो अत्याचारी था , जिसने परस्त्री का अपहरण किया , उस पर कुद्रष्टि डाली , इस कारण सती सुलोचना का तेज उसकी रक्षा न कर सका । जबकि लक्ष्मणजी के पास संयम का बल था । '
इस द्रष्टान्त से हमें यही शिक्षा मिलती है कि --- अपने जीवन में यदि सुख - शान्ति , विपदाओं से लड़ने और विजयी होने की ताकत यदि चाहिए तो अत्याचारी का , चाहे वह अपना सगा ही क्यों न हो , कभी साथ न दे ।
आज के समय में हम देखते हैं कि प्रत्येक वह व्यक्ति जिसके पास कोई ताकत है ----- धन , पद , शारीरिक बल ---- वह इस शक्ति के मद में अपने से कमजोर पर अत्याचार करता है और अनेक लोगों को कोई - न - कोई लालच देकर अपने पक्ष में कर लेता है , शक्तिशाली होकर उसके अत्याचार चरम सीमा पर पहुँच जाते हैं । अत्याचारी और अन्यायी का समर्थन करने वाले , उसके विरुद्ध आवाज न उठाने वाले का क्या हश्र होता है , इसका ज्ञान हमें रामचरितमानस से मिलता है ------
' राम - रावण का युद्ध हो रहा था , रावण की सेना का सेनापति उसका शक्तिशाली पुत्र ' मेघनाद था । वह बहुत वीर था , उसने एक बार स्वर्ग के राजा इन्द्र को पराजित किया था , इसलिए उसे ' इन्द्रजीत ' भी कहते हैं । श्रीराम की सेना में लक्ष्मण सेनापति थे । लक्ष्मण जी और मेघनाद में भयंकर युद्ध हुआ और मेघनाद ने शक्तिबाण से लक्ष्मण को मूर्छित कर दिया ।
ऐसा कहते हैं जब श्री हनुमानजी संजीवनी बूटी लेकर आ रहे थे तो लक्ष्मण जी की पत्नी उर्मिला ने उन्हें एक फूलों का हार दिया कि युद्ध में लक्ष्मणजी वह हार पहन लें , पतिव्रता नारी का तेज उनकी रक्षा करेगा ।
मेघनाद की पत्नी सुलोचना भी बहुत पतिव्रता थी , उसने भी अपने पति मेघनाद के गले में फूलों का हार पहना दिया । युद्ध के मैदान में लक्ष्मण और मेघनाद में भयंकर युद्ध हो रहा था , लेकिन शक्तिशाली बाण उन फूलों के हार में छिपी पतिव्रता की शक्ति को नमन कर लौट रहे थे ।
लक्ष्मण जी का फूलों का हार वैसे ही तरोताजा था लेकिन धीरे - धीरे मेघनाद के गले के हार के फूल मुरझाने लगे , वह कमजोर पड़ गया और लक्ष्मणजी के बाण से मृत्यु को प्राप्त हुआ ।
भगवन श्रीराम से पूछा गया कि मेघनाद की पत्नी सुलोचना पतिव्रता थी फिर उसके फूलों का हार क्यों मुरझाया ?
भगवान ने कहा -- ' मेघनाद ने ऐसे व्यक्ति ' रावण ' का साथ दिया जो अत्याचारी था , जिसने परस्त्री का अपहरण किया , उस पर कुद्रष्टि डाली , इस कारण सती सुलोचना का तेज उसकी रक्षा न कर सका । जबकि लक्ष्मणजी के पास संयम का बल था । '
इस द्रष्टान्त से हमें यही शिक्षा मिलती है कि --- अपने जीवन में यदि सुख - शान्ति , विपदाओं से लड़ने और विजयी होने की ताकत यदि चाहिए तो अत्याचारी का , चाहे वह अपना सगा ही क्यों न हो , कभी साथ न दे ।
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