आज के समय में कथा , प्रवचन , हर प्रकार की पूजा एक व्यवसाय है , आकर्षक रोजगार है । लोग स्वयं अपने व्यक्तित्व को परिष्कृत कर , बुरी आदतों को छोड़कर अपने ह्रदय में विराजमान ईश्वर को जाग्रत करने का परिश्रम करना नहीं चाहते , वे तो धन के बल पर , चढ़ावा चढ़ाकर ईश्वर की कृपा चाहते हैं ।
व्यक्ति पूजा - पाठ चाहे न करे , केवल अपना कर्तव्य - पालन ही ईमानदारी से करे तो सारी समस्याएं हल हो जायें । संसार में रहकर अपना कर्तव्यपालन ही सबसे बड़ी पूजा है , जब व्यक्ति इसी से दूर भाग रहा है तो शान्ति कैसे हो ?
आज लोग पुण्य भी करते हैं तो उसकी आड़ में बड़ी बेईमानी कर लेते हैं जैसे ---- जैसे एक शिक्षक है या डाक्टर है , उसने किसी प्रकार रोजगार प्राप्त कर लिया l अब वह अपने वेतन के अतिरिक्त और बड़ी कमाई करना चाहता है तो वह सांठ-गाँठ करके अपने वेतन का कुछ हिस्सा किसी को देकर , अपनी जगह उसे भेज देगा और स्वयं कहीं कोई व्यवसाय करके और धन कमाएगा ।
जब व्यक्ति की सोच में बेईमानी आ जाती है तो वह समझता है कि उसने किसी को रोजगार देकर पुण्य किया और अतिरिक्त कार्य करके ' कर्मठ ' बन गया किन्तु सच्चाई यह हुई कि विद्दार्थी को योग्य व्यक्ति से ज्ञान नहीं मिला , कई लोग गलत इलाज के कारण और बीमार हो गए ।
जब सोच में ईमानदारी न हो तो ऐसे लोग जुड़कर बड़ी श्रंखला बना लेते हैं और हर व्यक्ति अपना प्रतिशत लेकर चुप रहता है , लेकिन ईश्वर की निगाह से कुछ छुपता नहीं है ।
इसीलिए पूजा पाठ , दान - पुण्य करने के बाद भी जीवन में अशान्ति है ।
आज की सबसे बड़ी जरुरत है --- सोच सकारात्मक हो ।
व्यक्ति पूजा - पाठ चाहे न करे , केवल अपना कर्तव्य - पालन ही ईमानदारी से करे तो सारी समस्याएं हल हो जायें । संसार में रहकर अपना कर्तव्यपालन ही सबसे बड़ी पूजा है , जब व्यक्ति इसी से दूर भाग रहा है तो शान्ति कैसे हो ?
आज लोग पुण्य भी करते हैं तो उसकी आड़ में बड़ी बेईमानी कर लेते हैं जैसे ---- जैसे एक शिक्षक है या डाक्टर है , उसने किसी प्रकार रोजगार प्राप्त कर लिया l अब वह अपने वेतन के अतिरिक्त और बड़ी कमाई करना चाहता है तो वह सांठ-गाँठ करके अपने वेतन का कुछ हिस्सा किसी को देकर , अपनी जगह उसे भेज देगा और स्वयं कहीं कोई व्यवसाय करके और धन कमाएगा ।
जब व्यक्ति की सोच में बेईमानी आ जाती है तो वह समझता है कि उसने किसी को रोजगार देकर पुण्य किया और अतिरिक्त कार्य करके ' कर्मठ ' बन गया किन्तु सच्चाई यह हुई कि विद्दार्थी को योग्य व्यक्ति से ज्ञान नहीं मिला , कई लोग गलत इलाज के कारण और बीमार हो गए ।
जब सोच में ईमानदारी न हो तो ऐसे लोग जुड़कर बड़ी श्रंखला बना लेते हैं और हर व्यक्ति अपना प्रतिशत लेकर चुप रहता है , लेकिन ईश्वर की निगाह से कुछ छुपता नहीं है ।
इसीलिए पूजा पाठ , दान - पुण्य करने के बाद भी जीवन में अशान्ति है ।
आज की सबसे बड़ी जरुरत है --- सोच सकारात्मक हो ।
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