मनुष्य के जैसे विचार होते हैं वह उसी के अनुरूप कार्य करता है l जब व्यक्ति अपने को श्रेष्ठ और ताकतवर समझता है , अहंकारी होता है तब वह अपनी हुकूमत अपने से कमजोर पर चलाता है l ऐसे कमजोर में चाहे -- नारी हो , अपने कार्यस्थल के कर्मचारी हों या अपने ही बच्चे हों , --- वे सबको अपने अनुशासन में चलाना चाहते हैं l ऐसी ही सोच से समाज में अत्याचार बढ़ते हैं l वक्त के साथ अत्याचार का रूप बदल जाता है l पहले समाज में अनेक कुप्रथाएं थीं -- सती-प्रथा थी , बाल -विवाह थे l समाज - सुधारकों के अनेक प्रयासों से यह कुप्रथाएं समाप्त हुईं तो अब दहेज़ -हत्या , कन्या -भ्रूण -हत्या , बलात्कार फिर हत्या ----- !
केवल नारी ही उत्पीड़ित नहीं है , ऐसे अहंकारी अपने बच्चों के लिए भी घातक हैं , अनेक जो उच्च पदों पर होते हैं ---डाक्टर , इंजीनियर, नेता --- वे अपने बच्चों की रूचि का ध्यान नहीं रखते , अपने धन और पद के बल पर , उचित - अनुचित हर प्रयास करके उन्हें अपनी इच्छा अनुसार चलाना चाहते हैं , ताकि समाज में उनकी ' झूठी प्रतिष्ठा ' बनी रहे , इसके लिए चाहे बच्चे कुर्बान हो जाएँ , उनकी ' प्रतिष्ठा ' बनी रहे l
समाज में सुधार के निरंतर प्रयास जरुरी हैं , लेकिन स्थायी सुधार तभी होगा जब लोगों के ह्रदय में संवेदना होगी , दूसरे के सुख - दुःख को अपना समझेंगे l शक्ति और अहंकार से नहीं , सद्गुणों से लोगों का ह्रदय जीतेंगे l
केवल नारी ही उत्पीड़ित नहीं है , ऐसे अहंकारी अपने बच्चों के लिए भी घातक हैं , अनेक जो उच्च पदों पर होते हैं ---डाक्टर , इंजीनियर, नेता --- वे अपने बच्चों की रूचि का ध्यान नहीं रखते , अपने धन और पद के बल पर , उचित - अनुचित हर प्रयास करके उन्हें अपनी इच्छा अनुसार चलाना चाहते हैं , ताकि समाज में उनकी ' झूठी प्रतिष्ठा ' बनी रहे , इसके लिए चाहे बच्चे कुर्बान हो जाएँ , उनकी ' प्रतिष्ठा ' बनी रहे l
समाज में सुधार के निरंतर प्रयास जरुरी हैं , लेकिन स्थायी सुधार तभी होगा जब लोगों के ह्रदय में संवेदना होगी , दूसरे के सुख - दुःख को अपना समझेंगे l शक्ति और अहंकार से नहीं , सद्गुणों से लोगों का ह्रदय जीतेंगे l
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