प्रवचनों का , उपदेशों का लोगों पर कोई विशेष प्रभाव तब तक नहीं पड़ता जब तक उपदेश देने वाला स्वयं उन बातों को अपने आचरण में नहीं उतारता l जब कोई व्यक्ति स्वयं श्रेष्ठ आचरण करता है और फिर वैसा ही श्रेष्ठ आचरण करने का लोगों को उपदेश देता है तो उसकी वाणी में प्राण आ जाते है और उसकी कही हुई बात श्रोताओं के ह्रदय में उतर जाती है और वे उसकी बताई राह पर चलने लगते हैं l ऐसे लोग आज बहुत कम हैं l धन की चकाचौंध ने व्यक्ति को दोरंगा बना दिया l परदे के सामने कुछ है और परदे के पीछे कुछ और है l चाहे पारिवारिक जीवन हो , सामाजिक या राजनीतिक, यह खोखलापन सब जगह है l बूढ़े होते लोग भी अपनी कामना , वासना , लोभ , लालच का त्याग नहीं कर पाते , तो वे समाज को क्या शिक्षा देंगे ? कौन सा आदर्श प्रस्तुत करेंगे ? प्रकृति ने ऐसी व्यवस्था की है कि मृत्यु होने पर कोई अपने साथ कुछ नहीं ले जा सकता , अन्यथा आज का मनुष्य सारा धन - वैभव अपने साथ बाँध कर ले जाता l
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